भारतीय समाचार पत्र संगठन ने सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी से डीएवीपी के कामकाज में सुधार की मांग की है। डीएवीपी का काम अखबारों को सरकारी विज्ञापन उपलब्ध कराना होता है। संगठन ने दिल्ली में अंबिका सोनी को बताया कि सभी समाचार पत्रों के ई-मेल पतों की जानकारी रखने के बावजूद डीएवीपी की तरफ से उन्हें सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराई जाती। स्टेशनरी और छपाई पर तो यह महकमा करोडों रुपए खर्च कर रहा है पर सूचना तकनीक का लाभ उठाने को तैयार नहीं। संगठन ने तिमाही और हर दो महीने बाद छपने वाली पत्रिकाओं को भी पूर्व की भांति सरकारी विज्ञापन जारी रखने पर जोर दिया है।
संगठन के महामंत्री रवि कुमार विश्नोई की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल ने अंबिका से उनके दफ्तर में छोटे अखबारों की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा की। भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल भी उनके साथ थे। संगठन ने मंत्री से कहा कि अखबारों का उत्पीडन की गरज से डीएवीपी के अधिकारी उनकी विज्ञापन दरों के नवीनीकरण के वक्त बेजा नुक्ताचीनी कहते हैं। दरों के नवीनीकरण के लिए दी गई अर्जियों पर वक्त रहते कार्रवाई नहीं की जाती अलबत्ता आखिरी वक्त पर कमियां निकालकर अर्जियों को बेअसर बना दिया जाता है।
विश्नोई ने सोनी को बताया कि पिछली सरकार ने जो विज्ञापन नीति घोषित की थी उसमें फार्म 12 का कोई जिक्र नहीं था। फिर भी समाचार पत्रों को अब फार्म 12 पर सूचनाएं उपलब्ध कराने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जबकि 25000 से कम प्रसार संख्या वाले अखबारों के लिए फार्म 12 का कोई औचित्य नहीं है। संगठन ने मांग की कि सूचना प्रसारण मंत्रालय जो भी नीति बनाए, उसे कम से कम दस साल तक लागू रखा जाना चाहिए। प्रतिनिधिमंडल में शामिल दैनिक नारदवाणी के प्रकाशक राजीव वशिष्ठ ने डीएवीपी से भुगतान में बेजा देरी की तरफ भी मंत्री का ध्यान दिलाया। भारतीय भाषाई समाचार पत्र संगठन ने अंबिका सोनी से इस बात पर गहरी आपत्ति जताई कि डीएवीपी की तरफ से हिंदी की लगातार उपेक्षा की जा रही है।
डीएवीपी न केवल अपना कामकाज और पत्र व्यवहार अंग्रेजी में कर रही है, बल्कि भाषाई अखबारों को जारी किए जाने वाले विज्ञापन भी अंग्रेजी में ही भेज रही है। व्यापक सामाजिक जागरूकता अभियानों से संबंधित सरकारी विज्ञापन छोटे भाषाई अखबारों को दिए जाने का भी संगठन ने अंबिका से आग्रह किया। साभार : भाषा