जरूरी नहीं कि आलोक नंदन के लिखे से आप सहमत हों। यह उनका नजरिया है। अगर आपको इस पर कुछ कहना है तो [email protected] पर मेल कर सकते हैं। – संपादक, भड़ास4मीडिया
डेटलाइन के हिसाब से घटना कुछ पुरानी पड़ चुकी है लेकिन पत्रकारिता के बदलते चेहरे को समझने के लिए इसे लिटमस पत्र के रूप में लिया जा सकता है। उस दिन सुनील सेट्टी मुंबई के अंधेरी स्थित इनफिनिटी मॉल में आने वाले थे। मीडिया वालों को बाइट चाहिए। कौव्वों की झुंड की तरह वहां एकत्र हो गए। सबसे अंत में इंडिया टीवी के रिपोर्टर वसीम अहमद आए। पूरे रौब के साथ उन्होंने इनफिनिटी मॉल में घुसने की कोशिश की। दरवाजे पर खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने जब उनका साजो-सामान को चेक करना चाहा तो वो आपा खो बैठे और उसे धमकाने लगे।
जब गार्ड ने उनसे अनुरोध किया कि, भाई, यह सिक्योरिटी का मामला है, आप अपना सामान चेक करा लें, तो उन्होंने गार्ड को गालियां देनी शुरू कर दी। दरवाजे पर खड़े गार्ड का दिमाग वैसे ही जमीन के चार फीट अंदर होता है। गार्ड ने उनकी जमकर धुनाई शुरू कर दी।
इसके साथ ही ड्रामा शुरू हो गया। अन्य मीडिया वाले भाइयों को जब इसकी खबर लगी तो वो एकजुट होकर कांव-कांव करने लगे। इस बीच पुलिस भी आ गई और मीडियावालों के हंगामे को देखते हुए पूरा मॉल खाली करा दिया। शाम के समय इस मॉल में आने वालों की संख्या बहुत अधिक होती है। लोग घेरा बनाकर मीडिया वालों का तमाशा देख रहे थे।
एक मीडिया वाला पूरे रंग में था, वहां खड़े लोगों को हड़काते हुए उसने कहा- आप सब लोग चले जाइए, हम लोग मॉल का घेराव करेंगे।
वहां पर खड़े एक नौजवान को यह बात लग गई। उसने उसी अंदाज में मीडिया वाले भाई को समझाते हुए कहा- ज्यादा चूं-चपड़ की तो पब्लिक भड़क जाएगी और इतना मारेगी कि अपने कैमरा के साथ अस्पताल में नजर आओगे।
वहां पर खड़े कुछ और लोग भी उस युवक के सुर में सुर मिलाकर हो-हल्ला करने लगे।
एक ने कहा- सबसे बड़ा आतंकवादी मीडिया है।
दूसरे ने कहा- इन लोगों ने ही पूरा माहौल खराब कर रखा है।
तीसरे ने कहा- कहीं भी जबरदस्ती घुसने का अधिकार इन्हें किसने दे दिया है।
चौथे ने कहा- भारतीय संविधान में मीडिया को अलग से कोई भी अधिकार नहीं दिया गया है। इन लोगों ने अपनी गुंडागर्दी खुद शुरू कर दी है।
आम लोगों की प्रतिक्रिया सुनकर मीडिया वाले पुलिस वालों की तरफ देखने लगे और उन्हें हड़काने लगे। बड़े-बड़े कैमरे देखकर पुलिस वाले पहले से ही रक्षात्मक मुद्रा में थे। मीडिया वालों के कहने पर उन्होंने वहां खड़े आम लोगों को भगाना शुरू कर दिया। इस हो-हंगामे के बीच कई लोग अपनी शाम बिताने के लिए मॉल में लगातार आ रहे थे। पर मॉल के दरवाजे पर मुंबई की पूरी मीडिया धरना देकर बैठी हुई थी। ये लोग गुंडों की तरह आम शहरी को अपने शाम का मजा उठाने से वंचित कर रहे थे। दनादन सिगरेट फूंकते हुए ये साबित कर रहे थे कि मीडिया कुछ भी कर सकती है। शहरों में सार्वजनिक स्थलों पर बम फटने पर ये मीडिया वाले अपने हाथ में माइक पकड़ कर हो-हल्ला करते हैं। कोई इनसे पूछे कि यदि मीडिया की आड़ में कोई आतंकी इनफिनिटी मॉल में बम रख कर चला जाता है तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? इनफिनिटी मॉल की सिक्योरिटी में लगा गार्ड पूरी इमानदारी से सार्वजनिक सुरक्षा के लिए अपनी ड्यूटी निभा रहा था। बेलगाम होती मीडिया खुद सुरक्षा के दायरे को तोड़ने की जुर्रत क्यों करती है?
मीडिया वालों ने अपने कर्तव्य से इतिश्री तो बहुत पहले ही कर लिया था, अब वे शालीनता का दामन भी छोड़ते जा रहे हैं। कौन रोकेगा इन माइकधारी गुंडों को, जो आम शहरी लोगों से उनके अधिकार छीनने पर आमादा हैं?
गैर-जिम्मेदार मीडिया शेम शेम !!