कार्यक्रम : बीएसपी महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र की बेटी का विवाह समारोह स्थान : बाबू बनारसी दास बैडमिन्टन अकेडमी, गोमतीनगर, लखनऊ दिनांक : 9 दिसम्बर समय : रात 9.45 बजे : पत्रकारों के रूप कितने होते हैं, ये शायद अब खुदा भी नहीं जानता. झूठ बोलना, मक्कारी करना, अवसरवादी बनना, चापलूसी करना, मुंहदेखी प्रशंसा करना… यह सब इस पेशे के लोगों के स्वभाव का हिस्सा बन चुका है. उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के करीबी और बीएसपी नेता सतीश चन्द्र मिश्र की बेटी के विवाह समारोह में कुछ बड़े पत्रकारों ने चापलूसी की मिसाल कायम की.
बेटी के जयमाल के बाद एससी मिश्र चुनिन्दा पत्रकारों को वहां मौजूद मुख्यमंत्री मायावती से मिलवाने ले गए. जो बड़े-बड़े पत्रकार मायावती से मिलने एससी मिश्र के साथ पहुंचे, उनमें कई दिल्ली के थे, कुछ बड़े चैनलों के सर्वेसर्वा तो कुछ छोटे चैनलों के. कुछ लखनऊ के एडिटर थे तो कुछ स्वतंत्र पत्रकार. संख्या इनकी रही होगी यही करीब आधा दर्जन के आसपास.
इन दिग्गज और वरिष्ठ पत्रकारों का नाम इसलिए नहीं दिया जा रहा है क्योंकि वे मायावती के सामने की गई चापलूसी भरी बात को शादी के मौके पर हुई सहज-सरल बातचीत साबित करने में जुट जाएंगे और चेहरा खुलने पर इसे बचाने के लिए कई तरह की कवायद में भी लग जाएंगे. ये पत्रकार एससी मिश्र के साथ चल पड़े. इनके पीछे मायावती का सुरक्षा घेरा और फिर सुरक्षकर्मियों के पीछे खड़े तमाम और नामी-गिरामी पत्रकार चेहरा दिखाने की होड़ में शामिल.
ये मंडली जब एससी मिश्र के साथ वहां पर पहुंची तो परिचय और दुआ सलाम के बाद एक पत्रकार ने मायावती की तारीफ में कहा- बहिन जी, आपने जो कर दिखाया है वो पिछले कई दशक में कई सीएम मिलकर नहीं कर पाए.
मंदिर-मस्जिद मसले पर जोश-जोश में उन्होंने चापलूसी भरी एक ऐसी बात भी कह डाली जिसका उल्लेख करना थोड़ा ठीक नहीं होगा.
बगल में खड़े एक टीवी पत्रकार ने ये जोड़ दिया कि “आप जो कहती हैं वो करके दिखाती हैं बहिन जी”.
मायावती मुस्करा रहीं थीं चापलूसों के रूप को देख.
इसी बीच एक वरिष्ठ पत्रकार को लगा कि बाजी उनके हाथ से निकली जा रही है और मौका सुनहरा है तो बोले… बहिन जी लखनऊ को आपने बहुत ख़ूबसूरत बना दिया है….
माया हंस दी.
अब बारी एक और संपादक की थी. उन्हें लगा कि इस अवसर पर वो क्यों चूकें. कहने लगे… ”मुख्यमंत्री जी, लखनऊ में पत्थर वाला लुक दिल्ली जैसा हो गया. आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं.”
मायावती ने झट जवाब दिया- थोड़ा काम अभी बचा है, पूरा हो जायेगा तो पत्रकारों को दिखाएंगी.
सब हेहेहेहे करके हंसने लगे.
चापलूसी अभी कहां खत्म हुई थी. फिर बात आई कि बहिन जी के साथ एक-एक तस्वीर हो जाये. पहल एससी मिश्र ने की. भाई लोगों ने फोटो खिंचाई. नब्बे डिग्री पे झुक के बहिन जी को नमस्ते किया. बाहर आये तो कैबिनेट सेक्रेटरी शशांक शेखर सिंह से भाई लोग लिपट गए. अपना उनसे खास याराना दिखाने की होड़ मची. वहां आये अफसरों से पीआर शुरू हो गया. नंबर लिए और दिए जाने लगे. साथ में ये भी पक्का कर रहे थे पत्रकार बंधु कि नंबर को अफसर ने मोबाइल में फीड किया या नहीं.
बात यहीं तक रहती तो ठीक था. जो पत्रकार बंधु मायावती से इस तरह नहीं मिल पाए वो खफा भी हुए भेदभाव पर क्योंकि एससी मिश्र के करीबी पत्रकारों की मण्डली ने दूसरे पत्रकारों को मौका ही नहीं दिया. मन मसोसकर रह गए बाकी बेचारे. पत्रकार भाइयों ने मिश्र जी के यहां शादी में खाना कम खाया. पीआर और चापलूसी ज्यादा की. अब आप ही बताइये, इन बड़े पत्रकारों से कोई क्या सीख लेगा और ये लोग समाज को कौन सी दिशा देंगे?
लखनऊ से राहुल की रिपोर्ट