एक बड़े अखबार के एक दुखी सज्जन ने भड़ास4मीडिया के पास एक मेल भेजा है। मेल में जो कुछ लिखा है, वह है तो बहुत मजेदार लेकिन वो बातें सच हैं या नहीं, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। इसीलिए मेल के समस्त पात्रों के नाम को गायब कर दिया जा रहा है या बदल दिया जा रहा है। फिर भी, किसी संयोग या दुर्योग से किसी से कोई समानता मिल जाए तो इसे सिर्फ दुर्योग या संयोग ही समझा जाए, ओरीजनल न माना जाए। बोले तो, दिल पे मत ले यार, प्लीज इसे सिर्फ भड़ास ही मान। मेल का मजमून यूं हैं–
इस अखबार की माया निराली है। इसके मैनेजमेंट में उंचे पद पर एक साहब आए हैं। मान लेते हैं वह ऊंचा पद ‘ओओओ’ यानि ‘ओह आपरेटिंग आफिसर’ है। जो साहब आए हैं, उनका नाम है ‘विजनथ्रो’ साहब। इन्हें प्यार से लोग अब ‘थ्रो’ साहब भी कहने लगे हैं। बताया जाता है कि उनका 65 लाख रुपये प्रति साल का पैकेज है। पहले दिन जब वे एडिटोरियल के स्थानीयों से रूबरू हुए तो पहला और आखिरी सवाल पूछा- ‘भाई, आप लोग रोज खबरें लाते हो या पूरे हफ्ते की खबरें एक साथ लाकर लगाते हो’। साथियों को उनकी इस बात पर हंसी आ गई। खैर, कोई पलट कर नहीं बोला। विजनथ्रो साहब का भी कोई कुसूर नहीं था। वे दरअसल एक कच्ची सब्जी बेचने वाली बड़ी कंपनी से जो आए थे। सब्जियां तौलवाने के सिवा उन्हें भी ज्यादा नहीं मालूम था। विजनथ्रो साहब ने इस अखबार में आते ही फालतू के कई काम बहुत दिल लगाकर किए। जैसे, सबसे पहले तो अपने बैठने का बढ़िया ठिकाना बनवाया। इस पर ठीक-ठाक खर्च कराया। इसके बाद दिवाली पर डिपार्टमेंट्स में कंपटीशन रखवा दिया। उसके बाद आफिस के अंदर रंग-रोगन करवाया। हजारों रुपये देकर मुख्य द्वार पर कला में पारंगत जनों द्वारा बढ़िया पेंटिंग करवाई। पर उन्होंने अभी तक कर्मचारियों की जेब भारी करने के बारे में कुछ नहीं सोचा। ये तो हो गई 65 लाख रुपये की सोच। कहा जा रहा है कि यह अखबार अब जल्द ही 96 लाख रुपये वाला एक और माडल लांच करने वाला है। इसे नाम दिया जाएगा ‘ओह प्रेसीडेंट’। यानि ये साहब अपने थ्रो साहब से भी उपर होंगे। अब देखते हैं कि वो क्या रंगवाते हैं!