‘जैसा लिखा, वैसा ही भोगा और भोग रहा हूं’

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कुलदीप शर्माश्रीमान् यशवंत सिंह जी,

सादर नमस्कार,

आपके सहयोग का मैं सदैव आभारी रहूंगा। जिस ढंग से आपने मेरे मनोभावों को व्यक्त किया है, वह वाकई अदभुत है। ऐसी अवस्था को केवल ‘स्थितप्रज्ञ’ व्यक्ति ही प्राप्त कर सकता है। मैं अपनी तरफ से वह हर कोशिश कर चुका हूं, जिनके बदौलत मुझे कोई राहत मिल सके पर आपकी इस मदद से मुझे जो सुकून मिला है, उसे शब्दों में बयान करना संभव नहीं है।

 जैसा-जैसा आपने लिखा है, ठीक वैसा-वैसा ही मैंने भोगा है और भोग रहा हूं। इस पत्र के जरिए मैं आपसे अपने बारे में और अधिक जानकारी देने की इच्छा रखता हूं, साथ ही संस्था द्वारा मेरे विरुद्ध की गई ज्यादतियों पर भी आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं। मुझे विश्वास है कि आप इसे ‘अंगुली पकड़ाई तो पोंचा पकड़ लिया’ नहीं समझेंगे। नई दुनियाजैसा कि आपको बताया जा चुका है कि वर्ष 15 फरवरी 1996 में मैंने नई दुनिया में अपना कार्यभार संभाला। समाचार पत्र के प्रबंध संपादक महेंद्र सेठिया के वादे कि छह माह बाद आपको संपादकीय में स्थानांतरित कर दिया जाएगा, के मद्देनजर मैं जब उनसे अक्टूबर में मिला तो उनका कहना था कि मुझे अभी वहीं और काम करते रहना होगा।

दैनिक भास्कर को छोड़ दिए जाने और अन्य संस्थाओं द्वारा उचित पारिश्रमिक नहीं दिए जाने की वजह से मेरी हालत ‘धोबी के कुत्ते’ की मानिंद हो चुकी थी, इसलिए मजबूरन मुझे यहीं काम करते रहना पड़ा।

इसी वर्ष (1996) के अंत में संस्था ने प्रशिक्षु संपादक परीक्षा के आवेदन पत्र आमंत्रित किए। मैंने भी इस परीक्षा हेतु अपना आवेदन दिया। संस्था द्वारा पहले भी इस प्रकार की परीक्षाएं की जाती रही थीं और यहां काम करने वाले इस परीक्षा में शामिल होते रहे थे, लेकिन मुझसे पहले तक इस परीक्षा को कोई पास नहीं कर पाया था (इंटरव्यू कॉल लेटर संलग्न)। इसके बाद हुए साक्षात्कार में तत्कालीन प्रधान संपादक अभय छजलानी ने तकरीबन आधे घंटे तक मुझसे विभिन्न सवाल किए जिनके संतोषजनक जवाब मैंने दिए थे, लेकिन जब परिणाम आया तो वही ढाक के तीन पात।

आभार के साथ

कुलदीप शर्मा

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