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पहली प्रेस वार्ता में पत्रकार के होश उड़े

भड़ास ब्लागबात अधिक पुरानी नहीं है। मैंने पत्रकारिता का करियर स्वदेश समाचार पत्र से शुरू किया। 2008 मई को मैने स्वदेश ज्वाइन किया। मैने वहां प्रेस नोट बनाने से काम शुरू किया और धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। संपादक लोकेन्द्र पराशर जी के साथ बहुत कुछ सीखा। एक दिन हमारे सिटी चीफ प्रवीण दुबे मुझसे बोले- जाओ मराठी समाज की एक पत्रकार वार्ता है, उसे कवर कर लो। मैं अपने अन्दर एक अलग-सी स्फूर्ति लिए पत्रकार वार्ता को कवर करने पहुंच गया। वहा देखा कि मेरा एक मित्र भी नई दुनिया से आया हुआ था। पत्रकार वार्ता शुरू होने से पहले वहां सभी के सामने नाश्ता रख दिया जाता है। सभी लोग खाने लगते हैं। सिर्फ एक दो लोगों ने ही एक दो प्रश्न पूछा। उसके बाद एक-एक करके पत्रकार जाने लगे।

भड़ास ब्लाग

भड़ास ब्लागबात अधिक पुरानी नहीं है। मैंने पत्रकारिता का करियर स्वदेश समाचार पत्र से शुरू किया। 2008 मई को मैने स्वदेश ज्वाइन किया। मैने वहां प्रेस नोट बनाने से काम शुरू किया और धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। संपादक लोकेन्द्र पराशर जी के साथ बहुत कुछ सीखा। एक दिन हमारे सिटी चीफ प्रवीण दुबे मुझसे बोले- जाओ मराठी समाज की एक पत्रकार वार्ता है, उसे कवर कर लो। मैं अपने अन्दर एक अलग-सी स्फूर्ति लिए पत्रकार वार्ता को कवर करने पहुंच गया। वहा देखा कि मेरा एक मित्र भी नई दुनिया से आया हुआ था। पत्रकार वार्ता शुरू होने से पहले वहां सभी के सामने नाश्ता रख दिया जाता है। सभी लोग खाने लगते हैं। सिर्फ एक दो लोगों ने ही एक दो प्रश्न पूछा। उसके बाद एक-एक करके पत्रकार जाने लगे।

वहां से उठकर मैं बाहर निकलने लगा, तभी एक महाशय ने मुझे आवाज लगाकर रोका….

करीब आकर बोले- जरा ठहरिये।

मैं रुक गया।

वो महाशय एक पैकेट आगे करते हुए बोले- लीजिये।

मैने पूछा- इसमे क्या है?

उन्होंने हंस कर जवाब दिया- गिफ्ट है।

मैने कहा- किसलिए?

उन्होंने कहा- सभी के लिए है।

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मैने उन्हें मना किया और आगे चल दिया। वे पीछे-पीछे आते रहे और अनुरोध करते रहे। मैने उनकी एक न सुनी और चला आया अपने आफिस। जब मैं प्रेस वापस पहुंचा तो वहां सभी ने पूछा कि कैसी रही पहली पत्रकार वार्ता और क्या गिफ्ट मिला? मैने कहा कि पत्रकार वार्ता ने तो मेरे होश उड़ा दिए। मैने अपने सर से पढ़ाई के समय सीखा था कि अगर आप किसी की चीज लेते हैं तो आप रिश्वत ले रहे हैं। लेकिन वर्तमान में जो मैने देखा, उसे देखकर दंग रह गया। आजकल सभी बड़े पत्रकार प्रेस वार्ता में मजे से खाना खाते है और गिफ्ट लेते हैं। ऐसे लोग पत्रकारिता का अपमान कर रहे हैं। जीवन के इस अनुभव ने मुझे झकझोर दिया। कुछ दिनों तक मैं बस यही सोचता रहा कि अपने आपको सच का पहरेदार कहने वाले ये पत्रकार ऐसा कैसे कर सकते हैं?

मैं सभी लोगों से सुझाव चाहता हूं कि किस तरह पत्रकारिता को दूषित होने से बचाया जा सकता है। मेरा पत्रकारिता में अनुभव कुछ अधिक नही है और मैं सीखने की अवस्था में ही हूं। धन्यवाद।


लेखक विकास त्रिपाठी युवा पत्रकार हैं। उन्होंने अपना यह तजुर्बा भड़ास ब्लाग पर प्रकाशित किया है। विकास से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है। विकास को सलाह देने के लिए और दूसरों के सलाह को पढ़ने के लिए क्लिक करें- भड़ास ब्लाग
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