भाजपा नेता लालजी टंडन ने दैनिक जागरण के मालिकों को कटघरे में खड़ा किया है। टंडन ने जागरण कार्यालय के लिए, जागरण स्कूल के लिए, जागरण मालिकों के मल्टीप्लेक्स के लिए अपने मंत्री होने के दौरान जमीन दिलाने व कई तरह के फायदे दिलाकर, फेवर करके मित्र-धर्म निभाने की बात कही है। टंडन जी से पूछा जाना चाहिए कि वे मंत्री होने के बावजूद बजाय जनता की सेवा करने के, बड़े घरानों का हित क्यों साधते रहे? ऐसा करके टंडन जी ने क्या जनता से दगाबाजी नहीं की? जागरण के लिए टंडन जी ने इतना कुछ किया, इसके बाद भी चुनाव के समय में जब दैनिक जागरण वालों ने उनसे भी विज्ञापन के नाम पर रुपये ऐंठने का प्रयास किया, तो उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की स्थिति क्या है। टंडन जी, सही मायने में आज मीडिया जिस स्थान पर खड़ा है, उसके पीछे कहीं न कहीं आप जैसे नेताओं का भी योगदान रहा है। अखबार मालिकों की किसी भी तरह से मदद करने के पीछे अधिकांश नेताओं की सोच यही रहती है कि समय आने पर इसका फायदा उठाया जाएगा।
आपके पुराने अहसानों को जागरण संस्थान ने पूरी तरह भुला दिया। आप क्यों उम्मीद करते हैं कि पैसे के लिए जीने-मरने वाले लोग समय आने पर आपसे पैसे नहीं वसूलेंगे! वैसे भी, अगर अखबार आपका गुणगान करता, तो शायद आप कभी इस बात का खुलासा नहीं करते कि संस्थान के मालिकों के लिए आपने क्या-क्या नहीं किया। लोकतंत्र के इस चौथे खंभे को इस्तेमाल करने की सोच रखने वाले नेताओं की आज पूरे देश में भरमार है। अच्छा यह है कि समाचार पत्र मालिकों को घेरे में खड़े किए बिना खुद को इस मुकाम तक पहुंचाया जाए कि बिना धन खर्च किए मीडिया आपको एक हीरो के रूप में पेश करने को बाध्य हो जाए।
नरेन्द्र वत्स
ब्यूरो प्रमुख
दैनिक अभी-अभी
रेवाड़ी (हरियाणा)