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62 फीसदी मीडियाकर्मियों को प्रिंट पसंद

मीडियाकर्मियों में मधुमेह, रीढ़ की हड्डी, हृदय व नेत्र रोग होने की आशंका सबसे ज्यादा : मीडियाकर्मी यूं तो काम के तनाव के कारण कई तरह की बीमारियों का सामना कर रहे हैं लेकिन मीडिया क्षेत्र में सर्वाधिक रोगी हड्डी, रीढ़ तथा मधुमेह से संबंधित समस्याओं के हैं। यदि पत्रकारों को लेकर किए गए एक अध्ययन पर गौर करें तो 14.34 फीसदी पत्रकारों को हड्डी एवं रीढ़ में तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है जबकि 13.81 फीसदी मीडियाकर्मी मधुमेह से पीड़ित हैं। मीडिया स्टडीज ग्रुप ने पत्रकारों की कार्य स्थिति तथा जीवन स्तर का पता लगाने के उद्देश्य से 13 जुलाई 2008 से 13 जून 2009 के बीच एक सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के अनुसार 13.50 फीसदी मीडियाकर्मी हृदय एवं रक्तचाप संबंधी रोगों से पीड़ित हैं। दंत रोग से पीड़ित मीडियाकर्मियों की संख्या 11.39 फीसदी है। वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया और शोधार्थी देवाशीष प्रसून की टीम द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है कि 13.08 फीसदी मीडियाकर्मी उदर रोगों से पीड़ित हैं, 11.81 फीसद नेत्र रोग तथा 2.10 फीसदी कमजोरी, थकान और सिरदर्द जैसी समस्यों से परेशान हैं। 48.06 फीसदी मीडियाकर्मियों का यह कहना है कि उन्हें उपचार के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है जबकि 51.94 फीसदी मीडियाकर्मियों को इलाज के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता।

<p align="justify"><font color="#800000">मीडियाकर्मियों में मधुमेह, रीढ़ की हड्डी, हृदय व नेत्र रोग होने की आशंका सबसे ज्यादा :</font> मीडियाकर्मी यूं तो काम के तनाव के कारण कई तरह की बीमारियों का सामना कर रहे हैं लेकिन मीडिया क्षेत्र में सर्वाधिक रोगी हड्डी, रीढ़ तथा मधुमेह से संबंधित समस्याओं के हैं। यदि पत्रकारों को लेकर किए गए एक अध्ययन पर गौर करें तो 14.34 फीसदी पत्रकारों को हड्डी एवं रीढ़ में तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है जबकि 13.81 फीसदी मीडियाकर्मी मधुमेह से पीड़ित हैं। मीडिया स्टडीज ग्रुप ने पत्रकारों की कार्य स्थिति तथा जीवन स्तर का पता लगाने के उद्देश्य से 13 जुलाई 2008 से 13 जून 2009 के बीच एक सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के अनुसार 13.50 फीसदी मीडियाकर्मी हृदय एवं रक्तचाप संबंधी रोगों से पीड़ित हैं। दंत रोग से पीड़ित मीडियाकर्मियों की संख्या 11.39 फीसदी है। वरिष्ठ पत्रकार <strong>अनिल चमड़िया</strong> और शोधार्थी <strong>देवाशीष प्रसून</strong> की टीम द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है कि 13.08 फीसदी मीडियाकर्मी उदर रोगों से पीड़ित हैं, 11.81 फीसद नेत्र रोग तथा 2.10 फीसदी कमजोरी, थकान और सिरदर्द जैसी समस्यों से परेशान हैं। 48.06 फीसदी मीडियाकर्मियों का यह कहना है कि उन्हें उपचार के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है जबकि 51.94 फीसदी मीडियाकर्मियों को इलाज के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता।</p>

मीडियाकर्मियों में मधुमेह, रीढ़ की हड्डी, हृदय व नेत्र रोग होने की आशंका सबसे ज्यादा : मीडियाकर्मी यूं तो काम के तनाव के कारण कई तरह की बीमारियों का सामना कर रहे हैं लेकिन मीडिया क्षेत्र में सर्वाधिक रोगी हड्डी, रीढ़ तथा मधुमेह से संबंधित समस्याओं के हैं। यदि पत्रकारों को लेकर किए गए एक अध्ययन पर गौर करें तो 14.34 फीसदी पत्रकारों को हड्डी एवं रीढ़ में तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है जबकि 13.81 फीसदी मीडियाकर्मी मधुमेह से पीड़ित हैं। मीडिया स्टडीज ग्रुप ने पत्रकारों की कार्य स्थिति तथा जीवन स्तर का पता लगाने के उद्देश्य से 13 जुलाई 2008 से 13 जून 2009 के बीच एक सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के अनुसार 13.50 फीसदी मीडियाकर्मी हृदय एवं रक्तचाप संबंधी रोगों से पीड़ित हैं। दंत रोग से पीड़ित मीडियाकर्मियों की संख्या 11.39 फीसदी है। वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया और शोधार्थी देवाशीष प्रसून की टीम द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है कि 13.08 फीसदी मीडियाकर्मी उदर रोगों से पीड़ित हैं, 11.81 फीसद नेत्र रोग तथा 2.10 फीसदी कमजोरी, थकान और सिरदर्द जैसी समस्यों से परेशान हैं। 48.06 फीसदी मीडियाकर्मियों का यह कहना है कि उन्हें उपचार के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है जबकि 51.94 फीसदी मीडियाकर्मियों को इलाज के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता।

सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि 61.27 फीसदी मीडियाकर्मियों के खाने-पीने का कोई निर्धारित समय नहीं है जबकि 17.61 फीसदी मीडियाकर्मियों ने अपने भोजन का समय निर्धारित कर रखा है। अध्ययन के अनुसार 54.17 फीसदी मीडियाकर्मी अपनी नौकरी के मामले में असुरक्षा महसूस करते हैं लेकिन 45.82 फीसदी अपनी नौकरी को सुरक्षित मानते हैं। 12.59 फीसदी मीडियाकर्मियों ने अब तक छह या इससे अधिक जगहों पर अपनी सेवाएं दी हैं जबकि 66.43 फीसदी मीडियावाले दो से पांच नौकरियां बदल चुके हैं। एक ही संस्थान या संगठन में काम करने वालों का प्रतिशत 28.8 है।

दफ्तर तक के सफर को देखें तो 56.25 फीसदी मीडियाकर्मी दस किलोमीटर या इससे अधिक दूरी तय कर अपने कार्यालय पहुंचते हैं जबकि 21.53 फीसदी मीडियाकर्मियों को इसके लिए पांच से दस किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ती है। एक से पांच किलोमीटर तक की दूरी तय करने वालों का प्रतिशत 10.06 है। कार्यालय आने के लिए एक से भी कम किलोमीटर की दूरी तय करने वालों का प्रतिशत 4.17 है। 16.32 फीसदी मीडियाकर्मी अपने दफ्तर पहुंचने के लिए सिर्फ मेट्रो का इस्तेमाल कर रहे हैं। 11.58 फीसदी को मेट्रो के अलावा दूसरे परिवहन साधनों का भी इस्तेमाल करना पड़ता है। कार से दफ्तर पहुंचने वालों का प्रतिशत 13.16 है। 18.42 फीसदी मीडियाकर्मी स्कूटर या मोटरसाइकिल से कार्यालय पहुंचते हैं। 13.68 फीसदी मीडियकर्मी तिपहिए से दफ्तर पहुंचते है। 10 फीसदी बस के जरिए कार्यालय पहुंचते हैं। दिन की पाली में काम करने वाले मीडियाकर्मियों की संख्या 52.35 फीसदी है। 21.76 फीसदी शाम के समय काम करते हैं। 14.71 फीसदी मीडियाकर्मियों का काम रात के समय निश्चित होता है और 11.18 फीसद सुबह की पाली में अपने काम को अंजाम देते हैं।

सर्वेक्षण के अनुसार 61.63 फीसदी मीडियाकर्मियों का पसंदीदा क्षेत्र प्रिंट मीडिया है। टेलीविजन 22.09 फीसदी की पसंद है। 4.65 फीसदी मीडियाकर्मी खुद को किसी समाचार एजेंसी में काम करने का इच्छुक बताते हैं। 54.55 फीसदी मीडियकर्मी अपने काम से संतुष्ट हैं। 45.45 फीसदी असंतुष्ट। 65.51 फीसदी मीडियाकर्मियों को प्रतिदिन आठ घंटे से अधिक समय तक काम करना पड़ता है। 23.65 फीसदी ने कहा कि उनसे आठ घंटे ही काम लिया जाता है। 12.84 फीसदी मीडियाकर्मियों ने कहा कि उन्हें आठ घंटे से भी कम समय काम करना पड़ता है। 71.53 फीसदी मीडियाकर्मियों को एक दिन का साप्ताहिक अवकाश मिलता है और 17.36 फीसदी को दो दिन का साप्ताहिक अवकाश मिलता है। 11.11 फीसदी मीडियाकर्मी ऐसे हैं जिन्हें कोई अवकाश ही नहीं मिलता। 4.41 फीसदी मीडियाकर्मी पिछले पांच साल से अस्वस्थ महसूस कर रहे हैं। 6.62 फीसदी की पिछले तीन साल से तबियत अच्छी नहीं है। सर्वेक्षण के लिए पत्रकारों से ई-मेल के जरिए सवाल पूछे गए जिन पर प्रतिक्रिया देने वालों में 83.67 फीसदी पुरुष तथा 16.33 फीसदी महिलाएं हैं। (साभार : जनसत्ता)

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