भोपाल : ‘मध्य प्रदेश संदेश’ नामक सरकारी पत्रिका को शिवराज सरकार ठेके पर देने का मन बना रही है। इसके तहत सरकार ने सबसे पहले ठेके का संपादक तलाश कर उसकी नियुक्ति कर दी है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का भरोसा अपनी व अपनी सरकार की छवि बनाने वाले जनसंपर्क विभाग व उसके अधिकारियों से उठ गया है। पिछले दिनों शिवराज ने विभाग की बैठक में साफ-साफ विभाग बंद करने तक की धमकी अधिकारियों को दे दी थी। अधिकारी हतप्रभ हैं कि क्या करें, क्या न करें? चर्चाओं का बाजार गर्म है। जनसंपर्क विभाग के सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने चेतावनी दी थी कि ये बातें बैठक के बाहर नहीं जानी चाहिए, लेकिन बातें धीरे-धीरे बाहर आ गईं। मुख्यमंत्री अपनी सरकार की पोल खोलने वाली वेबसाइट व फीचर सेवा पर पहले ही रोक लगा चुके हैं और आगे भी अख़बारों व अन्य मीडिया पर लगाम लगाने के इरादे जाहिर कर चुके हैं।
जनसंपर्क विभाग के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि अब कुछ खास लोगों को उपकृत करने की मंशा के चलते शिवराज विभाग में ठेका प्रथा शुरू करने जा रहे हैं और इसकी शुरुआत सरकार अपने मुखपत्र ‘मध्यप्रदेश संदेश’ को ही ठेके पर देकर करने जा रही है। गौरतलब है की इस पत्रिका का प्रकाशन बंद कर दिया गया था। बाद में पूर्व जनसंपर्क आयुक्त अरुणा शर्मा की पहल पर इसका पुनः प्रकाशन शुरू किया गया। पूर्व में जनसंपर्क विभाग के अपर संचालक स्तर के अधिकारी की देखरेख में इस पत्रिका का संपादन होता आया है, किन्तु कुछ समय से मुख्यमंत्री शिवराज उसके ले आउट, सामग्री को लेकर खुश नहीं हैं।
सूत्र बताते हैं कि इसके लिए सबसे पहले शिवराज सिंह ने अपने मातहतों से ठेके के संपादक की तलाश शुरू करवाई। खबर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर व अपने निजी मीडिया सलाहकार को ‘मध्य प्रदेश संदेश’ का सलाहकार संपादक बनाने के आदेश दिए व 50,000 रुपए मासिक वेतन और अन्य भत्ते के साथ उनकी नियुक्ति ठेके पर जनसंपर्क विभाग की सहयोगी संस्था ‘मध्यप्रदेश माध्यम’ से की है। सूत्र बताते हैं कि बाद में ‘माध्यम’ में अपने चहेते पत्रकारों को मीडिया विशेषज्ञ पद देकर उपकृत करने की योजना है। अब विभाग के अफसर इन नियुक्तियों को लेकर असमंजस में हैं। समस्त अधिकारियों में गुपचुप चर्चा जारी है कि क्या जनसंपर्क विभाग, ‘माध्यम’ में योग्य अधिकारियों की कमी है? ठेके पर नियुक्ति की बात अधिकारियों के गले नहीं उतर रही है, किन्तु करें भी तो क्या करें, मुख्यमंत्री के आगे सब विवश हैं।
आरएसएस से जुड़े पत्रकारों ने मोर्चा खोला
गिरिजा शंकर को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े कई पत्रकारों ने मोर्चा खोल दिया है। विभिन्न पत्रकारों ने अलग-अलग रूप से मुख्यमंत्री को अपनी भावना से अवगत कराते हुए विरोध दर्ज कराया है। सूत्रों की मानें तो संघ से जुड़े पत्रकार, पूर्व में इंदौर से निकलने वाले ‘स्वदेश’ के संपादक व वर्त्तमान में ‘चरैवेति’ के संपादक जयकिशन गौड़ इस दौड में सबसे आगे थे, किन्तु शिवराज सरकार ने उनसे लालबत्ती कार का वादा कर उन्हें मंझदार में छोडं दिया। वहीं जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार भगवती धर वाजपेयी भी इस दौड में थे, किन्तु नियुक्ति का निर्णय शिवराज द्वारा पूर्व में ही लिया जा चुका था। आरएसएस विचारधारा के पत्रकारों का मानना है कि ‘कांग्रेस शासनकाल में मलाई काटने वाले पत्रकार आज भी सरकार के करीब हैं और संघ की विचाधारा से जुड़े पत्रकार आज भी अपनी सही जगह नहीं पा सके हैं।’ संघ इस पूरे मामले पर नजर रखे हुए है।
कौन हैं गिरिजा शंकर
मूलतः छतीसगढ़ के रहने वाले गिरिजाशंकर पूर्व में कांग्रेस शासन काल में दिग्विजय सिंह व अजित जोगी और छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के भी मीडिया सलाहकार रह चुके हैं। वे दिग्विजय सिंह के दलित एजेंडा को भी अमली जामा पहना चुके हैं। संघ की विचाधारा से जुड़े वरिष्ठ पत्रकारों की मानें, तो उनका कहना है कि ‘मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग से गिरिजाशंकर का समस्त परिवार उपकृत है और मुख्यमंत्री ने वामपंथी विचारधारा के व्यक्ति को सलाहकार संपादक बना कर अपने लिए एक नई मुसीबत मोल ले ली है। मुख्यमंत्री का ये मीडिया प्रेम समझ से परे है।’
शिवराज के लिए नित नई परेशानियां सामने आने के चलते दबी जबान में मंत्रिमंडल सहयोगी भी ‘मतिभ्रष्ट’ शब्द का प्रयोग कर इस मामले पर कन्नी काट रहे हैं। वहीं, जनसंपर्क विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के जमाने में एक बार दिल्ली के पत्रकार आलोक तोमर को ‘मध्य प्रदेश संदेश’ का सलाहकार संपादक बनाया गया था, लेकिन वह प्रयोग असफल रहा था। अधिकारी मानते हैं कि ऐसा ही हश्र इस प्रयोग का भी होगा। अब देखना है कि मुख्यमंत्री आगे किसको उपकृत करते हैं? मुख्यमंत्री को भरोसा है कि नई नियुक्तियों के बाद सरकार के प्रतिदिन काले होते चेहरे में कुछ निखार लाया जा सकेगा।
((राजेश भाटिया की रिपोर्ट, साभार : मेरी खबर डाट काम))