दीपक चौरसिया खुश जरूर होंगे। आखिर उन पर लगा दाग जो धुला। दाग लगाया था जनसत्ता अखबार ने। इस अखबार में प्रत्येक रविवार को प्रकाशित होने वाले मीडिया केंद्रित कालम ‘अजदक’ में सात साल पहले न्यूज चैनल ‘आज तक’ और उस समय ‘आज तक’ से जुड़े रहे दीपक चौरसिया के बारे में कई प्रतिकूल टिप्पणियां स्तंभ के लेखक सुधीश पचौरी ने की थीं। ये टिप्पणियां उस वक्त गोवा में भाजपा के अधिवेशन के दौरान दीपक चौरसिया की रिपोर्टिंग को लेकर की गई थी। इन टिप्पणियों को आज तक ने अपनी छवि पर गहरा आघात मानते हुए जनसत्ता और सुधीश पचौरी के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया।
इतने दिनों बाद, अब जनसत्ता ने माफी मांगकर इस प्रकरण को रफा-दफा करने की कोशिश की है। दीपक चौरसिया अब भले ही आज तक में न हों, लेकिन इस मामले पर जनसत्ता के माफी मांगने से उनकी स्थिति मजबूत हुई है। जनसत्ता ने कुछ दिनों पहले जो माफीनामा प्रकाशित किया, वह इस प्रकार है-
जनसत्ता के 14 अप्रैल 2002 के अंक में भाजपा की भक्ति शीर्षक से एक टीवी समीक्षा प्रकाशित हुई थी, जिसमें टीवी टुडे के चैनल आज तक और इसके ब्यूरो प्रमुख दीपक चौरसिया को लेकर कुछ टिप्पणियां की गईं थीं। उक्त समीक्षा में, चैनल पर राजनीतिक दुराग्रह बरतने और चैनल के संवाददाताओं द्वारा राजनीतिक लाभ लेने के बारे में की गई कतिपय टिप्पणियां गलत अवधारणाओं पर आधारित थीं, जिनका चैनल ने खंडन किया और बाद में उन्हें तथ्यहीन और निराधार भी पाया गया। एक गैर-राजनीतिक और स्वतंत्र चैनल के रूप में चैनल की अपनी ख्याति है और उसका किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है। स्पष्ट किया जाता है कि समाचार पत्र की मंशा चैनल या संवाददाता दीपक चौरसिया की भावनाओं अथवा साख को नुकसान पहुंचाने की नहीं थी और इस समीक्षा से बगैर किसी की मंशा के पहुंचे हुए कष्ट के लिए हमें खेद हैं।
-संपादक