ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के छात्र आजकल सड़क पर उतर कर जिंदाबाद-मुर्दाबाद करने में लगे हैं। इसमें उनकी गलती नहीं। उनकी जगह कोई और होता तो भी शायद यही करता। जीवाजी विश्वविद्यालय ने पांच साल पहले पत्रकारिता का पाठ्यक्रम तो शुरू कर दिया लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षण के नाम पर आज तक कुछ नहीं दिया। छात्रों से मोटी फीस लेने के बाद कागजी डिग्रियां थमा दी जाती हैं। शिक्षण व प्रशिक्षण के नाम पर उन्हें कुछ नहीं सिखाया-बताया जाता।
छात्र-छात्राओं का कहना है कि लुभावने विज्ञापन के चक्कर में उन लोगों ने मोटी फीस देकर एडमीशन लिया। अब यहां की सच्चाई सामने है। पत्रकारिता का विभाग अलग से नहीं है। एक अस्थाई शिक्षक पत्रकारिता पाठ्यक्रम के प्रभारी हैं पर वो आज तक छात्रों से रूबरू नहीं हुए। पूरा विभाग गेस्ट टीचर्स के भरोसे चल रहा है। यहां न तो प्रैक्टिकल की सुविधा है और न पत्रकारिता से जुड़ा कोई साजो-सामान है। छात्र यहां पढ़ें तो क्या, करें तो क्या? आंदोलन पर बैठे छात्रों का कहना है कि उन्हें न तो जरूरी किताबें उपलब्ध कराई जाती हैं और न अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। सच तो ये है कि यहां कायदे से पत्रकारिता का विभाग तक नहीं है। छात्रों ने गेस्ट टीचर्स के चयन की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए। छात्रों की प्रमुख रूप से पांच मांगें हैं- पत्रकारिता का अलग विभाग बने, विभाग में प्लेसमेंट सेल बने, स्थाई प्राध्यापकों की नियुक्ति हो, जरूरी उपकरण और संसाधन मिले, अनुभवी और योग्य प्राध्यापकों की नियुक्ति हो।