(मीडियाकर्मियों के बीच जिस मेल का आजकल खूब आदान-प्रदान हो रहा है, उसे भड़ास4मीडिया के पाठकों तक पहुंचाने का अनुरोध किया है पत्रकार पवन कुमार ने। गीता सार के अंदाज में मीडिया सार पेश है)
हे पार्थ (कर्मचारी) !
इनक्रीमेंट अच्छा नहीं हुआ, बुरा हुआ
इनसेंटिव नहीं मिला, ये भी बुरा हुआ
वेतन में कटौती हो रही है, बुरा हो रहा है
तुम पिछले इनसेंटिव ना मिलने का पश्चाताप ना करो
तुम अगले इनसेंटिव की चिंता भी मत करो
बस अपने वेतन में संतुष्ट रहो…
तुम्हारी जेब से क्या गया, जो रोते हो?
जो आया था, सब यहीं से आया था
तुम जब नहीं थे, तब भी ये कंपनी चल रही थी
तम जब नहीं होगे, तब भी चलेगी
तुम कुछ भी लेकर यहां नहीं आए थे…
जो अनुभव मिला यहीं मिला
जो भी काम किया, वो कंपनी के लिए किया,
डिग्री लेकर आए थे, अनुभव लेकर जाओगे….
जो कंप्यूटर आज तुम्हारा है,
वह कल किसी और का था
कल किसी और का होगा
और परसों किसी और का…
तुम इसे अपना समझ कर क्यों मगन हो….
क्यों खुश हो…
यही खुशी तुम्हारी समस्त परेशानियों का
मूल कारण है…
क्यों तुम व्यर्थ चिंता करते हो,
किससे व्यर्थ डरते हो
कौन तुम्हें निकाल सकता है…?
सतत ‘नियम-परिवर्तन’ कंपनी का नियम है
जिसे तुम नियम-परिवर्तन कहते हो, वही तो चाल है
एक पल में तुम बेस्ट परफार्मर और
हीरो नंबर वन या सुपर स्टार हो
दूसरे पल में तुम वर्स्ट परफार्मर बन जाते हो
और टारगेट अचीव नहीं कर पाते हो…
एप्रेजल, इनसेंटिव ये सब अपने मन से हटा दो
अपने विचार से मिटा दो
फिर कंपनी तुम्हारी है और तुम कंपनी के
ना ये इनक्रीमेंट वगैरह तुम्हारे लिए है
ना तुम इसके लिए हो
परंतु तुम्हारा जॉब सुरक्षित है
फिर तुम परेशान क्यों होते हो…..?
तुम अपने आप को कंपनी को अर्पित कर दो,
मत करो इनक्रीमेंट की चिंता…
बस मन लगाकर अपना कर्म किये जाओ
यही सबसे बड़ा गोल्डन रुल है
जो इस गोल्डन रूल को जानता है, वो ही सुखी है
वो इन रिव्यू, इनसेंटिव, एप्रेजल, रिटायरमेंट
आदि के बंधन से सदा के लिए मुक्त हो जाता है…
तो तुम भी मुक्त होने का प्रयास करो
और खुश रहो