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दुख-दर्द

‘वैद्यजी’ पत्रकार बने तो हो गए मालामाल

नरेंद्र वत्स, रेवाड़ी, 3 जून। अगर आप समाज को गुमराह करते हुए फर्जी वैद्य बनकर लड़का पैदा होने की गारंटी देते-देते कर्जवान हो गए और ईमानदारी आपके आसपास भी नहीं, तो चिंता करने की कोई बात नहीं। किसी तरह पत्रकारिता में आ जाओ। लोगों को जमकर ब्लैकमेल करो और रातोंरात लखपति बन जाओ। पत्रकार होने के नाते वे लोग आपके आसपास नजर नहीं आएंगे, जो आपसे कर्ज मांगते हैं। ‘अभी-अभी’ समाचार पत्र ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जो मुहिम शुरू की है, उसका चहुंओर स्वागत किया जा रहा है।

नरेंद्र वत्स, रेवाड़ी, 3 जून। अगर आप समाज को गुमराह करते हुए फर्जी वैद्य बनकर लड़का पैदा होने की गारंटी देते-देते कर्जवान हो गए और ईमानदारी आपके आसपास भी नहीं, तो चिंता करने की कोई बात नहीं। किसी तरह पत्रकारिता में आ जाओ। लोगों को जमकर ब्लैकमेल करो और रातोंरात लखपति बन जाओ। पत्रकार होने के नाते वे लोग आपके आसपास नजर नहीं आएंगे, जो आपसे कर्ज मांगते हैं। ‘अभी-अभी’ समाचार पत्र ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जो मुहिम शुरू की है, उसका चहुंओर स्वागत किया जा रहा है।

लोगों ने अब इस समचार पत्र को जो जानकारियां उपलब्ध कराई हैं, उससे कई मामले चौकाने वाले हैं। ऐसा ही एक मामला एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार का सामने आया है। पता चला कि करीब एक दशक पूर्व जब हरियाणा में लिंगानुपात की स्थिति काफी विस्फोटक मानी जा रही थी, एक फर्जी वैद्य उस समय दो-दो हजार रुपए लेकर लड़का पैदा होने की शर्तिया दवा देता था। कई मामलों में सार्थक परिणाम सामने नहीं आने के कारण कुछ महिलाओं ने इस फर्जी वैद्य की जमकर धुनाई की। इसी दौरान वैद्य आर्थिक संकट में फंस गए। गांव में कर्ज लेने की नौबत आ गई। कर्ज उतारने के लिए कोई विकल्प सामने नहीं था, तो वैद्यजी ने आयुर्वेद के नाम पर एक पत्रिका निकालने का निर्णय लिया। बिना पंजीकरण की इस पत्रिका से जब छपाई का खर्चा भी नहीं निकला, तो प्रिंटिंग प्रेस के मालिक ने पैसे का दबाव बना शुरू कर दिया। परिणाम यह रहा कि परिवार को पालने के लिए वैद्यजी के सामने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ तक करना मुश्किल हो गया। जिस समय वैद्यजी बुरी तहर आर्थिक संकट में फंसे हुए थे, एक राष्ट्रीय समाचार पत्र का हरियाणा में उदय हुआ। वैद्यजी ने पत्र के ब्यूरो प्रमुख के सामने खुद को नतमस्तक कर दिया।

ब्यूरो प्रमुख ने न सिर्फ वैद्यजी को कुछ लिखना सिखाया, बल्कि परिवार पालने के लिए करीब पांच सौ रुपए का मानदेय भी शुरू करा दिया। इसके बाद वैद्यजी को ब्लैकमेलिंग का एक ऐसा रास्ता मिला, जिसने उसे गरीबी के भंवर से निकालकर लाखों रुपए की संपत्ति का मालिक बना दिया। इस स्थित के चलते फर्जी वैद्य खुद को डॉक्टर बताने में मशगूल हो गया। जिस ब्यूरो प्रमुख ने उसे एक पत्रकार का नाम देने में मदद की, वैद्य ने उसे ही  लाइन लगाने का प्रयास किया। जब मुहिम सिरे नहीं चढ़ी, तो उसने दूसरे राष्ट्रीय अखबार के ब्यूरो प्रमुख के सामने मन्नतें की। इस फजी वैद्य ने वहां भी वहीं किया, जो पहली जगह किया था। ब्यूरो प्रमुख के शिक्षित होने व प्रबंधन पर मजबूत पकड़ रखने के कारण 12वीं फेल वैद्यजी अपनी योजना में कामयाब नहीं हो पाया। इसी दौरान एक अन्य राष्ट्रीय समाचार पत्र ने प्रदेश में अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए प्रयास तेज किए। इस पत्र का ब्यूरो प्रमुख कमजोर होने के कारण फर्जी वैद्य उसका पत्ता साफ करने में कामयाब हो गया। लोगों को यह लग रहा था कि लंबे समय से इस पत्र का ब्यूरो चीफ रह चुका यह बंदा अपने ऊपर ब्यूरो चीफ को बर्दाश्त नहीं कर पाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शातिर दिमाग ‘वैद्यजी’ के सामने एक ब्यूरो प्रमुख पत्रकार बनने तक सिमट गया। सच्चाई समाने आने के बाद शहर के लोग अब इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं कि इस फर्जी वैद्य को वैद्य कहा जाए या डॉक्टर।

डॉक्टर के साथ मिलकर शुरू किया धंधा : पत्रकारिता के नाम पर कालाबाजारी में माहिर हो चुके इस पत्रकार का संपर्क इसी दौरान एक डॉक्टर के साथ हो गया। डॉक्टर के साथ मिलकर जमीन की खरीद-फरोख्त का धंधा शुरू किया गया। गुजरात में आए भूकंप के दौरान वैद्यजी कवरेज व राहत सामग्री पहुंचाने के नाम पर अहमदाबाद पहुंचे और वहां से औने पौने दामों पर जेसीबी मशीन लाने में कामयाब हो गए। एक ओर प्रशासन पर दबाव बनाकर सरकारी कार्यों में जेसीबी मशीनों को जमकर दौड़ाया, तो दूसरी ओर जमीन पर कब्जे करने व मरे हुए लोगों की जमीन को खरीदकर लाखों रुपए का खेल चलाया। शातिर दिमाग इस फर्जी वैद्य ने बाद में कुछ नेताओं की चाटुकारिता करने का खेल भी जमकर चलाया। अब प्रशासन की नजर में भ्रष्ट पत्रकारों की सूची में एक ऐसे ही फर्जी वैद्य का नाम सबसे ऊपर है, पत्रकारिता की आड़ में मालामाल हो चुका है।

सिलेंडरों की कालाबाजारी : लोगों से प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार एक प्रदेश स्तरीय अखबार का पत्रकार भी समाजसेवा की आड़ में सिलेंडरों की कालाबाजारी में जुटा हुआ है। इस पत्रकार ने अपने भाई के नाम कुछ थ्री व्हीलर खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर, एक गैस एजेंसी पर लगाए हुए है। इन थ्री व्हीलरों में आने वाले गैस सिलेंडरों में वे सिलेंडर भी शामिल होते हैं, जिन्हें घर पर रखकर ब्लैक में बेचा जाता है।

नहीं हुई कार्रवाई : पुलिस प्रशासन लोगों की शिकायत पर किस तरह कार्रवाई करता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पत्रकार प्रीतम सिंह की शिकायत पर पुलिस ने जातिसूचक शब्द कहने के आरोपी महेश वैद्य के खिलाफ चार दिन तक केस दर्ज नहीं किया गया। इससे पत्रकारों में पुलिस प्रशासन के खिलाफ भारी रोष है। इस मामले को लेकर प्रीतम सिहं ने अब कोर्ट की शरण लेने का मन बना लिया है।


इससे पहले की खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें- 
  1. भ्रष्टाचार में लिपटी है पत्रकारिता की क्रीम

  2. पत्रकारों की करतूत पर अखबार में स्टोरी

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