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दूसरे चैनलों के ओबी वैन से लाइव काट लो !

एक न्यूज चैनल में काम करने वाले एक पत्रकार साथी ने अपना और अपने चैनल का दुखड़ा भड़ास4मीडिया के सामने एक मेल के जरिए रोया है। उन्होंने अपने दुखड़े में चैनल का नाम, चैनल के वरिष्ठों का नाम और काम तक लिख दिया है पर  इन नामों को हम यहां इसलिए नहीं दे रहे हैं क्योंकि यह किस्सा किसी एक चैनल का नहीं बल्कि ज्यादातर छोटे-मझोले गैर-पेशेवर न्यूज चैनलों का है। और, यह एक ट्रेंड है। यह एक भयावह सच है जो कमोबेश कम ज्यादा हर जगह देखने को मिल जाता है। कम संसाधन में ज्यादा से ज्यादा और जल्दी से जल्दी परोसने का दबाव चैनल के संपादकीय कर्मियों से क्या कुछ नहीं करवाता, उसकी एक झलक पाना चाहते हैं तो अनाम पत्रकार साथी द्वारा भेजे इस दुखड़े को पढ़ें।

-संपादक, भड़ास4मीडिया 

<p align="justify">एक न्यूज चैनल में काम करने वाले एक पत्रकार साथी ने अपना और अपने चैनल का दुखड़ा भड़ास4मीडिया के सामने एक मेल के जरिए रोया है। उन्होंने अपने दुखड़े में चैनल का नाम, चैनल के वरिष्ठों का नाम और काम तक लिख दिया है पर  इन नामों को हम यहां इसलिए नहीं दे रहे हैं क्योंकि यह किस्सा किसी एक चैनल का नहीं बल्कि ज्यादातर छोटे-मझोले गैर-पेशेवर न्यूज चैनलों का है। और, यह एक ट्रेंड है। यह एक भयावह सच है जो कमोबेश कम ज्यादा हर जगह देखने को मिल जाता है। कम संसाधन में ज्यादा से ज्यादा और जल्दी से जल्दी परोसने का दबाव चैनल के संपादकीय कर्मियों से क्या कुछ नहीं करवाता, उसकी एक झलक पाना चाहते हैं तो अनाम पत्रकार साथी द्वारा भेजे इस दुखड़े को पढ़ें। </p><p align="right">-संपादक, भड़ास4मीडिया </p>

एक न्यूज चैनल में काम करने वाले एक पत्रकार साथी ने अपना और अपने चैनल का दुखड़ा भड़ास4मीडिया के सामने एक मेल के जरिए रोया है। उन्होंने अपने दुखड़े में चैनल का नाम, चैनल के वरिष्ठों का नाम और काम तक लिख दिया है पर  इन नामों को हम यहां इसलिए नहीं दे रहे हैं क्योंकि यह किस्सा किसी एक चैनल का नहीं बल्कि ज्यादातर छोटे-मझोले गैर-पेशेवर न्यूज चैनलों का है। और, यह एक ट्रेंड है। यह एक भयावह सच है जो कमोबेश कम ज्यादा हर जगह देखने को मिल जाता है। कम संसाधन में ज्यादा से ज्यादा और जल्दी से जल्दी परोसने का दबाव चैनल के संपादकीय कर्मियों से क्या कुछ नहीं करवाता, उसकी एक झलक पाना चाहते हैं तो अनाम पत्रकार साथी द्वारा भेजे इस दुखड़े को पढ़ें।

-संपादक, भड़ास4मीडिया 

 

प्रिय यशवंत जी,

नमस्ते

मैं ….न्यूज चैनल  में काम करता हूं और यहां के बारे में कुछ बताना चाहता हूं। पर सोचता हूं कि मैं यह करके कोई गलत काम तो नहीं कर रहा, क्योंकि मैं यहां का नमक खा रहा हूं। पर अब तो हद हो गयी है इस चैनल में। शुरू कहां से करुं, समझ में नहीं आ रहा है।

सबसे पहले इस चैनल  की खासियत बताना चाहूंगा कि 10% लोगों को छोड़ कर किसी को कुछ नहीं आता है। इस चैनल के एसाइनमेंट डेस्क के बारे में बताना चाहूंगा कि यह सबसे ख़राब जगह है। एक-दो लोगों को छोड़ कर बाकी सभी को कुछ नहीं आता है। कोई खबर सही से नहीं लिख पाता है।

हां, इस चैनल की सबसे बड़ी बात यह है कि यहां हर न्यूज़ चैनल से विजुअल चोरी की जाती है और फिर इसे  धड़ल्ले से चलाया जाता है। यहां तक की यहां सभी न्यूज़ चैनल के  ओबी वैन का सारा फीड चोरी किया जाता है और कभी-कभी तो दूसरे चैनल के  ओबी वैन  से  लाइव  तक काट लिया जाता है।

अब रही सीनियरों की बात तो ऊपर के ज्यादातर लोग हरामखोर हैं। बस, लड़कियां होनी चाहिए तो गलती नहीं। लड़के हों तो नौकरी खत्म। यहां पर पहले ….जी हेड थे फिर वे निकल गए। आउटपुट हेड और इनपुट हेड चैनल छोड़ कर चले गए तो फिर इन्हें बुलाया गया। उन्हें कुछ आता नहीं है। बस यही कहते हैं कि ब्रेकिंग न्यूज आती है तो इसे  रिकार्ड करो और चलाओ। चैनल के मालिक भी आते हैं तो कहते हैं की फलां वाली न्यूज किसी चैनल  से रिकर्ड करो और चलाओ। यशवंत जी, इस चैनल में सिर्फ लड़कियां भरी जा रहीं हैं जिनमें से ज्यादातर को  कुछ काम नहीं आता। बस मजा होता है यहां। इस चैनल में ….चैनल से ….जी आये हैं, चैनल हेड बन कर। पर ये भी वैसे ही हैं,  पर ठीक हैं। लेकिन ….जी अब इन …. जी को हटाने की साजिश रच रहे है क्योंकि अब …. जी की नहीं चलती है।

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ओके, समय नहीं है लेकिन बहुत सारी बाते अभी नहीं बता पाया हूं। मैं आपको बाद में जरूर बताऊंगा, यह वाला प्रकाशित होने के बाद।

धन्यवाद

आपका एक अनाम दोस्त

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