पत्रकार भाई लोग जब किसी के पीछे पड़ते हैं तो हाथ धोकर पड़ जाते हैं। एक खबर को भड़ास4मीडिया पर नाम-पहचान के साथ प्रकाशित कराने के लिए कल शाम से आधा दर्जन से ज्यादा पत्रकार साथी फोन कर चुके हैं। इनकी एक ही जिद है कि खबर हर हाल में पब्लिश होनी चाहिए, नाम व पहचान के साथ छपनी चाहिए। खबर क्या है, इसे संक्षेप में और बिना नाम-पहचान के जान लें, फिर आप बताएं कि क्या ऐसी खबरों को नाम-पहचान के साथ विस्तार से पब्लिश करना चाहिए?
एक टीवी न्यूज चैनल के वरिष्ठ पत्रकार के पुत्र और यूपी के एक अधिकारी की पुत्री लखनऊ के चिनहट इलाके में सफारी कार के अंदर पुलिस द्वारा पकड़े गए। कहा जा रहा है कि वे लोग आपत्तिजनक अवस्था में थे। पुलिस इन दोनों युवाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई करती, इससे पहले ही वरिष्ठ पत्रकार और अधिकारी सक्रिय हो गए। पुलिस को दबाव में आकर बिना कोई लिखा-पढ़ी किए ही दोनों को छोड़ना पड़ा। मामला बस इतना भर है। पत्रकार खुद कहीं सीधे इनवाल्व नहीं हैं। लिखा-पढ़ी हुई नहीं है। अपराध भी कोई इतना बड़ा नहीं कि पुलिस के कार्रवाई न करने पर चिंतित हुआ जाए। उल्टे, ऐसे मामलों में पुलिस अगर गार्जियन की भूमिका निभाए तो ही ज्यादा अच्छा।
खैर, यह खबर, घटना, जानकारी, जो कह लें, कुछ पत्रकारों के पास पहुंची तो लोगों ने इसे तिल का ताड़ बनाने का इरादा कर लिया। कल शाम से भड़ास4मीडिया के पास फोन पर फोन आ रहे हैं। सभी केवल एक ही बात कह रहे हैं कि इस खबर को प्रकाशित कर दीजिए। इन लोगों का यह भी कहना है कि मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण दब गया, मीडिया में कहीं नहीं आया, इसे पब्लिश होना चाहिए था। इन लोगों से जब भड़ास4मीडिया की तरफ से यह पूछा गया कि अगर किसी सज्जन का पुत्र या भाई या रिश्तेदार कोई गलत हरकत करता है तो उसका जिम्मेदार वह सज्जन क्यों माने जाने चाहिए? यह तो वही हुआ कि करे कोई और भरे कोई। इस सवाल पर ज्यादातर लोग चुप हो जा रहे हैं।
वैसे भी, लड़की-लड़का के किसी कार में पाए जाने पर प्रथम दृष्टया यही मान लिया जाता है कि ये लोग अश्लील हरकत कर रहे होंगे पर कई बार इससे उलट पाया गया। पुलिस बड़े अपराधियों, गुंडों, भ्रष्टाचारियों को तो सलाम बजाती है लेकिन जहां कोई किशोर या किशोरी प्रेम करते दिख जाएं, पार्क में बैठे दिख जाएं, कार में बैठे मिल जाएं तो फिर एकदम से कानून व्यवस्था का मामला बना दिया जाता है। तुरंत एक्शन लिया जाता है। लड़का-लड़की को समझाने की जगह उनका जुलूस निकालकर उन्हें मानसिक रूप से इस कदर पीड़ा पहुंचाया जाता है कि वे उस सदमे से ता-उम्र नहीं उबर पाते।
भड़ास4मीडिया का स्पष्ट तौर पर मानना है कि पुलिस ज्यादा बड़े अपराधों को खत्म करने की तरफ ध्यान दे। छोटे-मोटे विवाद व अपराध तो आपसी सुलह-समझौते से ही निपट जाते हैं। अगर लखनऊ के चिनहट के मामले की बात करें तो लड़का-लड़की को समझाया जाना ही काफी है। उन्हें अगर गल्ती (अगर वाकई गल्ती की हो तब) का एहसास करा दिया जाए तो आगे से ऐसी भूल कभी नहीं करेंगे। ये लड़का-लड़की कोई खूंखार क्रिमिनल तो नहीं या पेशेवर अपराधी तो नहीं कि उन्हें छोटी सी भूल के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया जाए।