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महानतम पत्रकारों से अपील

यशवंत जी, पिछले कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा हूं कि बी4एम इन दिनों कुछ महानतम पत्रकारों की अतृप्त कुंठाओं को व्यक्त करने का प्लेटफार्म बन गया है। खबरों के रूप में अखबारों द्वारा स्पेस बेचे जाने को लेकर माननीय श्री प्रभाष जोशी जी का चिंतन काफी हद तक जायज है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, ऐसा पहले भी होता रहा है। परंतु इस मामले में किसी एक अखबार और उसके मालिक पर कीचड़ उछालना पूरी तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित लगता है, जो बेहद चिंतनीय है। साथ में ऐसा प्रतीक हो रहा है कि प्रभाष जोशी जी के कथित चिंतन पर कुछ आउटडेटेड पत्रकार सड़क छाप भाषा का इस्तेमाल करके अपनी अतृप्त कुंठा शांत कर रहे है।

<p align="justify">यशवंत जी, पिछले कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा हूं कि बी4एम इन दिनों कुछ महानतम पत्रकारों की अतृप्त कुंठाओं को व्यक्त करने का प्लेटफार्म बन गया है। खबरों के रूप में अखबारों द्वारा स्पेस बेचे जाने को लेकर माननीय श्री प्रभाष जोशी जी का चिंतन काफी हद तक जायज है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, ऐसा पहले भी होता रहा है। परंतु इस मामले में किसी एक अखबार और उसके मालिक पर कीचड़ उछालना पूरी तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित लगता है, जो बेहद चिंतनीय है। साथ में ऐसा प्रतीक हो रहा है कि प्रभाष जोशी जी के कथित चिंतन पर कुछ आउटडेटेड पत्रकार सड़क छाप भाषा का इस्तेमाल करके अपनी अतृप्त कुंठा शांत कर रहे है। </p>

यशवंत जी, पिछले कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा हूं कि बी4एम इन दिनों कुछ महानतम पत्रकारों की अतृप्त कुंठाओं को व्यक्त करने का प्लेटफार्म बन गया है। खबरों के रूप में अखबारों द्वारा स्पेस बेचे जाने को लेकर माननीय श्री प्रभाष जोशी जी का चिंतन काफी हद तक जायज है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, ऐसा पहले भी होता रहा है। परंतु इस मामले में किसी एक अखबार और उसके मालिक पर कीचड़ उछालना पूरी तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित लगता है, जो बेहद चिंतनीय है। साथ में ऐसा प्रतीक हो रहा है कि प्रभाष जोशी जी के कथित चिंतन पर कुछ आउटडेटेड पत्रकार सड़क छाप भाषा का इस्तेमाल करके अपनी अतृप्त कुंठा शांत कर रहे है।

अगर वास्तव में इस महत्वपूर्ण मसले पर महानतम पत्रकार चिंतित हैं तो इस पर स्वस्थ बहस होनी चाहिए, न कि किसी एक अखबार को टारगेट करके उस पर कीचड़ उछाला जाना चाहिए। मैं ऐसे सभी महानतम पत्रकारों से निवेदन कर रहा हूं कि इस मसले पर पूर्वाग्रह रहित होकर गंभीरता से विचार करें, निश्चित तौर पर लोगों का समर्थन मिलेगा और अखबार समूह भी इस पर सोचने को मजबूर होंगे।


लेखक माइकल चंदन इन दिनों दिल्ली में रह रहे हैं और सक्रिय पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं। इनसे संपर्क करने के लिए उनकी मेल आईडी [email protected] का सहारा ले सकते हैं।
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