दिल्ली से चुपचाप बोरिया-बिस्तर बांधा : कर्मचारियों ने संघर्ष समिति गठित की
मंदी की मार एक और अखबार नहीं झेल पा रहा है। महाराष्ट्र के सकाल मीडिया ग्रुप ने अपने अंग्रेजी अखबार ”सकाल टाइम्स” का दिल्ली से कामकाज समेट लिया है। रविवार को जब सकाल टाइम्स, दिल्ली के मीडियाकर्मी दफ्तर पहुंचे तो वहां ताला लटका मिला। मुख्य द्वार पर चस्पा एक नोटिस में प्रबंधन की तरफ से अंग्रेजी में तीन लाइनों में कहानी खत्म होने की जो बात कही गई है, वो इस प्रकार है- ”दिल्ली से जो संपादकीय कार्य किया जा रहा था, अब उसे जारी रखने की जरूरत नहीं है। इसके चलते दिल्ली से होने वाले आपरेशन को बंद किया जाता है। अब सभी कर्मचारी मुक्त हैं। कर्मचारियों को आफिस आने की अब जरूरत नहीं है।”
सकाल ग्रुप का मुख्यालय पुणे में है। यहां अंग्रेजी में सकाल टाइम्स प्रकाशित होता है। इस ग्रुप का मराठी दैनिक ”सकाल” भी काफी लोकप्रिय है। इस साल के पूर्वाद्ध में ग्रुप ने पूरे देश में अपने अखबार के विस्तार योजना की जोरशोर से चर्चा कराई थी। इसी क्रम में दिल्ली में कामधाम छह माह पहले 7 मई को शुरू किया गया। दिल्ली में पत्रकार और गैर-पत्रकार मिलाकर लगभग 70 लोग काम कर रहे थे। जिस तरीके से सकाल ग्रुप ने दिल्ली में अपना कामकाज बंद किया, उससे स्टाफ में काफी निराशा है।
रविवार को दिल्ली के सकाल टाइम्स आफिस पर इससे जुड़े सीनियर और जूनियर मीडियाकर्मी पहुंचते रहे और नोटिस पढ़ने के बाद पहले भौचक हुए फिर गुस्से और अवसाद में डूबते-उतराते रहे।
सभी कर्मचारियों ने गेट पर ही एक बैठक करने की ठान ली। बैठक में सकाल टाइम्स के दिल्ली आफिस को अचानक बंद किए जाने के खिलाफ संघर्ष समिति गठन का निर्णय लिया गया और समिति का संयोजक फोटो एडीटर केके लश्कर को बनाया गया। समिति के गठन के बाद केके लश्कर ने बताया कि यह बंदी न सिर्फ अवैध है बल्कि अनैतिक भी है। हम इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे। प्रिंट मीडिया में कार्यरत सभी कर्मचारियों के लिए यह घटना टेस्ट केस की तरह है।
सकाल से जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना था कि उन लोगों में से किसी को भी बंदी की पूर्व सूचना नहीं दी गई और न ही कोई विकल्प मुहैया कराया गया।
सकाल टाइम्स के एक रिपोर्टर ने बताया कि वह शनिवार की आधी रात तक आफिस में थे। तब तक प्रबंधन द्वारा बंदी के कोई संकेत नहीं दिए गए थे। सब कुछ सामान्य चल रहा था। आज दोपहर बाद आफिस पहुंचने पर पता चला कि सब कुछ खत्म किया जा चुका है। लगता है कि नवंबर महीने की सेलरी भी नहीं मिलेगी।
सकाल टाइम्स के दिल्ली आफिस से जुड़े एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक यह लाक-आउट पूरी तरह इललीगल है। इसमें लेबर ला को कतई फालो नहीं किया गया है। यह पूरे देश के पत्रकारों की बेइज्जती है। हम सभी को सकाल ग्रुप की इस हरकत की निंदी करनी चाहिए।