करीब महीने भर चले चुनावी महाकुंभ के आखिरी स्नान के पूर्ण होने के साथ ही लोगों (पार्टियों) को अपने कार्य रूपी किये गये दान-पुण्य का फल मिलने का समय भी आ गया और फल मिला भी। हालांकि पार्टियों को कुछ ऐसे फल की आशंका कम ही थी जैसा उन्हें मिला। बहुतों ने कुछ और ही सोच रखा था और मिला कुछ और। चाहे बात मजबूत नेता और निर्णायक सरकार देने वाली एनडीए की हो या जय हो का नारा बुलंद करने वाली यूपीए की। लगभग हर पार्टी को फल आशा के अनुरूप नहीं मिला है जिसका मलाल साफ दिखाई दे रहा है। यूपीए को जितनी सीटे मिली हैं, उसका अंदेशा उसे भी कतई नहीं था। इस महाकुंभ में मीडिया ने भी स्नान कर पुण्य लाभ कमाने का खासम-खास इंतजाम किया था। जिसकी जितनी औकात थी, उस हिसाब से व्यवस्था की थी। किसी ने चुनावी महाकुंभ की कवरेज के लिए चुनावी रथ तैयार कराया तो किसी ने पैदल ही नमूने एकत्र किए।
कुछ कुख्यात चैनलों ने भी भूत-प्रेत वाली पत्रकारिता छोड़ कर राजनैतिक खबरों पर फोकस किया था। इस चुनावी महौल में छोटे से लेकर बड़े, सभी चैनल और न्यूज एजेंसियों को बस एक ही काम रह गया था, वो था जनमत सर्वे का यानि एग्जिट पोल के आंकड़े एकत्र कर विभिन्न पार्टियों के भाग्य बांचने का काम। ये काम छोटे-बड़े मीडिया हाउस कैसे करते-कराते हैं, ये तो वही जानें लेकिन इनके सर्वे से जनता को केवल एक ही बात समझ में आती है कि पिछले 2004 के चुनाव हों या 2009 के लोकसभा चुनाव, इनके जरिए दिए गए नतीजों से जनता अपने को ठगा हुआ ही महसूस करती है। जनता को लगता है कि कल तक टीवी स्क्रीन पर दिखाई देने वाले नामी गिरामी चेहरे जो अपने को ब्रह्मा और तैयार किए गए आंकड़ो को ब्रह्मा की लकीर से कम नहीं मानते थे और टीवी पर चीख-चीख कर फलां पार्टी इतनी सीटें और फला पार्टी को उतनी सीटें मिलने का दम्भ भरते थे, गला फाड़-फाड़ कर भविष्यवाणियां करते थे, अब उनकी सारी हेकड़ी निकल गई, जब रिजल्ट इनके उलट आया।
स्क्रीन पर प्रगट होने वाले इन पुरोधाओं ने अपनी इस गलती के लिए एक बार भी जनता से माफी मांगने की जुर्रत क्यों नहीं की? इसके लिए शायद उनके पास समय ही ना रहा हो लेकिन भोली-भाली जनता आज भी टीवी पर दिखाई जाने वाली हर खबर को सच मानती है और उस पर प्रतिक्रिया भी करती है। ऐसे तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं जब टीवी पर खबर चलने के बाद प्रतिक्रया हुई हो। दिल्ली का उमा खुराना प्रकरण जो इलेक्ट्रानिक मीडिया का एक ऐसा काला अध्याय साबित हुआ जिसमें गलत खबर दिखाने के बावजूद भी लोगों ने उमा खुराना की क्या दुर्गति की थी, ये बात किसी से छिपी नहीं है। भला हो पुलिस का जो मौके पर पहुंच गई वरना क्या से क्या हो सकता था, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
जनता जब मीडिया पर इस कदर विश्वास करती है तो मीडिया का भी कुछ कर्तव्य जनता के प्रति बनता है जिसे मीडिया को निभाना चाहिए वरना कहीं ऐसा ना हो कि जनता का मीडिया पर से विश्वास ही उठ जाए।
लेखक विवेक वाजपेयी पत्रकार हैं और इन दिनों एसवन न्यूज चैनल के आउटपुट डेस्क पर कार्य कर रहे हैं। उनसे संपर्क [email protected] या 09899979775 के जरिए किया जा सकता है।