आतंकवादी समूहों और सरकार के दबाव के बीच जी रहे हैं पत्रकार : कोई नेता और अफसर मीडिया से बात नहीं करता : भारत का जो भी हिस्सा उग्रवाद, आतंकवाद या नक्सलवाद जैसे आंदोलनों-संघर्षों से पीड़ित-व्यथित है, वहां मीडिया की आजादी बस कहने भर को है. पत्रकार दो दबावों के बीच झूलते हुए काम कर रहे हैं. खासकर पूर्वोत्तर की बात करें तो वहां मीडिया की स्थिति बेहद खराह है.
अलगाववादी आतंकवादी समूहों, राज्य सरकारों और संगठित अपराधियों के हमलों के कारण कम से कम दो राज्यों मणिपुर और असम में मीडिया की स्वंतत्रता को गंभीर खतरा पैदा हो गया है. पिछले दो दशकों में पूर्वोत्तर में कम से कम 25 पत्रकारों की हत्या हुई और 30 से अधिक को आतंकवादियों को मदद देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. मणिपुर जैसे कई राज्यों में आतंकवादियों ने मीडिया को वास्तव में बंधक बना लिया है. असम में 20 और मणिपुर में पांच पत्रकारों की हत्या हुई, लेकिन किसी को भी इस संबंध में गिरफ्तार नहीं किया गया. आतंकवादियों के साथ ही राज्य प्रशासन भी मीडिया का उत्पीड़न करता है.
पिछले महीने एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने मणिपुर में पत्रकारों की हालत पर चिंता जताते हुए राज्य सरकारों और सुरक्षा बलों के बीच मीडिया के मामलों में बेहतर समन्वय के उपाय करने पर बल दिया. गिल्ड के दो सदस्यीय दल ने पिछले महीने राज्य का दौरा किया और मीडिया को राज्य सरकार, पुलिस और गैर राज्यीय भूमिगत समूहों के दबाव में पाया. वरिष्ठ पत्रकारों सुमित चक्रबर्ती और बी.जी.वर्गीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अन्य राज्यों के विपरीत मणिपुर के सूचना और प्रसारण मंत्री पत्रकारों के साथ संवाद नहीं करते. असम में सरकार ने पिछले वर्ष से वास्तव में मीडिया को सूचनाएं देना प्रतिबंधित कर दिया है और पुलिस तथा नागरिक अधिकारियों से पत्रकारों से बात नहीं करने को कहा है.