अमेरिकी सेना की बर्बरता का गवाह है. इस वीडियो को क्लिक कर देखिए. किस तरह अमेरिकी सैनिक बिना चेतावनी निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाते हैं. इसमें समाचार एजेंसी रायटर्स के युद्ध फोटोग्राफर नमीर नूर अल्दीन (22 वर्ष) और समाचार एजेंसी की गाड़ी के चालक सईद चमाग (40 वर्ष) मारे जाते हैं.
वीडियो में दिखाया गया है कि अमेरिकी सैनिक न सिर्फ निर्दोष नागरिकों पर गोलियां बरसा रहें हैं बल्कि अपनी इस करतूत पर ठहाके भी लगा रहे हैं. इसमें दिखाया गया है कि अमेरिकी सेना के जवान आम नागरिकों एक समूह पर अंधाधुंध गोलीबारी कर रहे हैं. इनमें से कुछ नागरिक निहत्थे दिख रहे हैं. ये लोग बड़े आराम से खड़े बातें कर रहे थे. इन्हें तनिक भी आभास नहीं था कि वे गोलियों से भून दिए जाएंगे. यह गोलीबारी इराक के न्यू बगदाद जिले में 12 जुलाई, 2007 को हुई थी. अमेरिकी सेना ने भी इस वीडियो फुटेज को वास्तविक करार दिया है. वैसे, गोलीबारी के तत्काल बाद अमेरिकी सेना ने मारे गए लोगों को उपद्रवी और आतंकी बताया था. वीडियो जारी करने वाली वेबसाइट विकीलीक्स.ओआरजी का कहना है कि यह वीडियो एक अपाचे हेलीकॉप्टर से शूट किया गया है. वीडियो ये है, क्लिक करें…
सन 2006 में लांच हुई विकीलीक्स.ऑर्ग ने थाईलैंड और चीन ही नहीं, अमेरिका तक की सरकार की नींद हराम कर दी है. और सरकारों ही क्यों, अनेक धार्मिक संगठनों, नौकरशाहों और संस्थानों को समझ नहीं आ रहा कि लोहे के संदूकों में बरसों से दबे उनके राज इंटरनेट पर किसने डाल दिए और अब वे करें तो क्या? विकीलीक्स की स्थापना करने वाले वे लोग हैं जो खुद सरकारी दमनचक्र और यातनाओं के शिकार हो चुके हैं, या फिर इस किस्म के दमन के धुर-विरोधी हैं. इसीलिए विश्व में कहीं भी होने वाली अलोकतांत्रिक और मानवाघिकार-विरोधी कार्रवाइयों के विरूद्ध उनके मन में गहरा आक्रोश है, उनसे पीडित हुए लोगों के प्रति सहानुभूति और जुड़ाव है. उनका सीधा सा लक्ष्य है- विश्व को शांतिपूर्ण तथा अन्याय-मुक्त बनाने के लिए सूचनाओं के हथियार का साहसिक और कुछ हद तक चालाकी भरा इस्तेमाल.
विकीलीक्स.आर्ग वेबसाइट के बारे में वरिष्ठ पत्रकार और वेब विशेषज्ञ बालेन्दु दाधीच बताते हैं- ”विकीलीक्स की स्थापना करने वाले कुछ तिब्बती शरणार्थियों, चीनी असंतुष्टों और थाई राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने शायद ही कल्पना की हो कि दो साल के भीतर उनके पास दुनिया भर से आए करीब 12 लाख सरकारी-गैरसरकारी गोपनीय दस्तावेजों का भंडार होगा. हां, उन्हें इस काम में निहित जोखिमों का अंदाजा जरूर था और वे यह भी जानते थे कि अगर उनकी वेबसाइट चल निकली, तो वह संसदों और अदालतों की बहसों का केंद्र बन जाएगी, विश्व की बड़ी से बड़ी ताकत भी गोपनीय सूचनाओं के मुक्त प्रकाशन को बर्दाश्त नहीं कर सकती. जल्दी ही विकीलीक्स के खिलाफ मुकदमों की झड़ी लग गई और एकाध बार तो उसे इंटरनेट से मिटा ही दिया गया. लेकिन दूसरों के संघर्षों को ताकत देती यह वेबसाइट अब तक हारी नहीं है. वह आघात सहती है और फिर खड़ी हो जाती है. वह खुद भी एक जीवंत विद्रोह की मिसाल बन रही है.”
harish singh
April 15, 2010 at 7:44 am
thanks, kafi jankari mili
prem sharan tiwari
May 6, 2010 at 3:54 am
blue films