अमर उजाला, मेरठ की रिपोर्टर रश्मि चौधरी अपने मां-पिता के साथ कई दिनों से जेल में हैं। यह चौंकाने वाली खबर जब भड़ास4मीडिया के पास पहुंची तो पूरे मामले की छानबीन कराई गई। पता चला है कि रश्मि और उनके मां-पिता जिस जुर्म में जेल काट रहे हैं, वो उन्होंने नहीं बल्कि किसी और ने किया है। जुर्म है चार सौ बीसी का। चार सौ बीसी करने वाले जो मुख्य आरोपी हैं, उसके रश्मि के परिजनों के नजदीकी संबंध हैं। पुलिस ने जब उन्हें पकड़ा तो उनके करीबियों पर भी गाज गिरी। पूरी कहानी इस प्रकार है। रश्मि चौधरी का घर मेरठ के हस्तिनापुर में है। इनका परिवार ओशो शिविर लगाने की जिम्मेदारी उठाता रहा है। इसी शिविर में एक बार एक सज्जन गाजियाबाद से आए। बाद में जब भी शिविर लगता, वे पधारते और अपनी व्यवहार कुशलता से रश्मि के परिवार को प्रभावित करते।
धीरे-धीरे वे इस परिवार के करीब होते गए। खुद के बारे में इतना बताते रहे कि वे गाजियाबाद में मर्चेंट नेवी के कोर्स का इंस्टीट्यूट चलाते हैं। वे कई बार अपनी पत्नी व बच्चों के साथ भी आए। रश्मि के परिजनों का भरोसा पूरी तरह कायम होने के बाद इन्होंने धीरे-धीरे जाल फैलाना शुरू कर दिया। हस्तिनापुर में ही एक इंस्टीट्यूट खोल डाला। इस काम में उन्होंने रश्मि के परिजनों से संबंधों का जमकर उपयोग किया। रश्मि का परिवार इनकी मदद करता रहा क्योंकि उन्हें किसी तरह का कोई संदेह न था। कहा यह भी जाता है कि इंस्टीट्यूट खोलने वाले सज्जन ने इसकी आय में रश्मि के परिवार को भी भागीदार बना दिया।
बाद में जब इस व्यक्ति की गाजियाबाद से पोल खुलनी शुरू हुई और मुकदमें दर्ज होने शुरू हुए तो हस्तिनापुर में भी छापा पड़ा। वहां मिले कागजात में रश्मि चौधरी व उनके परिजनों का नाम देख पुलिस ने इन सभी को उठा लिया। पूछताछ शुरू की। हिरासत में रखा। यहां यह बता दें कि रश्मि चौधरी ने शैलेंद्र चौधरी नाम के एक पत्रकार से शादी कर चुकी हैं। शैलेंद्र भी रश्मि के साथ ही अमर उजाला, मेरठ में कार्यरत था। मामला जब अखबार के प्रबंधन तक पहुंचा तो इस मामले की गंभीरता को देखते हुए रश्मि और शैलेंद्र को रातोंरात न सिर्फ अखबार से बाहर का रास्ता दिखा दिया बल्कि गड़बड़ घोटाले में रश्मि व उनके परिजनों के शामिल होने की नाम सहित अच्छी खासी खबर भी छाप दी। पुलिस ने रश्मि और उनके मां-पिता को जेल में डाल दिया।
बताते हैं कि शैलेंद्र चौधरी ने अमर उजाला में काम करने के नाते अपने स्थानीय संपादक रवींद्र श्रीवास्तव समेत कई वरिष्ठ रिपोर्टरों से मदद मांगी। पर मदद की बजाय इनके खिलाफ ही खबर छाप दी गई। पत्रकार का मामला देखकर मेरठ के अन्य अखबारों ने या तो खबर प्रकाशित ही नहीं की या बहुत छोटी खबर पब्लिश की। अमर उजाला प्रबंधन से जुड़े लोगों का कहना है कि इस मामले में जो दस्तावेज पुलिस ने दिखाए, वो रश्मि चौधरी और उनके परिजनों के चार सौ बीसी में शामिल होने के लिए पर्याप्त सुबूत हैं, इसलिए अखबार को बदनामी से बचाने के लिए उन्हें बाहर कर दिया गया और पुलिस के साथ कोआपरेट किया गया। प्रबंधन से जुड़े लोगों का यह भी कहना है कि रश्मि व उनके परिजनों ने दो दिन तक इस मामले को दबाए रखा और अपने स्तर से पुलिस से निपटने की कोशिश की। लेकिन मामला गंभीर होते देख व खुद को फंसता पाकर प्रबंधन से मदद की गुहार की। तब तक बहुत देर हो चुका था क्योंकि पुलिस ने कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त प्रमाण इकट्ठा कर लिया था।
उधर, रश्मि से जुड़े लोगों का कहना है कि किसी पर आरोप लगते ही उसे दोषी नहीं माना जाना चाहिए था। कम से कम अपने रिपोर्टर से जुड़ा मामला होने के नाते पहले उसकी आंतरिक जांच कराई जानी चाहिए थी। बाद में दोषी मिलने पर फैसला लिया जाना चाहिए था। साथ ही, मदद करना तो दूर, बड़ी खबर प्रकाशित कर रश्मि चौधरी व उनके परिजनों की इज्जत को भी मटियामेट कर दिया गया।
जो भी हो, लेकिन यह सच है कि पत्रकारिता में आया एक युगल इस वक्त बेहद परेशानी और पीड़ा के दौर से गुजर रहा है। भड़ास4मीडिया से बातचीत में शैलेंद्र चौधरी कई बार फफक पड़े। वे बार-बार यही कहते रहे कि उन्हें, उनकी पत्नी व परिजनों को जो सजा अमर उजाला ने दे दी है, उसे वे जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे। इस मुश्किल दौर में मेरठ का कोई पत्रकार उनके साथ नहीं है और न ही प्रेस क्लब किसी तरह की कोई पहल कर रहा है। शैलेंद्र का कहना है कि इस मामले की जांच करा ली जाए। अगर वे लोग दोषी साबित हुए तो उन्हें फांसी पर लटका दिया जाए। सहृदयता के चलते किसी गलत आदमी पर भरोसा कर लेने का इतना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा, इसकी कल्पना तक नहीं की थी।
मेरठ की कुछ महिला पत्रकारों का नाम न छापने की शर्त पर कहना है कि इस शहर की पत्रकारिता में एक से बढ़कर एक घाघ पत्रकार भरे हुए हैं जो पुलिस-प्रशासन से मिलकर न जाने कितने गैर-कानूनी काम करते-कराते हैं लेकिन उनका बाल तक बांका नहीं होता। पर किसी गलत आदमी के साथ नाम भर जुड़ जाने से एक बच्ची को सीधे जेल में डालने के लिए पुलिस को खुली छूट दे दी जाती है। यह कहां का न्याय है?