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दुख-दर्द

थानेदार बोला- पत्रकार को गोली मार दो!

बिहार के छपरा मंडल कारा परिसर में मंगलवार की संध्या भगवान बाजार थानाध्यक्ष सोने लाल सिंह ने जो कुछ किया, उसकी जितनी भी भ‌र्त्सना की जाए कम है। उस वक्त उनका आचरण थानाध्यक्ष से ज्यादा एक रंगदार का लग रहा था। वे मीडियाकर्मियों पर गोली चलाने का इस तरह आदेश दे रहे थे जैसे वे किसी कुख्यात के साथ मुठभेड़ कर रहे हों। उन्हें इतना भी खयाल नहीं रहा कि वे किस पर गोली चलाने का आदेश दे रहे है। सामने खड़ा व्यक्ति कोई अपराधी नहीं बल्कि एक प्रेस प्रतिनिधि था। उन्हें पुलिस मैनुअल का भी ख्याल नहीं था जिसमें स्पष्ट लिखा है कि यदि कुख्यात अपराधी निहत्था है तो उस पर गोली चलाने का आदेश नहीं दिया जा सकता। बताते चलें कि मंगलवार को एक खबर के मामले में मीडियाकर्मी थानेदार के साथ ही एसपी आवास से मंडल कारा पहुंचे। वहां कमरे में नशे में धुत पड़े जवान का फोटो लिया गया, लेकिन थानेदार ने मीडियाकर्मियों को मना नहीं किया।

<p align="justify">बिहार के छपरा मंडल कारा परिसर में मंगलवार की संध्या भगवान बाजार थानाध्यक्ष सोने लाल सिंह ने जो कुछ किया, उसकी जितनी भी भ‌र्त्सना की जाए कम है। उस वक्त उनका आचरण थानाध्यक्ष से ज्यादा एक रंगदार का लग रहा था। वे मीडियाकर्मियों पर गोली चलाने का इस तरह आदेश दे रहे थे जैसे वे किसी कुख्यात के साथ मुठभेड़ कर रहे हों। उन्हें इतना भी खयाल नहीं रहा कि वे किस पर गोली चलाने का आदेश दे रहे है। सामने खड़ा व्यक्ति कोई अपराधी नहीं बल्कि एक प्रेस प्रतिनिधि था। उन्हें पुलिस मैनुअल का भी ख्याल नहीं था जिसमें स्पष्ट लिखा है कि यदि कुख्यात अपराधी निहत्था है तो उस पर गोली चलाने का आदेश नहीं दिया जा सकता। बताते चलें कि मंगलवार को एक खबर के मामले में मीडियाकर्मी थानेदार के साथ ही एसपी आवास से मंडल कारा पहुंचे। वहां कमरे में नशे में धुत पड़े जवान का फोटो लिया गया, लेकिन थानेदार ने मीडियाकर्मियों को मना नहीं किया। </p>

बिहार के छपरा मंडल कारा परिसर में मंगलवार की संध्या भगवान बाजार थानाध्यक्ष सोने लाल सिंह ने जो कुछ किया, उसकी जितनी भी भ‌र्त्सना की जाए कम है। उस वक्त उनका आचरण थानाध्यक्ष से ज्यादा एक रंगदार का लग रहा था। वे मीडियाकर्मियों पर गोली चलाने का इस तरह आदेश दे रहे थे जैसे वे किसी कुख्यात के साथ मुठभेड़ कर रहे हों। उन्हें इतना भी खयाल नहीं रहा कि वे किस पर गोली चलाने का आदेश दे रहे है। सामने खड़ा व्यक्ति कोई अपराधी नहीं बल्कि एक प्रेस प्रतिनिधि था। उन्हें पुलिस मैनुअल का भी ख्याल नहीं था जिसमें स्पष्ट लिखा है कि यदि कुख्यात अपराधी निहत्था है तो उस पर गोली चलाने का आदेश नहीं दिया जा सकता। बताते चलें कि मंगलवार को एक खबर के मामले में मीडियाकर्मी थानेदार के साथ ही एसपी आवास से मंडल कारा पहुंचे। वहां कमरे में नशे में धुत पड़े जवान का फोटो लिया गया, लेकिन थानेदार ने मीडियाकर्मियों को मना नहीं किया।

वे चाहते तो मीडिया को परिसर के गेट पर भी रुकवा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वे नशे में धुत जवान का कालर पकड़ कमरे से बाहर लाये। इस दृश्य का फोटो लिया जा रहा था। फिर भी उन्होंने कोई विरोध नहीं किया परन्तु मामला तब बिगड़ा जब मीडियाकर्मियों के सामने ही जवान ने उनका कालर पकड़ लिया। मीडियाकर्मी के सामने अपनी बेइज्जती से वे आपा खो बैठे और प्रेस वालों से भिड़ गये। तब वे जेल मैनुअल की आड़ लेकर मीडियाकर्मियों पर बरस पड़े और मुकदमा करने की धमकी दी। जब मीडियाकर्मी इससे नहीं डरे तो उन्होंने पत्रकार पंकज को गोली मार देने की धमकी तक दे डाली।

उन्हें इतना होश नहीं रहा कि जेल परिसर में गोली चलाने का आदेश स्वयं जेलर तक नहीं दे सकते। इसके लिये जेल अधीक्षक या उससे ऊपर का अधिकारी या फिर ए.डी.एम. स्तर के पदाधिकारी ही अधिकृत हैं। फिर एक थानेदार किस हैसियत से उस परिसर में गोली चलाने का आदेश देता है? यह जांच का विषय है। क्या इस तरह के पुलिस अधिकारी को किसी महत्वपूर्ण थाने का इंचार्ज बनाया जा सकता है? सारण एसपी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुये नशे में धुत जवान रामाधार पांडेय को निलंबित करने का आदेश देते हुये उसको कम्पनी में वापस कर दिया है। बताते चलें कि यही अधिकारी जब एक मोटरसाइकिल चोर को पकड़ते हैं तो फोन कर प्रेस प्रतिनिधियों एवं छायाकारों को बुलाते हैं। लेकिन जब इनके ऊपर ही कोई मामला हो गया तब वे भड़क उठते हैं और नियम कानून की दुहायी देने लगते हैं।

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