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साहित्य

87 पार नन्द बाबू का लेखन धारदार

[caption id="attachment_17700" align="alignleft" width="71"]नंद बाबूनंद बाबू[/caption]1960 के पहले और बाद के दौर में अपनी रचनाओं के जरिये कभी समाजवादी तो कभी कलावादी सोच को सींचने वाले 87 साल उम्र के प्रख्यात साहित्यकार और कवि नन्द चतुर्वेदी आज भी सार्थकता के साथ बने हुए हैं। उन्होंने वाद प्रतिवादों के झंझटों से स्वयं को मुक्त मानते हुए समानान्तर रूप में आशावादी चिन्तन की द्योतक अपनी कविताओं को आगे बढ़ाया है।

नंद बाबू

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नंद बाबू

1960 के पहले और बाद के दौर में अपनी रचनाओं के जरिये कभी समाजवादी तो कभी कलावादी सोच को सींचने वाले 87 साल उम्र के प्रख्यात साहित्यकार और कवि नन्द चतुर्वेदी आज भी सार्थकता के साथ बने हुए हैं। उन्होंने वाद प्रतिवादों के झंझटों से स्वयं को मुक्त मानते हुए समानान्तर रूप में आशावादी चिन्तन की द्योतक अपनी कविताओं को आगे बढ़ाया है।

समाज को दिशाबोध कराती नन्द बाबू की लेखनी कई बार चुटीले व्यंग्यों से गुजरती नजर आई है। आम बोलचाल के शब्दों वाली आस-पास की भाषा से बनी उनकी कविताएं अपनी हर शक्ल और युग में तत्पर खड़ी नजर आई। ये विचार चित्तौड़गढ़ के अलख स्टडीज संस्थान में स्पिक मैके सांस्कृतिक आन्दोलन की एक मासिक गोष्ठी में उभर कर आए। 10 जुलाई शनिवार को यहां नगर के साहित्य प्रेमियों ने बोधि प्रकाशन जयपुर द्वारा हालिया प्रकाशित जन संस्करण में छपे कविता संग्रह ‘जहाँ एक उजाले की रेखा खिंची है’ से कविता पाठ कर चर्चा की।

वैचारिकी पत्रिका ‘बिन्दु’ के सम्पादक रहे नन्द चतुर्वेदी का ये कविता संग्रह चर्चा में है। गोष्ठी में डाईट के प्राध्यापक एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के जिलाध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र सिंधवी ने पुस्तक का समीक्षात्मक परिचय देते हुए कविताओं के अंश भी पढ़े। संग्रह की प्रमुख और पठनीय कविताओं में ‘किला, सब हमारे पक्ष में है, महारानी, फेन्सीड्रेस कॉम्पीटिशन, स्त्री दीर्घायु हों, कविता तुम सार्थक रहो.. का पाठ किया गया।

शोधार्थी स्कूली प्राध्यापक गोविंदराम शर्मा ने नन्दबाबू की रचनाओं से झांकते जनवाद और समाजवाद को अपनी दृष्टि से प्रस्तुत किया। डाईट के पूर्व प्राचार्य एम.एल. डाकोत ने कहा कि चतुर्वेदी की रचनाएं बहुत कुछ रूप में शाश्वत नजर आती हैं। साथ ही सदैव आशा का संचार करती रही हैं। परिस्थितिजन्य टिप्पणियों से अपनी गहरी सोच कर परिचय देने वाले नन्द चतुर्वेदी से सानिध्य का खुलासा किया।

कविता पाठ के बाद संक्षिप्त चर्चा भी रखी गई जिसमें ”साहित्य की कौनसी विधा आज ज्यादा सार्थक हैं“ विषय पर उपस्थित जन ने प्रतिभागिता निभाई। सम्पूर्ण रूप से उभरे निष्कर्ष में सभी ने माना कि पाठकीयता बढ़ाने का बोधि प्रकाशन का ये जनसंस्करण फार्मूला बेहद लोकप्रिय रहा। नन्द चतुर्वेदी की हर युग की खास कविताओं का एक स्थान पर प्रस्तुतीकरण का ये अच्छा प्रयास हैं।

कविताओं के बहाने नन्द बाबू ने समय की नजाकत समझ रास्ता निकालने, पुरुष प्रधान समाज की विकृत मानसिकता, कविता की सार्थकता और लगातार बदलते परिवेश को अपनी व्यंग्य शैली की चपेट में  लिया है। गोष्ठी में स्पिक मैके अध्यक्ष बी.डी. कुमावत, समन्वयक जे.पी. भटनागर, अध्यापक अशोक दशोरा, घनश्याम गर्ग, चित्रकार रमेश प्रजापत, सत्यनाराय जोशी, रमेश चन्द्र वाघवानी, दिलीप गांधी, छात्र नरेश शर्मा आदि उपस्थित थे। गोष्ठी का संचालन और कवितापाठ स्पिक मैके राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य माणिक ने किया।

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