जनसत्ता में पहले पन्ने पर आज एक अच्छी खबर प्रकाशित हुई है। वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह माया सरकार अपने कारिंदों के जरिए न्यूज चैनलों की मानीटरिंग करा रही हैं। इस मानीटरिंग के दो मायने हैं। सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक यह कि प्रदेश में हुई किसी घटना की सूचना फौरन सरकार तक पहुंचती है और सरकार सक्रिय हो जाती है। नकारात्मक यह कि इस मानीटरिंग के आधार पर सरकार विरोधी खबरें दिखाने वाले चैनलों की नकेल कसने की व्यवस्था की जा सके। फिलहाल तो खबर पढ़िए, और इसके निहितार्थ को समझिए-
मुख्यमंत्री सचिवालय से हो रही 24 चैनलों की निगरानी
अंबरीश कुमार
लखनऊ, 9 अक्तूबर। उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार खबरों को लेकर काफी संवेदनशील है। यही वजह है कि हर खबर पर नजर रखी जा रही है। प्रिंट मीडिया को तो हाल ही में बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने बाकायदा अप्रत्यक्ष निर्देश दिया था कि अदालती कार्यवाही की कैसे रिपोर्ट करनी चाहिए। क्या खबर होती है और क्या खबर नहीं होनी चाहिए, क्या लिखना चाहिए, और क्या हटा देना चाहिए आदि-आदि। इलेक्ट्रानिक मीडिया के बढ़ते दायरे को देखते हुए अब राज्य सरकार काफी आधुनिक नियंत्रण कक्ष बनाकर खबरों की निगरानी कर रही है। मुख्यमंत्री सूचना परिसर में बने नियंत्रण कक्ष में अब तक चौबीस चैनलों की खबर पर नजर रखी जाती थी जिसे अब बढ़ाकर 28 चैनलों को दायरे में लाया जा रहा है। नियंत्रण कक्ष में छह टीवी मानिटर हैं और एक बड़ा मास्टर मानिटर टीवी है। छह मानिटर टीवी पर सबेरे सात बजे से रात बारह बजे तक सूचना विभाग के अधिकारी कर्मचारी इस काम में जुटे रहते हैं।
हर मानिटर टीवी पर एक साथ चार चैनलों की निगरानी की जाती है जबकि मास्टर मानिटर टीवी पर 24 चैनलों की निगरानी की जाती है। नौ-नौ घंटे की डयूटी में दो शिफ्टों में यह काम होता है। विशेष स्थितियों में तीन शिफ्ट भी लगाई जाती हैं। टीवी चैनलों की निगरानी की यह व्यवस्था प्रमुख सचिव सूचना विजय शंकर पांडेय के आने के बाद दुरुस्त की गई। विजय शंकर पांडेय ने इसे अत्याधुनिक रूप देते हुए हर घंटे की महत्वपूर्ण खबर को मुख्यमंत्री तक पहुंचाने की व्यवस्था की है। जो लोग खबरों की निगरानी का काम कर रहे हैं, वे हर खबर पर नोट बनाकर संबंधित सचिव को भेज देते हैं। इसके साथ ही सभी खबरों की सीडी बनाकर उसका रिकार्ड रखा जा रहा है। हालांकि इसका एक पहलू यह भी है कि इसके तहत प्रदेश में घटने वाली छोटी-बड़ी घटना की जानकारी संबंधित अफसरों और मुख्यमंत्री तक पहुंच जाती है।
मऊ में जब पुलिस थाने पर हिंसा हुई तो इस निगरानी व्यवस्था के चलते ही फौरी कार्रवाई करते हुए प्रशासन ने पीएसी की बटालियन भेज दी थी। इसी तरह एक दलित महिला की पिटाई के बाद गर्भपात की खबर फौरन ऊपर पहुंचाई गई और तुरंत जिला प्रशासन को कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया। यह पहलू सरकारी कामकाज में इस निगरानी व्यवस्था की सकारात्मक भूमिका को दर्शाता है. यही वजह है कि मुख्यमंत्री सचिवालय के आला अफसर इस निगरानी व्यवस्था से काफी उत्साहित हैं. एक अफसर ने कहा-हमें नहीं पता कि इस तरह की व्यवस्था किसी और राज्य में है या नहीं, पर हमारे प्रदेश में हर महत्तवपूर्ण घटना की जानकारी घंटे भर के भीतर मुख्यमंत्री तक पहुंच जाती है।
अब इस व्यवस्था के दूसरे पहलू पर भी गौर करें। इस निगरानी व्यवस्था से यह भी पता चल जाता है कि कौन सा चैनल और कौन-कौन से पत्रकार सरकार विरोधी खबरों पर फोकस किए हुए हैं। चूंकि हर खबर का रिकार्ड होता है इसलिए सरकार की आलोचना करने वाली खबरों की संख्या से पत्रकार और चैनलों की भी शिनाख्त हो जाती है। चूंकि हर व्यवस्था में एक वर्ग सत्ता के साथ होता है तो दूसरा सत्ता के खिलाफ। ऐसे में उन पत्रकारों के लिए अब जोखिम बढ़ता जा रहा है जो सरकारी नीतियों के खिलाफ मुखर हैं।
इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. विक्रम राव ने कहा- सरकार अपनी जानकारी के लिए खबरों की निगरानी करे उससे किसी को फर्क नहीं पड़ता लेकिन अगर इससे आगे बढ़ते हुए अगर नियामक और नियंत्रण की कोशिश हुई तो इसका तीखा विरोध होगा। निगरानी और नियंत्रण के बीच बहुत बारीक रेखा होती है जिसे कोई भी उत्साही अफसर कभी भी पार कर सकता है। सतीश चंद्र मिश्र ने मीडिया को जो नसीहत दी, उससे इसका आभास मिलता है। एक राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक के ब्यूरो चीफ ने कहा-अगर आप सत्ता विरोधी खबरें देते हैं तो फिर आपकी मान्यता भी रद्द हो सकती है और नई मान्यता देने में तरह-तरह के अड़ंगे लगाए जा सकते हैं. मुझसे अब नियुक्ति पत्र मांगा जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में पत्रकारों की मान्यता निरस्त की गई. इसमे कुछ तो वो हैं जो काम धंधा दुसरा करते रहे हैं पर मान्यता पत्रकार की लिए थे पर कुछ वे भी हैं जो सरकार की नीतियों के खिलाफ मुखर रहे हैं. एक छोटा सा वर्ग वो भी है जो आला अफसरों के निशाने पर हैं. इन सब बातों की वजह से राज्य सरकार की इस कवायद को गंभीरता से लिया जा रहा है.