Connect with us

Hi, what are you looking for?

कहिन

आत्म-नियमन की दिशा में पहला कदम

मुकेश कुमारअरसे बाद न्यूज़ चैनलों ने एक ऐसा काम किया है जिसके लिए उनको शाबाशी दी जानी चाहिए। हाल के दिनों में पहली बार उन्होंने ऐसी सामूहिक समझदारी व आत्मानुशासन का परिचय दिया है जिसकी उनसे अपेक्षा की जाती है। उन्होंने नोएडा के एक बिज़नेस स्कूल की छात्रा का एक ऐसा एमएमएस नहीं दिखाया जो कि छप्परफाड़ू टीआरपी हासिल करने का ज़रिया हो सकता था। एमएमएस को दिखाने का लोभ संवरण ही उन्होंने नहीं किया, बल्कि इससे जुड़ी पूरी ख़बर को ही उन्होंने सेंसर कर दिया।

मुकेश कुमार

मुकेश कुमारअरसे बाद न्यूज़ चैनलों ने एक ऐसा काम किया है जिसके लिए उनको शाबाशी दी जानी चाहिए। हाल के दिनों में पहली बार उन्होंने ऐसी सामूहिक समझदारी व आत्मानुशासन का परिचय दिया है जिसकी उनसे अपेक्षा की जाती है। उन्होंने नोएडा के एक बिज़नेस स्कूल की छात्रा का एक ऐसा एमएमएस नहीं दिखाया जो कि छप्परफाड़ू टीआरपी हासिल करने का ज़रिया हो सकता था। एमएमएस को दिखाने का लोभ संवरण ही उन्होंने नहीं किया, बल्कि इससे जुड़ी पूरी ख़बर को ही उन्होंने सेंसर कर दिया।

ये फैसला भी किसी एक चैनल का नहीं था बल्कि ज़्यादतर चैनलों ने आम सहमति से ऐसा किया(हालाँकि एक चैनल द्वारा इस ख़बर को दिखाने की वजह समझ में नहीं आई, वह इस सामूहिक फैसले में शामिल नहीं हुआ या उसे शामिल नहीं किया गया?)। चैनल जानते हैं कि अगर कोई चैनल इस ख़बर को दिखाता तो बाक़ी के लिए भी उसे दिखाना ज़रूरी हो जाता क्योंकि फिर बाज़ार के तकाज़े आ जाते। यही नहीं, यदि ये ख़बर एक बार चैनलों की मंडी में आ जाती तो फिर आपसी प्रतिस्पर्धा के जाल में भी फँस जाती। उसमें छत्तीस प्रकार के मसाले लगाए जाते और उसका रंग-रूप बिगड़ जाता। दिन-रात वह ख़बर चैनलों पर तान दी जाती। हर पहलू से उसकी चीर-फाड़ शुरू हो जाती और तब किसी के लिए भी उसे सँभालना मुश्किल हो जाता। कोई भी पत्रकारीय आचार संहिता की चिंता नहीं करता। नतीजा ये होता कि एक बार फिर से चैनलों की साख को बट्टा लगता। इसलिए ऐसी ख़बरों के साथ यही सलूक करना लाज़िमी था। मौजूदा हालात में एक यही मैकेनिज़्म है, जिससे न्यूज़ चैनल अपनी गिरती साख को बचा सकते हैं।

TV Newsवास्तव में ये भी पहली बार हुआ है कि चैनलों ने अख़बारों से बेहतर संयम और आत्म नियंत्रण का परिचय दिया है। एक तरफ तो चैनलों ने इस ख़बर को ही नज़रअंदाज़ कर दिया और दूसरी ओर कुछ अख़बारों ने न केवल पहले पन्ने पर ख़बर छापी, बल्कि चेहरे को छिपाते हुए उस लड़की की अर्ध नग्न तस्वीर भी छाप दी। ऐसा करने वालों में वे अँग्रेज़ी के अख़बार भी शामिल हैं जो कि खुद को बेहद ज़िम्मेदार मानते हैं और न्यूज़ चैनलों में आई गिरावट के लिए हमेशा हिंदी के चैनलों को दोष देने में लगे रहते हैं। हिंदी के एक अख़बार ने तो उस लड़की के घर के पते की तरफ इशारा करने की चूक भी कर डाली, जिससे उस लड़की की शिनाख्त करना आसान हो गया और ये सरासर ग़लत था। मगर शायद दूसरे अख़बारों से आगे निकलने की होड़ में उसने ऐसा किया। आख़िर बाज़ारू प्रतिस्पर्धा के दुष्चक्र में पत्र-पत्रिकाएं भी तो फँसे हुए हैं।

देर से सही और दबावों की वजह से ही सही, न्यूज़ चैनलों ने आत्मनियमन का रास्ता चुना है और पहली बार ऐसी पहल की है जिसे वाकई में सराहा जाना चाहिए। उनका हौसला बढ़ाया जाना चाहिए, उन्हें इस राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। लेकिन क्या इसे टीवी पत्रकारिता के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ माना जा सकता है? क्या ये कहा जा सकता है कि न्यूज़ चैनलों ने कंटेंट के उत्थान का बीड़ा उठा लिया है और अब वे पीछे नहीं हटेंगे। शायद ऐसा मानने का वक्त अभी नहीं आया है। केवल एक क़दम को बेहतर शुरूआत तो माना जा सकता है, इससे उम्मीद भी जागती है मगर आश्वस्त हुआ जा सके ऐसा नहीं है। ये भरोसा पैदा करने के लिए अभी न्यूज़ चैनलों को और भी इम्तिहान देने होंगे।

TV Newsअच्छी बात ये है कि चैनलों ने ये मानना शुरू कर दिया है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। अभी तक वे स्वीकार करने को ही तैयार नहीं थे कि न्यूज़ चैनल कहीं कुछ ग़लत कर रहे हैं। उनका रुख़ हठधर्मिता का होता था। वे किसी तरह की जवाबदेही लेने को तैयार नज़र नहीं आते थे। लेकिन एमएमएस की ख़बर को नकारना जवाबदेही की स्वीकारोक्ति है और ये एक शुभ संकेत है। हालाँकि जब उन्होंने सरकारी कंटेट कोड को मानने से इंकार करके खुद कंटेंट कोड बनाने की बात कही थी तभी जवाबदेही को स्वीकार करने की शुरूआत हो गई थी। अब तो चैनलों ने कंटेंट कोड बना लिया है और उसे लागू करना भी शुरू कर दिया है।  

दरअसल, न्यूज़ चैनलों में एक-दो नहीं बीसियों ऐसी विकृतियाँ आ गई हैं, जिनसे लोग निराश हैं। उन्हें मर्ज़ लाइलाज़ लगने लगा है, मगर हालात इतने बुरे भी नहीं हैं। अलबत्ता विकृतियों को दुरुस्त करना आसान भी नहीं है, क्योंकि वे दबाव भी अपनी जगह कायम हैं जिनकी वजह से विकृतियों के विषाणु पूरे शरीर में फैल गए थे। वह नामुराद बाज़ार अभी है और उसके पैरोकार भी हैं। मंदी ने बेशक उसे थोड़ा शिथिल कर दिया है मगर जल्दी ही वह सुरसा की तरह अपना मुँह फिर फाड़ेगा। उसे उन तमाम चीज़ों की बलियाँ चाहिए जो उसकी ताक़त को चुनौती देती हैं या उसके विस्तार की राह में रोड़े अटकाती हैं। घटिया कंटेंट की वजहें और भी हैं और देर-अबेर वे भी दबाव डालेंगी ही डालेंगी। उस सूरत में चैनलों के आत्म नियमन और आत्म नियंत्रण की परीक्षा होगी। उन्हें घने बीहड़ों में से अपना रास्ता बनाना होगा। लेकिन इसका तोड़ उन्होंने तलाश लिया है। सामूहिक रूप से इन दबावों का मुक़ाबला वे कर सकते हैं। तो दुआ कीजिए कि ये सामूहिकता और सामूहिक विवेक फले-फूले।  


लगभग ढाई दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय मुकेश कुमार गत पंद्रह वर्षों से टेलीविज़न से जुड़े हुए हैं। वे कई न्यूज़ चैनलों के प्रमुख के तौर पर काम कर चुके हैं। उनकी एक पहचान टीवी एंकर की भी है। वे एक टेलीफिल्म में अभिनय भी कर चुके हैं। उन्होंने कई किताबें लिखी और अँग्रेज़ी से अनुवाद की हैं। सुप्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका हंस में मीडिया पर उनका कॉलम लोकप्रिय है। मुकेश ने हाल-फिलहाल ब्लागिंग में भी कदम रख दिया है। उनके ब्लाग पर http://blog.deshkaal.com के जरिए पहुंच सकते हैं। उनसे संपर्क करने के लिए [email protected] या फिर [email protected] का सहारा ले सकते हैं।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement