बीते दिनों पटना में गांधी संग्रहालय की ओर से आयोजित ‘रामचरित्र सिंह स्मृति व्याख्यान’ में ‘लोकतंत्र का ढहता हुआ चौथा स्तंभ’ विषय पर प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी ने कई विचारोत्तेजक बातें कहीं। उनके भाषण का सार-संक्षेप इस तरह है-
”पत्रकारिता के अंदर आज जो कुछ हो रहा है, वह मेरे लिए खतरे की घंटी है। पचास साल तक जिस काम को जिस गर्व के साथ मैंने किया, उसकी हालत पर दुख होता है। महज पत्रकारिता से हम रोजी नहीं चला रहे हैं। उस काम को आज की परिस्थिति में देखता हूं तो ऐसा लगता है उस पर एक रोलर चढ़ा देना पड़ेगा, तभी आगे का पत्रकारीय जीवन ठीक से चल सकता है। पत्रकारिता किसी के मुनाफे या खुशी के लिए नहीं है बल्कि पत्रकारिता लोकतंत्र में साधारण नागरिक के लिए एक वो हथियार है जिसके जरिये वह अपने तीन स्तम्भों न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका की निगरानी करता है। अगर पत्रकारिता नष्ट होगी तो हमारे समाज से हमारे लोकतंत्र की निगरानी रखने का तंत्र समाप्त हो जाएगा। आज जब पत्रकारिता पर कोड़े बरसाता हूं या धिक्कारता हूं तो वह मेरी पीठ पर ही पड़ता है। जब पत्रकारिता के वर्तमान हालात पर गाली देने बैठता हूं तो इससे मेरा वजूद भी आहत होता है। पत्रकारिता जगत में आज जो हो रहा है वह सिर्फ एक व्यवसाय है। इसके मूल्य बिखर गए हैं। उद्देश्य बदल गये हैं। और इसका सिर्फ एक ही मकसद रह गया है वह है ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाना।
इस बार लोकसभा चुनाव में मीडिया ने जो किया वह वह धीरे-धीरे कई वर्षों से हो रहा था लेकिन इस बार लगभग पूरे देश में हुआ। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड सभी जगहों पर खबरें बिकीं। पार्टियों ने और उम्मीदवारों ने यह तय किया कि अब तक अखबार वाले हम पर निगरानी करते थे, हमारी चीजों को देखते, परखते थे, हमारी करतूतों का भंडाफोड़ करते थे और हमसे अलग ऐसी शक्ति बनने की कोशिश करते थे कि हमें भी नियंत्रित कर सकें। ये परिस्थति उनको रास नहीं आती थी। इसलिए उन्होंने बड़े पैमाने पर कोशिश कर, इस बार देश की स्वतंत्र, निष्पक्ष और जांबाज प्रेस को, मीडिया को अपने में शामिल कर लिया। उम्मीदवारों ने इस बार तय किया कि अखबार वालों को कहेंगे कि हमारे बारे में जो भी छापते हो, जो आपकी इच्छा हो छापो, लेकिन हम जो कहते हैं, वह भी छापो। और वह विज्ञापन में मत छापो। वह खबरों में छापो। अखबारों को इससे इनकार करना चाहिए था क्योंकि खबर की जो जगह होती है वो सारी दुनिया में पवित्र जगह मानी जाती है। पवित्र इसलिए मानी जाती है कि दुनिया का कोई भी अखबार पढ़ने वाला पाठक अखबार उठाता है या अखबार खरीदता है तो विज्ञापन के लिये नहीं खरीदता है। अखबार लोग खरीदते हैं, उठाते हैं, पढ़ने के लिए। उन्हें खबर चाहिए। बिना खबर के कोई अखबार पाठक खरीद कर नहीं पढ़ेगा। इस बात को सारी दुनिया जानती है। इस बात को विज्ञापन देने वाले भी जानते हैं इसलिये उनकी अब तक इच्छा थी कि हम जो विज्ञापन दें उसके आस-पास हमारे खिलाफ कोई खबर नहीं छपनी चाहिए।
चुनाव में बड़े नाटकीय घटनाक्रम हुए। नेताओं ने कहा कि मेरा विज्ञापन मत छापो, उम्मीदवारों ने कहा कि हमारे विज्ञापन मत छापो, खबरें छापने के लिए जितना पैसा चाहते हो, ले लो। तो अखबारों ने अपनी तरफ से पैकेज बनाया। फोटो, समाचार, इंटरव्यू के लिए अलग-अलग पैसा तय किया गया। जिस तरह से विज्ञापन का रेटकार्ड छपता है, उसी तरह से उम्मीदवारों को खबरों का रेट कार्ड दिया गया। हर उम्मीदवार ने एक मीडिया सलाहकार अपने पास रखा जो कि खबरों को उनके अनुसार बनाकर देते गए। जब चुनाव होते हैं तो मीडिया की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा बढ़ जाती है। मीडिया कसौटी पर होता है। मीडिया का दायित्व है कि पाठक को सही-सही जानकारी दे। किसी भी देश में माना जाता है कि चुनाव के समय मीडिया सही-सही जानकारी दे। ये मीडिया का माना हुआ कर्तव्य है। अपने देश में अखबरों के लिए कमाई का सबसे बड़ा सीजन चुनाव हो गया। मीडिया ने खबरों को विज्ञापन बनाकर बेच दिया। ऐसे में चौथा खंभा इस बार चुनाव में स्वतंत्र होकर खड़ा नहीं हुआ। तो उसकी भूमिका, जो लोकतंत्र में निभाने की थी, वो उसने नहीं निभायी। अब अगर चुनाव के वक्त ये भूमिका नहीं निभाते हैं तो कब निभायेंगे?
सेंसेक्स और शेयर मार्केट से जो भी खबरें छपती हैं, उसमें नब्बे प्रतिशत पैसा लेकर छापी जाती हैं। अंग्रेजी के सबसे बड़े अखबर भी इसमें शामिल है। कई गुलाबी अखबार यानी इकोनॉमिक गुलाबी पत्रकारिता पीत पत्रकारिता से भी अधिक पीत है। मीडिया की जिम्मेदारी होती है कि वह निर्णायक क्षणों में पाठकों को सही-सही जानकारी दे ताकि वह तय कर सकें कि किस पार्टी और दल को वोट देना है। लेकिन, इस महती भूमिका को निभाने में मीडिया फेल हो गया। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ, तीसरे स्तंभ के भ्रष्टाचार के खिलाफ स्वतंत्र होकर खड़ा नहीं हो सका। पत्रकारिता पैसे वालों के हाथों बिक जायेगी, तो लोकतंत्र को मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी। लेग, पैग और मारूति की जिनकी लालसा है, वे पत्रकारिता में प्रवेश न करें, क्योंकि दलाली पत्रकारिता की मजबूरी नहीं है।”
व्याख्यान का संचालन प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश ने किया। उन्होंने कहा कि राजनीति जब तक विचारों से संचालित नहीं होगी तब तक स्थिति में सुधार नहीं हो सकता। इससे पूर्व गांधी संग्रहालय के निदेशक रजी अहमद ने विषय प्रवेश करते हुए सवाल उठाया कि आज की राजनीति जैसी हो गई है, अगर पत्रकारिता भी वैसी ही हो जाएगी, तो देश कैसे बचेगा।
पटना में आयोजित इस व्याख्यान को स्थानीय अखबारों ने अपने-अपने अंदाज में कवर किया। दैनिक हिंदुस्तान और दैनिक जागरण ने सिंगल कालम खबर छापकर निपटा दिया तो प्रभात खबर ने पहले पन्ने पर तीन कालम खबर प्रकाशित की। आज और राष्ट्रीय सहारा ने भी ठीक-ठाक कवरेज दिया। पटना के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित खबर पढ़ने और प्रभाष जी द्वारा कही गई बातों पर कमेंट करने के लिए क्लिक करें- चुनाव में खबरें बिकीं