सवालः तिब्बती लोग आजादी चाहते हैं लेकिन आप पूर्ण वास्तविक स्वायत्ता की बात करते हैं ये मसला क्या है…
सामदोंग रिंपोचेः (कुछ बोलने से पहले ही सामदोंग रिंपोचे की आंखों में चमक और चेहरे पर तेज बढ़ जाता है) निर्वासन के बाद से तिब्बती समुदाय एक प्रजातांत्रिक देश में रह रहे हैं… प्रजातंत्र में हर किसी को अपने विचार रखने की आजादी होती है। इसी वातावरण का असर शरणार्थी तिब्बतियों पर भी है, लेकिन तिब्बत के केंद्रीय प्रशासन नीति पूर्ण वास्तविक स्वायत्ता की है क्यों कि उसी के मिलने की संभावना ज्यादा लगती है… और इससे तिब्बत के लोग विभाजित नहीं रहेंगे… सब इकट्ठे रहेंगे। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की राय से अस्सी प्रतिशत तिब्बती समुदाय सहमत लगते हैं। बीस प्रतिशत तिब्बती आजादी की ही मांग कर रहे हैं। फिर भी हम मध्यम मार्ग यानि पूर्ण वास्तविक स्वायत्ता ही मांग रहे हैं।
सवालः क्या तिब्बत की आजादी सिर्फ बातों से मिल पाएगी, शस्त्र या सेना और शहादत के बिना आजादी संभव है…
सामदोंग रिंपोचेः हम फौज खड़ी नहीं करेंगे…हम अहिंसा शस्त्र से चीन को हराएंगे…शहादत तो तिब्बती पिछले पचास सालों से लगातार दे रहे हैं।
(ये सारी बातचीत बिल्कुल पांच साल पहले जैसी थी… लेकिन इन सब के बीच सामदोंग रिंपोचे की एक बात बिल्कुल नई और अलग थी…उन्होंने कहा, ‘हम पचास साल से भारत में शरणार्थी जीवन जी रहे हैं…हमारा आंदोलन अभी पचास साल या उससे भी आगे तक चल सकता है…अब हम भारत की नागरिकता की छूट निर्वासित तिब्बतियों को देने पर विचार कर रहे हैं।’ रिंपोचे इससे पहले कभी निर्वासित तिब्बतियों को भारत में वोटिंग राइट या भारतीय नागरिकता के पक्ष में दिखाई नहीं दिए थे।)
सवालः तिब्बतियों को भकतीय मागरिकता के मुद्दे पर आपकी राय क्या है…
सामदोंग रिंपोचेः भारत में वोटिंग राइट या भारतीय नागरिकता की मानसिकता… निर्वासित तिब्बतियों को, तिब्बत की वास्तविक स्वायत्ता के लिए चल रहे आंदोलन से दूर कर सकती है… निर्वासित तिब्बतियों की ये तीसरी पीढ़ी चल रही है… ये भी सच है कि भारत में रहते हुए निर्वासित तिब्बतियों ने स्वाबलंबन हासिल कर लिया है।
सवालः आपने कहा है कि चीन प्रजातांत्रिक देश बन जाता तो तिब्बत को ज्यादा सहूलियत होगी….
सामदोंग रिंपोचेः हां, हमने जरूर कहा है… चीन प्रजातांत्रिक देश बनेगा तो उसका नया संविधान लिखा जाएगा और हम सब उसके भागीदार होंगे…और उस समय उस संविधान में तिब्बत ऐसी स्वायत्ता होगी जो तिब्बत की संस्कृति को, तिब्बत की आध्यात्मिक परंपरा को ठीक ढ़ग से संरक्षित और संवर्धित कर सके
सवालः तिब्बत की आजादी या स्वायत्ता में चीन की ब्यूरोक्रेसी और वो सैन्य अधिकारी आड़े आ रहे हैं, जिन्हेंने चीन में एंटी स्पिलिटिज्म नेटवर्क तैयार कर रखा है…
सामदोंग रिंपोचेः ऐसा कहा जा रहा है कि एंटी स्पिलिटिज्म नेटवर्क में इस वक्त चार लाख से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं उन्हें डर है कि तिब्बत की आजादी से ये चार लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे… ऐसा हमारा मानना नहीं उन लोंगों का, महामहिम दलाई लामा कई बार कह चुके हैं कि तिब्बत को स्वायत्त तिब्बत में सभी लोग काम करते रहेंगे… चाहे वो सैन्य कर्मचारी-अधिकारी हो या गैर सैनिक… ये किसी और का नहीं बल्कि खुद चीन के वर्तमान शासन का दुष्प्रचार है…पहले भी करता रहा है।
सवालः स्वायत्ता देने के बाद भी क्या चीन तिब्बत की संस्कृति को आत्मसात कर पाएगा…जबकि तिब्बत की और भारत की संस्कृति एक दूसरे के नजदीक हैं…
सामदोंग रिंपोचेः हां, ये विडंबना है… तिब्बत की धर्म-दर्शन-संस्कृति और रीति-रिवाज भारत के निकट ही नहीं भारतीय ही हैं, तिब्बत की कोई भी चीज ऐसी नहीं है जिसका प्रावधेय और स्रोत भारत से हो कर नहीं गया है। भाषा-व्याकरण-साहित्य-संस्कृति-दर्शन-धर्म-आयुर्वेद और ज्योतिष, वहां जो आज कुछ है वो भारतीय विद्या है, भारतीय संस्कृति है, भारतीय परंपरा है…लेकिन हमें ये आश्चर्य होता है कि भारत ने तिब्बत के ऊपर अपना संप्रभुत्व क्यों नहीं जताया, चीन ने क्यों जताया…हालांकि इसका अपना अलग इतिहास है…। इतना जरूर है कि चीनी शासान के भीतर मिली स्वायत्ता में कठिनाई तो जरूर होगी…मगर हिंदुस्तान के साथ रहने की तो उसकी संभावना ही नहीं दिखाई देती है… ये MIGHT IS RIGHT का सिद्धांत आज ज्यादा माना जा रहा है, वनस्पत पुराने समय के… तो चीन के साथ रहने में कठिनाई तो रहेगी…ये यथार्थ है कि तिब्बत की जो कुछ परंपरा और विद्या है वो भारतीय है।
…क्रमशः