एनयूजे सम्मेलन में पत्रकारों पर हमले की जांच के लिए समिति गठित : नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) ने लोकसभा चुनाव के दौरान खबरों की जगह खबरों के तौर पर विज्ञापन छापने की कड़ी निंदा की। एनयूजे के जयपुर में संपन्न हुए दो दिनी सम्मेलन में समाचार पत्रों और उनके घरानों में बढ़ती व्यावसायिकता पर चिंता जताई गई। कहा गया कि अब ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना पुण्य के समान हो गया है। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में समाचार पत्रों की भूमिका पर चिंता जताई गई और कहा गया कि अब विज्ञापन खबरों के रूप में छापे जाने लगे हैं। सम्मेलन में कहा गया कि समाचार पत्रों की गौरवशाली परंपरा और इतिहास है, किंतु कुछ समाचार पत्रों ने इसे भुला दिया। लोकसभा चुनावों में अखबारों में पाठकों के लिए खबरों की जगह खबरों के तौर पर विज्ञापन छपे। यह सब ‘पैकेज’ के नाम पर हुआ। इस तरह के समाचार-विज्ञापन का ‘पैकेज’ सिर्फ देश की आजादी की लड़ाई में अगुआ रहे अखबारों ने ही नहीं किया।
यह काम डेढ़ सौ से दो सौ साल की पत्रकारिता के इतिहास वाले राष्ट्रीय स्तर के अखबारों ने भी खूब किया। इन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पार्टियों से सीधे डील की और ‘पैकेज’ बेचे। स्थिति यह थी कि संपादक को ही मालूम नहीं था कि पहला पेज किसे बेच दिया गया है। अखबारों ने ऐसा करके पाठक और देश के असली मालिक मतदाता के साथ धोखाधड़ी की है। पत्रकारिता से ही लोकतंत्र के बाकी तीनों स्तंभों पर नजर रखी जाती है और उन्हें ठीक रखने का प्रयास होता है। किंतु अब तो सवाल यह है कि लोकतंत्र की सेवा करने वाली पत्रकारिता कैसे बचेगी? सम्मेलन में कहा गया कि लोकतंत्र बचाने के लिए आंदोलन चलाना पड़ेगा।
एनयूजे (इंडिया) के दो दिवसीय सम्मेलन का उदघाटन केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी ने किया। सम्मेलन में वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी, एनयूजे (इंडिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीके राय, भाजपा के राज्यसभा सांसद ललित किशोर चतुर्वेदी, बीबीसी के भारत संपादक संजीव श्रीवास्तव और एनयूजे के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र प्रभु, नंदकिशोर त्रिखा, वरिष्ठ पत्रकार गुलाब बत्रा, असीम मिश्रा, महेश्वरदयाल गंगवार, जितेंद्र अवस्थी और रामभुवन सिंह कुशवाह ने भी अपने विचार रखे।
सम्मेलन में पारित प्रस्ताव में देश के विभिन्न राज्यों में हो रही पत्रकार उत्पीड़न की घटनाओं और गंभीर हमलों पर चिंता जताई गई। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में पत्रकारों पर हो रहे हमलों और नक्सल व माओवाद प्रभावित राज्यों में मुश्किल हो रही रिपोर्टिंग पर गंभीर चिंता जताई गई। इन घटनाओं पर विस्तृत छानबीन के लिए एनयूजे ने पांच सदस्यों की जांच समिति का गठन किया है। सम्मेलन में मीडिया काउंसिल के गठन की मांग, वेतन बोर्ड के कार्य में प्रगति लाने, न्यूज स्पेस की विज्ञापन के रूप में बिक्री रोकने, आर्थिक मंदी के नाम पर अखबारों से पत्रकारों की छंटनी रोकने, उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान किए जाने और अंशकालिक पत्रकारों की सेवा शर्तों में सुधार की मांग संबंधी प्रस्ताव पारित किए गए। सम्मेलन में पत्रकारिता को लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ की संज्ञा दी गई। सम्मेलन में पत्रकारों से समाचार की अस्मिता बचाने के लिए आगे आने का आह्ववान किया गया।
नई मीडिया कौंसिल बने : डीयूजे (दिल्ली यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स) के अध्यक्ष एसके पांडे का कहना है कि आजादी के बासठ साल बाद अब जरूरत है कि प्रेस कौंसिल की जगह नई मीडिया कौंसिल हो। उन्होंने श्रमजीवी पत्रकार कानून में संशोधन और स्वायत्तशासी मीडिया आयोग के गठन की मांग की। साथ ही चाहा कि आयोग ही मीडिया में पिछले पच्चीस वर्षों में आए विभिन्न बदलावों का जायजा ले और श्रमजीवी पत्रकार कानून में नए संशोधन सुझाए। पत्रकारों का व्यापक साझा मंच गठित करने के प्रयास भी सराहे गए। पांडे ने बताया कि बदलते नए मीडिया परिदृश्य में केरल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स ने देश के विभिन्न पत्रकारों का व्यापक साझा मंच बनाने का प्रयास शुरू किया है। मुद्दों पर आधारित यह साझा मंच देश के लघु और मध्यम दर्जे के अखबारों की इकाइयों में सक्रिय पत्रकारों, कर्मचारियों की चिंता करेगा।
उन्होंने कहा कि देश में न्यूजपेपर डेवलपमेंट कारपोरेशन गठित होना चाहिए जो छोटे-मझोले अखबारों और साहित्य समेत विभिन्न विषयों पर प्रकाशित लघु पत्रिकाओं व जर्नल की समस्याओं व निदान पर ध्यान दे। यह मांग भी की गई कि प्रसार भारती को और स्वायत्तशासी बनाया जाए और सामुदायिक रेडियो स्टेशन को बढ़ावा मिले। पहले और दूसरे प्रेस आयोग के अनुरूप एक स्वायत्तशासी केंद्रीय प्रेस आयोग बने जो मीडिया के विभिन्न स्वरूपों का अध्ययन करे। पत्रकारों और अखबारी कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना बने साथ ही उनको जोखिम बीमा योजना का लाभ दिया जाए। संवाद एजंसियों के पत्रकारों व कर्मचारियों के लिए ‘पैकेज’ घोषित किया जाए।