यशवंत भाई, नमस्कार, कुशल से रहकर आपकी कुशलता की कामना है. एसपी के बारे में आपकी रिपोर्ट पढी. बेबाक रपट मन को छू गयी. लगा कि एसपी की माटी का तेवर बोल रहा है. लगा कि एसपी जैसा कोई भी वहां मौजूद होता तो बहस की शुरुआत शिखा नाम की उस लड़की के सवालों से करता, जिसने वाजिब मुद्दे उठाये थे. पर हम उम्मीद किससे करें, अब कौन आखिरी आदमी की वकालत करेगा. एक बात कहूँगा कि आप जिन्हें नया कह रहे हैं वही लोग पुराने मूल्यों के साथ खड़े हैं. एसपी की श्रद्धांजलि सभा में जाने वाला नया पत्रकार मेरी नजर में संवेदनशील होने के साथ अपने गौरव के प्रति जागरूक तो है. एक फ़िल्म कारपोरेट देखी थी. उसमे एक संत को अपने आध्यात्मिक ज्ञान से नहीं बल्कि भौतिक अप्रोच से दिए गए आशीर्वाद को फलीभूत कराते देखा.
आज तो बड़ी-बड़ी हांकने वाले और आदर्श का पाठ पढाने वाले लोग अपने भौतिक संसाधनो से पत्रकारिता को पुष्पित और पल्लवित कर रहे हैं. ऐसे लोगों का बड़ा नाम हो गया है. ऐसे लोगों के लिए अब विचार कोई मायने नहीं रखते. ऐसे लोग तो मंचों पर नसीहत जरूर देते हैं लेकिन तुरंत नीचे उतर कर अपने चेलों को समझाते हैं कि मंच की बातें अलग होती हैं और जीवन की बातें अलग. पर मैं निराश नहीं हूँ. मुझे वह आदमी अच्छा लगता है जो जैसा है वैसा दिखाता है. मेरे पास कोई आदर्श की बात नहीं है. बस यही कि छोटी जगह पर जन सरोकार के लिए जूझ रहा हूं. एसपी को ठीक से जानता हूं और मिला हूं इसलिए उनकी बात आयी तो कुछ कहने से रोक नहीं पाया. बस इतना कहना चाहूंगा कि एसपी जैसे लोग बिरले होते हैं. अगर सब एसपी हो जाते तो फिर इतनी बात कहां से होती. एसपी जैसा बनने की कोशिश करके भी कोई वैसा नहीं बन सकता. एसपी बनने के लिए उतना बड़ा मन होना चाहिए और अब तो पत्रकारिता के दलदल में बड़े मन वाले भी छोटे होने लगे हैं. आप अपनी जंग जारी रखें, आपको हमारी शुभकामना.
धन्यवाद्
आपका
आनंद राय
पूर्व अध्यक्ष
गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब गोरखपुर
09415210457