मेरठ के कर्फ्यू की विस्तृत कवरेज ने अखबारों को इतना उत्साहित कर दिया है कि वो ये भी नहीं समझ पा रहे हैं कि कौन-सी खबर खुद उनके कैमरापर्सन / फोटोग्राफरों के लिए नुकसानदायक साबित होगी और कौन सी नहीं. यहां जिस प्रकाशित खबर की कटिंग को चस्पा किया गया है, उसे पढ़ने पर मीडिया का दिमाग रखने वाला कोई भी आसानी से समझ सकता है कि अगर ऐसी खबरें हम छापेंगे तो कल भीड़ सबसे पहले हमारे कैमरापर्सन / फोटोग्राफरों को ही निशाना बनाएगी, और ऐसा अक्सर होता भी है.
यकीन नहीं तो हर उस कैमरापर्सन / फोटोग्राफर से पूछ लो जिसे अपने कैमरे की भूख मिटाने के लिए, दंगे फसाद जैसे हालातो में भी सबसे आगे डटे रहना पड़ता है… ऐसे हालात में “कलम” तो पता ही नहीं चलती कि कहां चल रही है, और अगर हालात बिगड़ जाए तो “कलम” बंद करके हाथ-बांध लो तो भी काम चल जाता है लेकिन कैमरा बंद करने से नौकरी चली जाती है.
ऐसे एंटी-मीडिया माहौल बनाने वाली खबरों पर थोड़ा समझदारी से काम लेना चाहिए…