भोजपुरी मीडियाकर्मी भाषा व्याकरण भी जानें (1) से आगे
भोजपुरी चैनल वाले ‘दीवाल’ शब्द का धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं, लेकिन भोजपुरी भाषा के प्रचलित शब्द ‘भीत’ को छूते तक नहीं। घर के ‘बैक साइड’ के लिए वे ‘पिछुआरा’ का प्रयोग नहीं करते हैं। जब गेहूं को पीस दिया जाता है, तो उसे भोजपुरी में ‘पिसान’ कहते हैं। क्या यह उचित नहीं कि ‘आटा’ की जगह हम कहीं-कहीं ‘पिसान’ शब्द का भी प्रयोग करें। मूंगफली के ऊपरी हिस्से को, जो निकाल कर फेंक दिया जाता है, हम छिलका कहते हैं।
भोजपुरी भाषा में इसके लिए एक शब्द प्रचलित है- ‘खोइया’। यह कितना अच्छा शब्द है जो शायद निष्पन्न है। बादाम या कोई अन्य चीज जो फोड़ कर और उसका छिलका निकाल कर खाया जाता है, वह खोल की तरह है। इसी ‘खोल’ से शायद ‘खोइया’ शब्द बना है। अब एक बानगी और देखी जा सकती है। हमारे यहां (भोजपुरी) बैल या गाय के लिए उसके आकार-प्रकार के अनुसार कई शब्द प्रचलित हैं, जैसे- गोला (लाल रंग का बैल या गाय) धीवर, सोकन, मैना आदि। लाठी के लिए भी इसी तरह भोजपुरी में बाती, छिकुनी, सोंटा, लडर, लाठी, गोजी आदि शब्द हैं। अगर समाचार में पुलिस लाठी चार्ज करती है, तो इसके लिए “पुलिस से लउर भांजा’ शब्द-खंड कहें, तो कोई हर्ज नहीं है, बल्कि अच्छा ही है।
इसी तरह लड़की के लिए भी कई शब्द भोजपुरी भाषा में प्रचलित हैं- बबुनी, बच्चिया, लइकी, छौड़ी, बाची और कहीं-कहीं मइंया भी। भोजपुरी समाचारों के प्रसारण में लड़की के लिए ‘लइकी’, ‘बचिया लोग’ आदि शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए। इससे भोजपुरी भाषा तो समृद्ध होगी ही, भोजपुरी भाषा में समाचार सुनने वाले श्रोता भी चैनलों के साथ रागात्मक संबंध महसूस करने लगेंगे।
भोजपुरी जीवंत भाषा है। तभी तो भोजपुरी चैनल एक के बाद एक लांच हो रहे हैं। दुख यही है कि ये चैनल गांवों में प्रचलित हिन्दी शब्दों को ही भोजपुरी समझ कर इस्तेमाल कर रहे हैं। भोजपुरी भाषा के वैसे शब्द, जिनसे अर्थ-छवि प्रकट होती है, इस्तेमाल में नहीं आ रहे हैं। भोजपुरी की शब्द-सम्पदा काफी समृद्ध है। इसके लिए भोजपुरी के शब्दकोश देखे जा सकते हैं। ये शब्दकोश निम्नांकित हैं-
- भोजपुरी-हिन्दी कोश: प्रो.ब्रजबिहारी कुमार
- भोजपुरी-शब्द-संपदा: डा.हरदेव बाहरी
- भोजपुरी-हिन्दी कोश-विश्व भोजपुरी सम्मेलन, देवरिया
अगर इन शब्दकोशों को अवलोकित किया जाए तो लोग समझ पाएंगे कि भोजपुरी शब्द-संपदा कितनी समृद्ध है। इस सृमिद्धि का मुकाबला शायद ही विश्व की कोई भाषा कर सके। चैनल के पत्रकारों को चाहिए कि भोजपुरी की शब्द-संपदा से परिचित हों और चैनलों से प्रसारित होने वाले समाचार बुलेटिनों में सटीक शब्दों का प्रयोग करें।
(जारी)
लेखक अमरेंद्र कुमार बिहार के सासाराम जिले के निवासी हैं। वे हिंदी के प्राध्यापक रहे, बाद में सक्रिय पत्रकारिता की ओर मुड़ गए। वे कई अखबारों और पत्रिकाओं में वरिष्ठ पदों पर रहे। अमरेंद्र जी ने पत्रकारिता पर कई किताबें भी लिखी हैं। उनसे संपर्क 09990606904 के जरिए किया जा सकता है।