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भ्रष्टाचार को मीडिया भी नहीं तोड़ सकता

प्रो. रामबख्शआज का जटिल यथार्थ और मीडिया : खबर वही नहीं है जो हमें दिखाई या सुनाई देती है। उसका निहितार्थ ही उसे खबर बनाता है। खबर और विज्ञापन में जब भेद दिखाई न पड़ता हो तब निहितार्थों को समझना अधिक कठिन हो जाता है। सुप्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के आचार्य प्रो. रामबख्श ने ‘आज का जटिल यथार्थ और मीडिया’ विषय पर व्याख्यान में कहा कि छवियों का व्यापार मीडिया के समक्ष बड़ा संकट बन कर आ गया है। उदयपुर के जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड विश्वविद्यालय) के मीडिया अध्ययन केन्द्र द्वारा आयोजित व्याख्यान में प्रो. रामबक्ष ने कहा कि मीडिया जाने-अनजाने जब इस यथास्थितिवाद को प्रेषित करता है तो सामान्य जन में परिवर्तन को कोई आकांक्षा नहीं रह जाती।

प्रो. रामबख्श

प्रो. रामबख्शआज का जटिल यथार्थ और मीडिया : खबर वही नहीं है जो हमें दिखाई या सुनाई देती है। उसका निहितार्थ ही उसे खबर बनाता है। खबर और विज्ञापन में जब भेद दिखाई न पड़ता हो तब निहितार्थों को समझना अधिक कठिन हो जाता है। सुप्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के आचार्य प्रो. रामबख्श ने ‘आज का जटिल यथार्थ और मीडिया’ विषय पर व्याख्यान में कहा कि छवियों का व्यापार मीडिया के समक्ष बड़ा संकट बन कर आ गया है। उदयपुर के जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड विश्वविद्यालय) के मीडिया अध्ययन केन्द्र द्वारा आयोजित व्याख्यान में प्रो. रामबक्ष ने कहा कि मीडिया जाने-अनजाने जब इस यथास्थितिवाद को प्रेषित करता है तो सामान्य जन में परिवर्तन को कोई आकांक्षा नहीं रह जाती।

उन्होंने लोकतंत्र के चारों स्तम्भों की स्थिति और महत्व का विशद विश्लेषण कर कहा कि 1952 में आए उपन्यास ‘मैला आंचल’ में फणीश्वर नाथ रेणु ने बावनदास की हत्या से बता दिया था कि भ्रष्टाचार अब सामाजिक जीवन का अंग बन चुका है जिसे मीडिया भी नहीं तोड़ सकता। उन्होंने इसे जनरुचि, वोट और मुद्दों को प्रभावित करने वाला संकट बताते हुए कहा कि निजीकरण के दौर में यथास्थितिवाद को यह संकट बढाता है।

आयोजन के विशिष्ट अतिथि प्रशासनिक अधिकारी शंकरलाल चौधरी ने कवि पाश की प्रसिद्ध पंक्ति ‘सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना’ को उद्धृत कर कहा कि निरन्तर भय और असुरक्षा में जी रहे जन समुदाय को शक्तिशाली व्यवस्था विभिन्न तरीकों से नियिन्त्रत करती है। उन्होंने कहा कि इस भय को तोड़ने और परिवर्तन की आकांक्षा का सपना देख सकने का वातावरण बनाने की चुनौती मीडिया के समक्ष है। चौधरी ने एक शोध अध्ययन को उद्धृत कर बताया कि हमारे देश की 77 फीसद आबादी बीस रुपए प्रतिदिन की ही क्रय क्षमता रखती है तब मीडिया के सामने समानता और बेहतरी के लिए काम करने का दायित्व और ज्यादा बढ़ जाता है।

इससे पहले मीडिया अध्ययन केन्द्र के समन्वयक डॉ. पल्लव ने प्रो. रामबख्श का परिचय दिया और व्याख्यान के विषय की रूपरेखा रखी। डॉ. पल्लव ने केन्द्र द्वारा संचालित पाठ्यक्रमों की विस्तृत जानकारी भी दी। अध्यक्षीय उदबोधन में माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. एन. के. पण्ड्या ने कहा कि आज के दौर में ज्ञान के सभी अनुशासनों को अपनी प्रासंगिकता समाज और जीवन के पक्ष में सिद्ध करनी होगी।

प्रो. पण्ड्या ने कहा कि सामाजिक सरोकारों वाली पत्रकारिता ने ही राजस्थान विद्यापीठ जैसी संस्थाओं को जन्म दिया है। अंत में केन्द्र के संकाय सदस्य आशीष चास्टा ने सभी का आभार व्यक्त किया। आयोजन में मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के सचिव नन्दकिशोर शर्मा, प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया, डॉ. मलय पानेरी, डॉ. अवनीश नागर सहित शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित थे।

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