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छंटनी की काली आंधी रोजाना ले रही सैकड़ों की बलि

आर्थिक मंदी ने कमाई पर लगाम क्या लगाई, परेशान मीडिया हाउसों  ने खर्चे घटाने और छंटनी करने के सिलसिले को रुटीन में शामिल कर लिया है। छोटे-बड़े सभी ग्रुप, धीमी या तेज गति से, छंटनी करने में जुटे हैं। प्रत्येक मीडिया हाउस से कोई न कोई बुरी खबर भड़ास4मीडिया तक पहुंच रही है। स्थिति वाकई भयावह है। रोजाना सैकड़ों लोग बेरोजगार किए जा रहे हैं। छंटनी के एवज में न तो इन्हें छह महीने का अग्रिम वेतन दिया जा रहा है और न ही निकाले जाने का कोई कारण बताया जा रहा है। बुरी खबरों के अंबार में से कुछ को यहां पेश किया जा रहा है-

दैनिक जागरणः छंटनी के मामले में अब तक धीमी चाल चल रहे दैनिक जागरण प्रबंधन ने आगरा एडीटोरियल मीट में अपने संपादकों और मैनेजरों को स्पीड बढ़ाने का जो मंत्र दिया है, उसका असर हर कहीं देखने को मिलने लगा है।

<p align="justify">आर्थिक मंदी ने कमाई पर लगाम क्या लगाई, परेशान मीडिया हाउसों  ने खर्चे घटाने और छंटनी करने के सिलसिले को रुटीन में शामिल कर लिया है। छोटे-बड़े सभी ग्रुप, धीमी या तेज गति से, छंटनी करने में जुटे हैं। प्रत्येक मीडिया हाउस से कोई न कोई बुरी खबर <strong>भड़ास4मीडिया</strong> तक पहुंच रही है। स्थिति वाकई भयावह है। रोजाना सैकड़ों लोग बेरोजगार किए जा रहे हैं। छंटनी के एवज में न तो इन्हें छह महीने का अग्रिम वेतन दिया जा रहा है और न ही निकाले जाने का कोई कारण बताया जा रहा है। बुरी खबरों के अंबार में से कुछ को यहां पेश किया जा रहा है-</p><p align="justify"><strong>दैनिक जागरणः </strong>छंटनी के मामले में अब तक धीमी चाल चल रहे दैनिक जागरण प्रबंधन ने आगरा एडीटोरियल मीट में अपने संपादकों और मैनेजरों को स्पीड बढ़ाने का जो मंत्र दिया है, उसका असर हर कहीं देखने को मिलने लगा है। </p>

आर्थिक मंदी ने कमाई पर लगाम क्या लगाई, परेशान मीडिया हाउसों  ने खर्चे घटाने और छंटनी करने के सिलसिले को रुटीन में शामिल कर लिया है। छोटे-बड़े सभी ग्रुप, धीमी या तेज गति से, छंटनी करने में जुटे हैं। प्रत्येक मीडिया हाउस से कोई न कोई बुरी खबर भड़ास4मीडिया तक पहुंच रही है। स्थिति वाकई भयावह है। रोजाना सैकड़ों लोग बेरोजगार किए जा रहे हैं। छंटनी के एवज में न तो इन्हें छह महीने का अग्रिम वेतन दिया जा रहा है और न ही निकाले जाने का कोई कारण बताया जा रहा है। बुरी खबरों के अंबार में से कुछ को यहां पेश किया जा रहा है-

दैनिक जागरणः छंटनी के मामले में अब तक धीमी चाल चल रहे दैनिक जागरण प्रबंधन ने आगरा एडीटोरियल मीट में अपने संपादकों और मैनेजरों को स्पीड बढ़ाने का जो मंत्र दिया है, उसका असर हर कहीं देखने को मिलने लगा है।

खर्चे बचाने और फालतू स्टाफ हटाने के लिए कवायद हर जगह तेज हो गई है।  गोरखपुर हो या नोएडा,  हर जगह खर्चे बचाने के लिए दूर-दराज से लेकर मुख्यालय तक के स्टाफ की छानबीन शुरू हो चुकी है। खबर है कि कई जगहों पर कर्मियों को मिलने वाली कई तरह की सुविधाओं में कटौती कर दी गई है। दूर-दराज के आफिसों को बंद करने की तैयारी चल रही है। केवल उन्हीं आफिसों को जिंदा रखने की बात कही जा रही है जो पर्याप्त रेवेन्य दे रहे हैं। छंटनी के नाम पर संपादकों को और मैनेजरों को अपने अधीनस्थों को दबाव में लेने का नया हथियार भी मिल गया है जिसका कई जगहों पर बेजा इस्तेमाल होने लगा है।

अमर उजालाः यह अखबार अब हरियाणा में अपने ब्यूरो आफिस बंद करने में जुटा हुआ है। पिछले दिनों जिस तरह पंजाब से इस अखबार ने अपना कामकाज समेट लिया, उसी तर्ज पर हरियाणा में कार्रवाई शुरू हो गई है। ब्यूरो आफिसों से कंप्यूटर वगैरह हटाए जा रहे हैं। अब सभी जिलों में सिर्फ एक रिपोर्टर रहेगा। ट्रेनिंग और प्रोबेशन पीरियड में जो लोग थे, उन्हें पहले ही चलता किया जा चुका है। खबर है कि प्रबंधन ने एक लाख रुपये से ज्यादा सेलरी पाने वालों की तनख्वाह में तीस फीसदी कटौती के आदेश दिए हैं जिसको जल्द ही लागू किया जाएगा। अमर उजाला के नोएडा मुख्यालय में छंटनी को लेकर हड़कंप मचा हुआ है। शीर्षस्थ लोग खुद बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा ले रहे हैं और अपने साथ काम करने वाले सहायकों की बलि ले रहे हैं। बताया जाता है कि अमर उजाला के यूनिट हेड से कहा गया है कि वे अपने यहां से पांच ऐसे लोगों की लिस्ट दें जिनके बगैर काम चल सकता है। पता चला है कि सरकुलेशन व मार्केटिंग में भी छंटनी हो रही है। सूत्रों के मुताबिक सभी विभागों को मिलाकर 200 से ज्यादा लोगों की छंटनी हो चुकी है।

दैनिक भास्करः सबसे ज्यादा हड़कंप इसी ग्रुप में है। यहां 15 साल से सेवारत लोगों को बुलाकर कल से न आने को कह दिया जा रहा है। भोपाल और इंदौर में सैकड़ा से ज्यादा लोगों को निकालने के बाद इस मीडिया हाउस ने पूरे पंजाब समेत ज्यादातर संस्करणों से पेज आपरेटरों की पूरी तरह हटा देने का फरमान जारी कर दिया है। पंजाब के कई शहरों से मिली जानकारी के अनुसार पेज आपरेटरों को आफिस आने के लिए मना कर दिया गया है। दैनिक भास्कर, पानीपत में तो पत्रकारों को मिलने वाला चाय का कूपन तक बंद कर दिया गया है। यह राशि प्रतिमाह 125 रुपये की होती थी। यहां भी पेजमेकरों और आपरेटरों से काम लेना बंद कर दिया गया है।  इनकी संख्या बीस के करीब है। भास्कर पहले ही अपने यहां ‘बेस्ट स्टोरी अवार्ड’ और ‘लैपटाप स्कीम’ को ड्राप कर चुका है।

नवभारत टाइम्सः इस अखबार में डेस्क के सभी कर्मचारियों का पेज बनाने का टेस्ट शुरू हो गया है। इस फरमान से मीडियाकर्मियों में बेचैनी है। इसे छंटनी की तैयारी माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि यहां निकाले जाने वाले लोगों की लिस्ट तो पहले ही तैयार हो चुकी है, प्रबंधन उनको निकालने का केवल बहाना खोज रहा है। टेस्ट को भी इसी कवायद का एक हिस्सा माना जा रहा है। टाइम्स ग्रुप में पांच फीसदी स्टाफ निकालने का काम तेजी से चल रहा है। इस ग्रुप में प्रबंधन फ्रंटफुट पर है और कर्मचारी बैकफुट पर। कुछ लोगों का कहना है कि पहले जब नई दुनिया और देशबंधु जैसे अखबार दिल्ली से लांच होने को हुए तो प्रबंधन अपने स्टाफ को लेकर आशंकित था कि कोई चला न जाए। अब मंदी के नाम पर कर्मचारियों को दबाव में लिया जा रहा है।

स्टार न्यूजः इस चैनल में प्रबंधन ने खर्चे में कटौती के तहत कई कदम उठाए हैं। मैनेजमेंट ने स्टाफ को मिलने वाले कूपन के दाम बढ़ा दिए गए हैं। इसके लिए स्टाफ को पहले से पांच-सात रुपये अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। खाने की क्वांटिटी भी कम कर दी गई है। पहले खाने के खर्च का एक हिस्सा स्टार वहन करता था। कैंटीन से समोसे तक गायब हो गए हैं। और तो और,  बाथरूम भी कास्ट कटिंग का शिकार हो गया है। नैपकीन, कागज आदि की व्यवस्था खत्म हो गई दिखती है।

जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ः सूचना है कि रायपुर से अभी हाल में ही लांच हुए जी ग्रुप के रीजनल न्यूज चैनल जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ में भी छंटनी की तैयारी चल रही है। सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के दौरान चैनल का प्रदर्शन ठीक न होने को प्रबंधन ने गंभीरता से लिया है। बताते हैं कि इस चैनल में भर्ती किए गए प्रिंट मीडिया के लोगों को चैनल के खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इन लोगों के काम की समीक्षा की जा रही है और इनमें से कई लोगों को बाहर करने की तैयारियां चल रही है। साथ ही खर्चे कम करने की कवायद के तहत भी स्टाफ न्यूनतम रखने को प्राथमिकता देने की रणनीति बनाई गई है।

छंटनी सिर्फ उपरोक्त मीडिया हाउसों में ही नहीं हो रही बल्कि जितने भी चैनल व अखबार हैं, सबमें कम या ज्यादा हो रही है। इसके पीछे वजह है विज्ञापन का कम हो जाना जिससे इन मीडिय हाउसों के मुनाफे में कमी होने की आशंका है। इस आशंका से निपटने के लिए प्रबंधन हर कदम उठा रहा है और इसी के शिकार इंप्लाइ भी बन रहे हैं।

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