यूपी के चार मान्यता प्राप्त पत्रकारों की मान्यता यूपी सरकार ने यह कहते हुए खत्म कर दी कि ये लोग पत्रकार नहीं रह गए हैं। इनके नाम हैं- सुरेश बहादुर सिंह, ओम प्रकाश त्रिपाठी, सच्चिदानंद गुप्ता उर्फ सच्चे और मुकेश अलघ। सरकार के इस फैसले से आहत दो पत्रकारों सुरेश बहादुर सिंह और सच्चिदानंद गुप्ता उर्फ सच्चे ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वहां से स्टे ले आए। हाईकोर्ट ने सरकार से कहा है कि फिलहाल इन पत्रकारों की मान्यता बहाल रखी जाए। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश सरकार अब हाईकोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने का मूड बना रही है। बताया जा रहा है कि यूपी सरकार की मुखिया मायावती प्रेस से बहुत कम संबंध रखती है। इसी कारण शीर्ष नौकरशाहों ने पत्रकारों, खासकर सपा और मुलायम के करीबी माने जाने वाले मान्यता प्राप्त पत्रकारों को साइडलाइन करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। सूत्रों का कहना है कि पहले इन चार पत्रकारों से पूछा गया कि वे लोग स्वतंत्र पत्रकार के बतौर किन-किन अखबारों-पत्रिकाओं में लिखते हैं। इनके जवाब में जो कुछ कहा गया है, उसे सरकार ने स्वतंत्र पत्रकार होने की कसौटी पर खरा नहीं पाया। इसी के बाद इनकी मान्यता खत्म कर दी गई और एनेक्सी समेत सरकारी दफ्तरों में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई।
सूत्रों का कहना है कि यूपी में माया सरकार के राज में पिछले एक साल में पत्रकारों की मान्यता के लिए कई बार नियम बनाए और बिगाड़े गए हैं। इस सबके पीछे हैं सूचना सचिव विजय शंकर पांडेय। सूत्रों के अनुसार सरकार ने अब तय किया है कि अगर कोई वीकली अखबार 24 पेज से कम का निकलता है तो उसे अखबार की श्रेणी में नहीं माना जाएगा। इस निर्णय का पत्रकार विरोध कर रहे हैं। पत्रकारों का कहना है कि देश में 24 पेज वाले वीकली अखबार गिनने से भी नहीं मिलेंगे। पत्रकारों के मुताबिक मायावती की प्रेस से दूरी रखने की रणनीति का फायदा कुछ नौकरशाह उठा रहे हैं और पत्रकारों को प्रताड़ित करने के लिए उल्टे-सीधे नियम बना रहे हैं और पत्रकार विरोधी कदम उठा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर लखनऊ प्रेस क्लब के पूर्व सचिव रहे सुरेश बहादुर सिंह लंबे समय तक नेशनल हेराल्ड के लिए काम करते थे। इसी आधार पर उनकी मान्यता भी थी। सूत्रों के अनुसार इन दिनों सुरेश बहादुर स्वतंत्र पत्रकार के बतौर ‘अवधनामा’ और ‘चौथी दृष्टि’ नामक अखबारों में लिख रहे हैं। सरकार ने बसपा के एमएलसी सिराज मेहंदी जो पहले कांग्रेस में थे, के अखबार ‘चौथी दृष्टि’ को अखबार मानने से इनकार कर दिया और ‘अवधनामा’ के बारे में कहा कि यहां सुरेश बहादुर का लिखा पढ़ने को नहीं मिला। इसी आधार पर सुरेश बहादुर की सदस्यता समाप्त कर दी गई। फिलहाल यह प्रकरण लखनऊ में मीडियाकर्मियों और नौकरशाहों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मुद्दे पर बात करने के लिए सुरेश बहादुर सिंह के मोबाइल पर भड़ास4मीडिया की तरफ से कई बार फोन किया गया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।