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सहारा ने मुंबई के चैनल को भी ठेके पर दिया

रिपोर्टरों को खबर के साथ बिजनेस लाने के भी निर्देश : आरकेबी टाक शो एक मार्च से बंद होने की चर्चा :  बिहार-झारखंड व एमपी-सीजी चैनल पहले से ही ठेके पर :  मिनिमम गारंटी माडल फेल, अब रेवेन्यू शेयर माडल

खबर है कि सहारा ग्रुप ने सहारा समय, मुबंई को ‘एनलाइटेन मीडिया‘ नामक कंपनी को ठेके पर दे दिया है। इस न्यूज चैनल का संचालन अब एनलाइटेन मीडिया के लोग करेंगे। बदले में सहारा ग्रुप को निश्चित रकम का भुगतान हर माह किया जाएगा। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि समझौता रेवेन्यू शेयरिंग माडल पर हुआ है या मिनिमम गारंटी के आधार पर। सूत्रों के मुताबिक एनलाइटेन मीडिया के सीईओ चंदन बनर्जी सहारा समय, मुंबई की कमान संभाल चुके हैं। बताया जाता है कि नए निजाम की तरफ से एक बैठक कर रिपोर्टरों को मुनाफे का मंत्र समझा दिया गया है।

<p align="center"><font color="#808080">रिपोर्टरों को खबर के साथ बिजनेस लाने के भी निर्देश : आरकेबी टाक शो एक मार्च से बंद होने की चर्चा :  बिहार-झारखंड व एमपी-सीजी चैनल पहले से ही ठेके पर :  मिनिमम गारंटी माडल फेल, अब रेवेन्यू शेयर माडल</font></p><p align="justify">खबर है कि सहारा ग्रुप ने सहारा समय, मुबंई को '<strong>एनलाइटेन मीडिया</strong>' नामक कंपनी को ठेके पर दे दिया है। इस न्यूज चैनल का संचालन अब एनलाइटेन मीडिया के लोग करेंगे। बदले में सहारा ग्रुप को निश्चित रकम का भुगतान हर माह किया जाएगा। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि समझौता रेवेन्यू शेयरिंग माडल पर हुआ है या मिनिमम गारंटी के आधार पर। सूत्रों के मुताबिक एनलाइटेन मीडिया के सीईओ <strong>चंदन बनर्जी</strong> सहारा समय, मुंबई की कमान संभाल चुके हैं। बताया जाता है कि नए निजाम की तरफ से एक बैठक कर रिपोर्टरों को मुनाफे का मंत्र समझा दिया गया है। </p>

रिपोर्टरों को खबर के साथ बिजनेस लाने के भी निर्देश : आरकेबी टाक शो एक मार्च से बंद होने की चर्चा :  बिहार-झारखंड व एमपी-सीजी चैनल पहले से ही ठेके पर :  मिनिमम गारंटी माडल फेल, अब रेवेन्यू शेयर माडल

खबर है कि सहारा ग्रुप ने सहारा समय, मुबंई को ‘एनलाइटेन मीडिया‘ नामक कंपनी को ठेके पर दे दिया है। इस न्यूज चैनल का संचालन अब एनलाइटेन मीडिया के लोग करेंगे। बदले में सहारा ग्रुप को निश्चित रकम का भुगतान हर माह किया जाएगा। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि समझौता रेवेन्यू शेयरिंग माडल पर हुआ है या मिनिमम गारंटी के आधार पर। सूत्रों के मुताबिक एनलाइटेन मीडिया के सीईओ चंदन बनर्जी सहारा समय, मुंबई की कमान संभाल चुके हैं। बताया जाता है कि नए निजाम की तरफ से एक बैठक कर रिपोर्टरों को मुनाफे का मंत्र समझा दिया गया है।

सभी रिपोर्टरों को खबर के साथ बिजनेस टारगेट पूरा करने पर लगा दिया गया है। नए फरमान से विशुद्ध पत्रकारिता करने के लिए रिपोर्टिंग में आए रिपोर्टरों की जान सूख गई है। ज्ञात हो, सहारा समय, मुंबई की लांचिंग वर्ष 2003 में की गई। इस चैनल के हेड राजीव बजाज हैं। 26 जुलाई 2005 को जब मुंबई बाढ़ और बारिश की वजह से डूब रहा था तो चपेट में सहारा का आफिस भी आया। उन्हीं दिनों सहारा मुंबई के आफिस को नोएडा स्थिति सहारा समय के मुख्यालय में शिफ्ट कर दिया गया। इसके चलते तब दर्जनों पत्रकार नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर हुए क्योंकि वे मुंबई को अलविदा कहने की स्थिति में नहीं थे। एक अन्य खबर के अनुसार सहारा समय, मुंबई के नए हाथों में जाने के बाद इस चैनल के चर्चित टाक शो आरकेबी को एक मार्च से बंद करने के लिए कह दिया गया है। उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सहारा समय, मुंबई के वाइस प्रेसीडेंट राज कुंवर बजाज उर्फ आरकेबी का टाक शो, जो उन्हीं के नाम से सहारा समय, मुंबई और एनसीआर न्यूज चैनलों पर प्रसारित होता था, को बंद किए जाने की चर्चाएं जोरों पर हैं। 

सूत्रों का कहना है कि सहारा ग्रुप ने मंदी से निपटने के लिए अपने चैनलों को ठेके पर देने की परंपरा बहुत पहले शुरू कर दी थी। सहारा समय, बिहार-झारखंड का रीजनल न्यूज चैनल पिछले साल सत्यम आर्ट एंड मीडिया इंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने ठेके पर लिया। सूत्रों के मुताबिक बिहार-झारखंड के चैनल की डील प्रति माह एक करोड़ 25 लाख रुपये पर हुई थी। यह रकम सत्यम आर्ट एंड मीडिया इंटरटेनमेंट की तरफ से सहारा समूह को दिया जाता रहा। लेकिन पांच महीनों बाद सत्यम आर्ट एंड मीडिया ने सहारा समूह के आगे हाथ खड़े कर दिए। जितना रेवेन्यू जनरेशन की बात सहारा ने सत्यम आर्ट एंड मीडिया को बताई थी, उतना हो नहीं पा रहा था और मासिक शुल्क की रकम से आधे से भी कम का बिजनेस हो पा रहा था। बाद में सहारा और सत्यम के बीच एमजी (मिनिमम गारंटी) की बजाय आरएस (रेवेन्यू शेयरिंग) के माडल पर दुबारा समझौता हुआ। यह कांट्रैक्ट अब भी चल रहा है।

इसी तरह सहारा समय, एमपी-सीजी के रीजनल न्यूज चैनल को एक आध्यात्मिक चैनल चलाने वाली कंपनी ने ठेके पर लिया। इस कंपनी ने भी शुरुआत में एमजी माडल के तहत चैनल चलाया तो उसे घाटे का सामना करना पड़ा। बाद में सहारा से बातचीत करके समझौता बदला गया और आरएस माडल पर सहमति बनी। सूत्रों का कहना है कि सहारा ग्रुप अब अपने एनसीआर के न्यूज चैनल के लिए किसी ऐसी कंपनी के तलाश में जुटा है जो इसे ठेके पर ले सके।

ठेका प्रथा के चलते सबसे बड़ी समस्या मीडिया हाउसों में काम करने वाले पत्रकारों के सामने खड़ी हो जाती है। जर्नलिस्टों को खबरों के साथ नई कंपनी के लिए ज्यादा से ज्यादा रेवेन्यू जुटाने पर भी काम करना पड़ता है। बिहार-झारखंड में जब सत्यम आर्ट एंड मीडिया ने सहारा समय के रीजनल चैनल को ठेके पर लिया तो कंपनी की तरफ से सभी ब्यूरो चीफों के लिए रेवेन्यू टारगेट भी फिक्स कर दिया गया। खबर के साथ रेवेन्यू में परफारमेंस को भी जर्नलिस्ट के करियर ग्रोथ से जोड़ दिया गया। सहारा के अलावा कई अन्य मीडिया हाउस भी अपने न्यूज चैनलों को ठेके पर देने की ओर बढ़ चले हैं। 


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