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सफाईकर्म घटिया, पत्रकारिता श्रेष्ठ- ये कैसी मानसिकता?

यशवंत जी नमस्कार! ‘सफाईकर्मी बना पार्ट टाइम पत्रकार‘ शीर्षक से प्रकाशित खबर पढ़ा। दरअसल जब कोई आदमी बहुत थक जाए या लगातार एक ही काम को करते-करते ऊब जाए तो उसकी ऊर्जा नकारात्मक दिशा में जाने लगती है। किसी व्यक्ति के प्रति पूर्वाग्रह होने से यह गति और भी ज्यादा उग्र हो जाती है। ‘सफाईकर्मी बना पार्ट टाइम पत्रकार‘ शीर्षक से प्रकाशित खबर इसी मानसिकता का नमूना है।

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यशवंत जी नमस्कार! ‘सफाईकर्मी बना पार्ट टाइम पत्रकार‘ शीर्षक से प्रकाशित खबर पढ़ा। दरअसल जब कोई आदमी बहुत थक जाए या लगातार एक ही काम को करते-करते ऊब जाए तो उसकी ऊर्जा नकारात्मक दिशा में जाने लगती है। किसी व्यक्ति के प्रति पूर्वाग्रह होने से यह गति और भी ज्यादा उग्र हो जाती है। ‘सफाईकर्मी बना पार्ट टाइम पत्रकार‘ शीर्षक से प्रकाशित खबर इसी मानसिकता का नमूना है।

खबर में सफाईकर्म को अत्यंत ही गया गुजरा तथा पत्रकारिता को श्रेष्ठ कार्य बताने का प्रयास किया गया है। सोचने की बात है कि जब कोई दलित या गरीब व्यक्ति राजनीति या प्रशासन के उच्च पद पर पहुंचता है तो उसके गुणगान में कई पन्ने काले कर दिए जाते है। लेकिन जब एक सफाईकर्मी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम बढ़ाया तो तथाकथित बुद्धिजीवी पत्रकार वर्ग के पेट में दर्द होने लगा। खबर में सफाई कर्म को अत्यंत घृणित व निम्न कार्य बताने का प्रयास किया गया है। वास्तव में हम सभी को इसे एक सकारात्मक नजरिये से देखते हुए सफाईकर्मी के पत्रकारिता में आने की घटना की दिल खोलकर तारीफ करना चाहिए था, न कि पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किसी को हतोत्साहित करना।

शुभकामनाओं के साथ !

योगेश्वर शर्मा

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0 Comments

  1. बी.पी.गौतम

    January 22, 2010 at 2:58 am

    पत्रकारिता से भी विश्वास उठ जायेगा
    यशवन्त जी सफाई कर्मी बना पार्ट टाइम पत्रकार खबर पड़ने के बाद सफाई कर्म घटिया पत्रकारिता श्रेष्ट-ये कैसी मानसिकता बाली खबर भी पड़ी तो न चाहते हुए भी अपने को लिखने से रोक नहीं पाया।
    सफाई कर्मी के पत्रकार बनने की खबर साधारण सी लग रही है। राशन डीलर, पीडब्ल्यूडी, आरईएस, जिला पंचायत आदि के ठेकेदार, अध्यापक, बाबू, नेता, माफिया, दबंग और गुण्डे पत्रकार बन सकते हैं तो एक सफाई कर्मी भी बन गया। इसमें नया या खास क्या है? …कुछ भी तो नहीं। लेकिन जो पत्रकारिता से प्रेम करते हैं, जो पत्रकारिता को सेवा का क्षेत्र मानते हैं। उनके लिए यह खबर चिन्ताजनक है क्योंकि पत्रकार आम आदमी की वकालत करता है। शोषण, अत्याचार और अनाचार के विरूद्ध आवाज बुलन्द करता है। दबंगों, माफियाओं, गुण्डों और सिस्टम के खिलाफ लड़ता है। ऐसे में यही लोग पत्रकारिता करने लगेंगे तो फिर आम आदमी की आवाज कौन उठायेगा? राशन डीलर ही पत्रकार होगा तो राशन न बंटने की खबर कौन लिखेगा? ठेकेदार ही पत्रकार होगा तो गुणवत्ता खराब होने पर कौन छापेगा? दबंग, माफिया या गुण्डे ही पत्रकार होंगे तो इनके खिलाफ कौन लिखेगा? सफाई कर्मी से पत्रकार बनने बाला व्यक्ति अगर अपने कार्य को ईमानदारी से ही करता रहता है और लापरवाही होने पर प्रमुखता से फोटो भी छापता है तो उसका बाकई स्वागत होना चाहिए। अगर वह सफाई कार्य से बचने के लिए पत्रकार बना है तो घोर विरोध भी होना चाहिए।
    यही बात संस्थानों पर भी लागू होती है। पाठक अमर उजाला की खबरों को सच इसी लिए मानते हैं कि अमर उजाला के मालिक पत्रकारिता की आड़ में दूसरा काम नहीं कर रहे हैं। अमर उजाला किसी भी स्थिति में खबर के साथ इसी लिए न्याय कर पाता है जब çक ऐसा सभी संस्थान नहीं कर पाते। अन्य कई संस्थानों के भी मालिक ऐसे हैं जिनका कोई और कारोबार नहीं है पर वह संस्थान समाज व पाठकों के लिए नहीं चला रहे हैं। वह लोग बाजार में ग्राहकों के बीच काम कर रहे हैं। उनके वर्ष के टारगेट फिक्स हैं और उसी टारगेट पर ध्यान रहता है। खबरों से कोई लेना-देना नहीं है। इस लिए पत्रकारिता को बचाने के पक्षधरों को खास कर बड़े लोगों को आगे आना चाहिए अन्यथा कोई तो बजह है जो दुनिया में जितने अखबार व चैनल है उतने अकेले भारत में हैं जब çक आजादी को अभी तक सात दशक भी नहीं हुए हैं। हालात अगर ऐसे ही रहे और बिगड़ते ही रहे तो एक दिन कार्यपालिका व व्यवस्थापिका की तरह ही पत्रकारिता से भी लोगों का विश्वास उठ जायेगा।
    बी.पी.गौतम
    स्वतन्त्र पत्रकार
    9411222163

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