हमारे देश की जनसंख्या एक अरब से अधिक हो गयी है। हमारे देश में हर साल तकरीबन एक करोड़ लोगों की मौत होती है। हिन्दी के टीवी चैनलों के शोध के मुताबिक मरने वाले शर्तिया तौर पर भूत बनते हैं। कह सकते हैं कि करीब 27 हजार भूत रोज जन्मते हैं। इन चैनलों के गहन अनुसंधान के अनुसार भूत कभी नहीं मरते हैं। धरती पर मानव सभ्यता के अविर्भाव से अब तक जितने लोग मरे और भूत बने, इनकी गणना के आधार पर कह सकते हैं कि भूतों की आबादी कई अरब महाशंख से अधिक हो गयी है।
लेकिन यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि महान संचार क्रांति के इस युग में भी भारत में ऐसा एक भी टेलीविजन चैनल नहीं है जो ‘‘भूतों का, भूतों के लिये और भूतों के द्वारा’’ हो, जबकि हमारे देष में ‘‘अभूतों’’ के लिये दो सौ से अधिक चैनल हैं और कुछ दिनों या महीनों में इससे भी अधिक चैनलों के शुरू होने की आशंका है। हमारे लिये अगर कोई संतोष की बात है तो बस यही है कि आज कुछ गिनती के ऐसे चैनल हैं जो भूतों एवं उनसे जुडे मुद्दों को ‘‘अभूतों’’ की खबरों और उनकी समस्याओं की तुलना में कई गुणा अधिक प्राथमिकता देते हैं। केवल यही दो-चार चैनल हैं जो सही मायने में भूत प्रेमी कहे जा सकते हैं। एक-दो बकवास चैनल तो ऐसे घनघोर भूत विरोघी हैं कि वे भूतों की इतनी बड़ी आबादी की बिल्कुल ही चिंता नहीं करते। यह बड़ी बेइंसाफी है।
इतने विशाल भूत समुदाय को टेलीविजन क्रांति के लाभों से वंचित किया जाना भूतों के खिलाफ अभूतों की साजिश है। यह वाकई गंभीर चिंता का विषय है और इस दिशा में सरकार, मंत्रियो, नेताओं, उद्योगपतियों, चैनल मालिकों, मीडियाकर्मियों और समाजिक संगठनों को गंभीरता से सोचना चाहिये तथा भूतों पर केन्द्रित टेलीविजन चैनल शुरू करने की दिशा में पूरी शिद्दत के साथ पहल करनी चाहिये। ऐसा टेलीविजन चैनल न केवल व्यापक भूत समुदाय के हित में होगा बल्कि टीआरपी, विज्ञापन बटोरने और व्यवसाय की दृष्टि से भी बहुत अधिक लाभदायक होगा जो हर टेलीविजन चैनलों का एकमात्र उद्देश्य होता है।
मैंने यह प्रस्ताव उन चैनल मालिकों और उद्योगपतियों के लाभ के लिए तैयार किया है जो कोई टेलीविजन चैनल खोलने के लिए भारी निवेश करने का इरादा तो रखते हैं लेकिन यह फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि किस तरह का चैनल शुरू करना व्यावसायिक एवं राजनीतिक रूप से फायदेमंद रहेगा। भूत चैनलों के स्वरूप और लाभ-खर्च का विस्तृत ब्यौरा मैंने तैयार कर लिया है, केवल फाइनेंसरों का इंतजार है।
मैंने व्यापक अध्ययन एवं शोध के आधार पर यह नतीजा निकाला है कि अगर भूतों पर केन्द्रित कोई चैनल शुरू किया जाए तो उसकी टीआरपी और उससे प्राप्त होने वाली आमदनी ‘‘अभूतों’’ पर केन्द्रित चैनलों की तुलना में कई करोड़ गुना अधिक होगी। इसके अलावा ऐसे चैनल बहुत कम निवेश में ही शुरू किए जा सकते हैं। इस चैनल के लिये चैनल प्रमुख से लेकर बाईट क्लक्टर जैसे पदों पर नियुक्ति में उन मीडियाकर्मियों को प्राथमिकता दी जाए जो या तो भूत हो चुके हैं या जो जीते जी ही ‘‘भूत सदृश’’ हैं। ‘‘भूत सदृश’’ मीडियाकर्मी ‘‘भूत प्रेमी’’ चैनलों में काफी संख्या में मिल सकते हैं।
भूतों पर केन्द्रित चैनलों को बढ़ावा देने के लिये सरकार एक नया मंत्रालय बना सकती है। भूत समुदाय के विकास में मौजूदा हिन्दी टेलीविजन चैनलों के योगदान तथा भारत में भूत चैनलों की संभावनाओं एवं उनके स्वरूप आदि के बारे में अध्ययन करने के लिए सरकार ‘भूत चैनल आयोग’ का गठन कर सकती है। सरकार भूतों पर चैनलों की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिये ‘विशेष भूत पैकेज’ की घोशणा कर सकती है।
यह स्वीकार करते हुए कि इस दिशा में चाहे जितनी तेजी से काम किया जाए, भूतों के लिये सम्पूर्ण टेलीविजन चैनल के शुरू होने में एक-दो साल तो लग ही सकते हैं और ऐसे में सरकार मौजूदा भूत प्रेमी चैनलों को ही सम्पूर्ण भूत टीवी बनने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। इसके लिए सरकार उन्हें विशेष सहायता भी दे सकती है। मेरी जानकारी में हमारे देश में एक या दो चैनल तो ऐसे हैं ही जिनके नाम से ‘इंडिया’, ‘आज’ और ‘न्यूज’ जैसे शब्द या शब्दों को हटाकर उनके स्थान पर अगर ‘भूत’ या ‘भुतहा’ शब्द लगा दिया जाए तो वे सम्पूर्ण भूत चैनल बन जाएंगे और हमारा लक्ष्य काफी हद तक पूरा हो जायेगा।
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व्यंग्यकार विनोद विप्लव पत्रकार व कहानीकार भी हैं। वे संवाद समिति ‘यूनीवार्ता’ में समाचार संपादक हैं। उनका ब्लॉग http://vinodviplav.wordpress.com है। उनसे [email protected] या 9868793203 से संपर्क कर सकते हैं।