मंदी और विज्ञापनों की बेरुखी से जूझ रहे मीडिया उद्योग के सिर पर छाये संकट के बादल कम होते नहीं दिख रहे हैं। ताजा झटका लगाने वाला है अखबारी कागज के दाम में वृद्धि के कारण। वैश्विक बाजार के अखबारी कागज के नियंताओं ने अगले कुछ महीनों में दाम में 60 से लेकर 65 डालर प्रति टन की बढ़ोत्तरी की घोषणा की है। इनकी देखादेखी भारतीय आपूर्तिकर्ता भी दाम बढ़ाने की तैयारी में जुट गए हैं।
वैसे, दाम बढ़ाने के बावजूद घरेलू उत्पादक घाटे में रहेंगे। ऐसा टैक्स फ्री अखबारी कागज के सस्ते आयात के कारण हो रहा है। वैसे भी, देश में कागज प्रोडक्शन की आधी फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं। इस कारण कागज प्रोडक्शन में भी कमी की आशंका जताई जा रही है। पिछले साल कागज उत्पादन साढ़े आठ लाख टन के करीब था तो इस साल इसके साढ़े पांच लाख टन रह जाने के आसार हैं। इससे आयातित कागज की मात्रा बढ़ जाएगी। देश में अखबारी कागज की वार्षिक खपत करीब 18 लाख टन है जिसमें से पिछले साल 10 लाख टन आयात किया गया था। माना जा रहा है कि आयात में अगर इसी तरह वृद्धि होती रही तो घरेलू कागज उद्योग का कबाड़ा निकल जाएगा।
अखबारी कागज के संबंध में कुछ अन्य तथ्य-
अखबारी कागज उत्पादकों का रेट है 450 डॉलर प्रति टन
खराब कागज की कीमतों का रेट है 190 डॉलर प्रति टन
एक टन न्यूजप्रिंट के लिए 1.4 टन खराब कागज की जरूरत