पब्लिक ब्राडकास्टर प्रसार भारती के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) बीएस लाली के प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। लाली को राहत मिली है। हाईकोर्ट ने लाली के कार्यकारी अधिकार को वापस ले लिया था पर सुप्रीम कोर्ट ने बहाल कर दिया। साथ ही हाईकोर्ट के 27 जुलाई के आदेश पर भी रोक लगा दी जिसमें निर्देश था कि तीन सदस्यीय टीम पब्लिक ब्राडकास्टर का नियमित कामधाम देखेगी। टीम में सीईओ के अलावा बोर्ड सदस्यों वित्त और कार्मिक शामिल किए गए थे।
प्रधान न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अगुवाई वाली एक पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली लाली की अपील को आंशिक रूप से मंजूर किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह प्रसार भारती कानून के मुताबिक काम करेंगे जिसमें बोर्ड से मिले अधिकारों के उपयोग की बात की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश के दूसरे हिस्से में दखल नहीं किया जिसमें प्रसार भारती में कथित वित्तीय अनियमितता की केंद्रीय सतर्कता आयोग से जांच कराने का निर्देश दिया गया था। वैसे, लाली ने भी सुप्रीम कोर्ट से ऐसी जांच का अनुरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस निर्देश पर भी रोक लगा दी जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश जेपी सिंह की मौजूदगी में बोर्ड की बैठकों की वीडियो रिकार्डिंग का निर्देश दिया गया था। जेपी सिंह को स्वतंत्र पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था। न्यायमूर्ति जेपी सिंह से कहा गया था कि अगर बोर्ड के अध्यक्ष अरुण भटनागर और लाली के बीच कोई मतभेद उभरता है तो वह रिपोर्ट सौंपेंगे। लाली की ओर से वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने दलील दी कि हाईकोर्ट में जनहित याचिका प्रेरित है और उन लोगों के इशारे पर है जिनके निहित स्वार्थ हैं। उन्होंने कहा कि इसकी झलक याचिका में मिलती है जिसमें कहा गया है कि सीईओ के अधिकारों को बोर्ड के दो अन्य सदस्यों के साथ बांटा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाली संस्था सेंटर फार पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) का इस मामले में कोई अधिकार नहीं बनता है क्योंकि वह बोर्ड में नहीं था।
सीपीआईएल के वकील प्रशांत भूषण ने वेणुगोपाल की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि बोर्ड के सदस्यों के बहुमत से एक प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद सीईओ के अधिकारों में कटौती की गई थी। वेणुगोपाल ने हाईकोर्ट के आदेश पर आंशिक रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा- मैं केंद्र के विशेष लेखा परीक्षण और सीवीसी जांच के पक्ष में हूं। उन लोगों के खिलाफ आपराधिक जांच भी शुरू की जा सकती है जो इसमें शामिल हैं। भूषण ने किसी रोक का विरोध करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने कानून के अनुरूप आदेश दिया है। पीठ ने कहा कि संवैधानिक निकाय की निगरानी किसी स्वतंत्र पर्यवेक्षक से नहीं कराई जा सकती और हाईकोर्ट के आदेश को जारी रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती। न्यूज एजेंसी ‘भाषा’ और हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ से साभार