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छंटनी का मारा पत्रकार बेचारा जिंदगी से हारा

सारा समाज उन्हें ज्ञानी मानता है। वो चौबीसों घंटे खबरों के पीछे भागता रहता है। आज जब नौकरी से निकाला जा रहा है तो खुद हैरान और परेशान है। वो समझ नहीं पा रहा, चूक कब हो गई, कहां हो गई। सोच रहा है कि संपादक जी की इतनी सेवा करने के बावजूद उसे मेवा क्यों नहीं मिला। उनका रिजर्वेशन कराता था। मेहमानों को रिसीव करने रात को स्टेशन जाता था। जब संपादक जी कहीं बाहर जाते तो उन्हें छोड़ने जाता था। हां, बच्चों को स्कूल से भी लाता, ले जाता था। फिर आखिर चूक कहां हो गई? कैसे हो गई?

जी हां, बात पत्रकारों की ही हो रही है। मीडिया में एक बड़ा तबका ‘स्ट्रिंगर’ होता है। खास बात यह कि उनके इस नाम को केवल मीडिया वाले ही जानते हैं। ‘ग्रेड’ नाम की मक्खन लगी रोटी दिखाकर उसका खूब शोषण भी होता है।

<p align="justify">सारा समाज उन्हें ज्ञानी मानता है। वो चौबीसों घंटे खबरों के पीछे भागता रहता है। आज जब नौकरी से निकाला जा रहा है तो खुद हैरान और परेशान है। वो समझ नहीं पा रहा, चूक कब हो गई, कहां हो गई। सोच रहा है कि संपादक जी की इतनी सेवा करने के बावजूद उसे मेवा क्यों नहीं मिला। उनका रिजर्वेशन कराता था। मेहमानों को रिसीव करने रात को स्टेशन जाता था। जब संपादक जी कहीं बाहर जाते तो उन्हें छोड़ने जाता था। हां, बच्चों को स्कूल से भी लाता, ले जाता था। फिर आखिर चूक कहां हो गई? कैसे हो गई? </p><p align="justify">जी हां, बात पत्रकारों की ही हो रही है। मीडिया में एक बड़ा तबका 'स्ट्रिंगर' होता है। खास बात यह कि उनके इस नाम को केवल मीडिया वाले ही जानते हैं। 'ग्रेड' नाम की मक्खन लगी रोटी दिखाकर उसका खूब शोषण भी होता है। </p>

सारा समाज उन्हें ज्ञानी मानता है। वो चौबीसों घंटे खबरों के पीछे भागता रहता है। आज जब नौकरी से निकाला जा रहा है तो खुद हैरान और परेशान है। वो समझ नहीं पा रहा, चूक कब हो गई, कहां हो गई। सोच रहा है कि संपादक जी की इतनी सेवा करने के बावजूद उसे मेवा क्यों नहीं मिला। उनका रिजर्वेशन कराता था। मेहमानों को रिसीव करने रात को स्टेशन जाता था। जब संपादक जी कहीं बाहर जाते तो उन्हें छोड़ने जाता था। हां, बच्चों को स्कूल से भी लाता, ले जाता था। फिर आखिर चूक कहां हो गई? कैसे हो गई?

जी हां, बात पत्रकारों की ही हो रही है। मीडिया में एक बड़ा तबका ‘स्ट्रिंगर’ होता है। खास बात यह कि उनके इस नाम को केवल मीडिया वाले ही जानते हैं। ‘ग्रेड’ नाम की मक्खन लगी रोटी दिखाकर उसका खूब शोषण भी होता है।

इऩसे कहा जाता है कि,  खूब मेहनत करो, और मेहनत करो, तुम्हारा नाम दिल्ली भेजा है, अप्रेजल में। जल्दी ही वहां से खबर आ जाएगी। मिठाई खिलानी होगी। वह खुशी से फूले नहीं समाता। सपने देखता है। अब जल्दी ही नौकरी पक्की होने वाली है। प्रमोशन होने वाला है। मगर इससे उलट,  इस स्ट्रिंगर को आज निकाला जा रहा है। मंदी का हवाला देकर उनके पेमेंट को रोका जा रहा है।

यही स्ट्रिंगर कल भूख से हुई मौतों की खबर लिखा करता था। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की बदतर हालत के बारे में सच्ची तस्वीर दिखाता था। पर अब उसका खुद का परिवार संकट में आ गया है। पत्नी-बच्चे कैसे खाएंगे, अपनी पेशानी पर बल डालते हुए सोच रहा है। अब उसे अपने बच्चों को भी इन्हीं स्कूलों में भेजना पड़ेगा। कल तक शहर में हनक थी, अब सिपाही भी नहीं पूछ रहा।

बाबूजी अलग परेशान हैं। कह रहे हैं “दसियों हजार का कैमरा खरीदा, लाखों लगाकर कोर्स कराया लेकिन आखिर हुआ क्या। अरे इसी पैसे से कोई दुकान खोल लेते या ले-देकर सरकारी नौकर हो जाते तो आज एकदम से सड़क पर तो नहीं आते। मगर नहीं, इन्हें तो शौक चर्राया था देश की सेवा करने का। समाज को बदलने का, कलम के जोर से बुराइयां खत्म करने का। कर ली मन की, खत्म हो गईं बुराइयां, बदल गया समाज।”  

रोज बड़ी-बड़ी बातें करने वाला वह पत्रकार आज चुप है, क्योंकि आज वह सोच रहा है ऐसा क्या करे ताकि परिवार का पेट भर सके, मुन्ने की पढ़ाई की फीस जमा हो सके। 


लेखक अशोक कुमार हिंदी मीडिया की खबरों के नंबर वन पोर्टल भड़ास4मीडिया के असिस्टेंट एडीटर हैं। उनसे संपर्क उनकी मेल आईडी [email protected] या उनके मोबाइल नंबर 09711666056 के जरिए किया जा सकता है।

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