प्रेस विज्ञप्ति : मुशर्रफ को आगरा बुलाना मेरी पहल थी : भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने स्टार न्यूज के नेशनल अफेयर्स एडीटर दीपक चौरसिया से नामांकन से ठीक पहले खास बातचीत में खुलासा किया कि वर्ष 2001 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को शिखर वार्ता के लिए आगरा बुलाने का विचार उनका था. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उन्होंने ही इसके लिए राजी किया था. आडवाणी ने कहा कि हमें मालूम था कि मुशर्रफ ने वाजपेयी की बस यात्रा से बने बेहतर माहौल को कारगिल के जरिए बिगाड़ दिया।
लेकिन हम सैन्य शासक से भी बातचीत के लिए प्रयोग करने को तैयार हो गए. उन्होंने बताया कि परवेज मुशर्रफ के साथ उनकी पहली बैठक सुखद नहीं रही. आडवाणी ने बताया कि राष्ट्रपति भवन में दोनों देशों के कुछ अधिकारियों की मौजूदगी में प्रत्यर्पण संधि पर अनौपचारिक चर्चा हो रही थी. आडवाणी ने मुशर्रफ से कहा, “जनरल साहब मैं अभी प्रत्यर्पण संधि करने तुर्की गया था जबकि हमें उसके साथ ऐसी संधि की कोई जरूरत नहीं है. जरूरत तो आपसे प्रत्यर्पण संधि करने की है. इस पर मुशर्रफ ने हां-हां कहा. फिर मैंने कहा कि अगर हम दोनों के बीच यह संधि न भी हो तो भी आप अगर दाउद इब्राहिम को भारत भेज दें तो भारत के आम लोगों के दिल में आपकी छवि बदल जाएगी. इसके बाद मुशर्रफ ने मुझसे बुरे भाव से कहा कि दिस इज स्मॉल टैक्टिक्स.” आडवाणी ने कहा कि मुशर्रफ ने अंत में यह कह दिया कि दाउद पाकिस्तान में नहीं है. आडवाणी के मुताबिक बैठक में मौजूद पाकिस्तान के एक अधिकारी ने बाद में उनसे कहा कि उन्होंने मुशर्रफ से झूठ कहलवा लिया.
आडवाणी ने बताया कि बाद के दिन में जब वो एक बार पाकिस्तान गए तो मुशर्रफ से मिले. उस समय मुशर्रफ से पाकिस्तान में आतंकी ढांचा को ध्वस्त करने का भरोसा देने वाला बयान दिया था. आडवाणी ने इस बार मुशर्रफ से कहा, “आपने आतंकी ढांचा ध्वस्त करने का बयान देने की हिम्मत जुटाई ये अच्छा है लेकिन भारत और दूसरे देशों में यह धारणा है कि बयान देने के बावजूद आपने ऐसा नहीं किया है.” इस पर मुशर्रफ ने कहा, “आडवाणी जी, कोई देश जिस रास्ते पर लंबे समय तक चला हो, उससे पटलना आसान नहीं होता”. आडवाणी ने कहा कि मुशर्रफ के यह कहने का दूसरा मतलब यह था कि उन्होंने आतंकी ढांचा ध्वस्त नहीं किया है और ऐसा करना उनके लिए आसान नहीं है.
स्विस बैंक के पैसों से जुटाएंगे साधन : आडवाणी ने कहा कि बीजेपी के घोषणापत्र में दो रुपए किलोग्राम चावल, लाडली लक्ष्मी योजना समेत जिन योजनाओं के वादे किए गए हैं, उन्हें पूरा करने के लिए साधन जुटाने में अपारंपरिक कदम भी उठाए जा सकते हैं. आडवाणी ने इस अपारंरिक कदम का इशारा स्विस बैंक की तरफ किया. उन्होंने कहा कि जर्मनी ने ऐसे खातों की सूची हासिल की है और वह बिना पैसा लिए सूची में दूसरे देशों के खातेदारों की जानकारी बांटने के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि मंदी से जूझ रहे अमेरिका की नजर भी स्विस बैंक के खातों पर गई है और उसके दबाव में स्विटजरलैंड के वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि यह बैंकिंग व्यवस्था साल-छह महीने की मेहमान है. आडवाणी ने कहा कि उनकी सरकार भारत के इस पैसे को लाने के लिए पूरा जोर लगाएगी.
चुनाव में अहम मुद्दे : आडवाणी ने कहा कि महंगाई, रोजगारों का छिनना, किसानों की दुर्दशा और सुरक्षा का अभाव ऐसे मुद्दे हैं जिन पर जनता लोकसभा चुनावों में वोट करेगी. उन्होंने कहा कि आतंकवाद को लेकर उनकी पिछली सरकार रवैया सख्ता था और जो भी घटना हुई, उसके लिए दोषी लोगों को पकड़ा गया और उन्हें सजा दी गई. आडवाणी ने कहा कि संसद पर हमले के जुर्म में सुप्रीम कोर्ट ने अफजल गुरु को फांसी की सजा दी है लेकिन उसे फांसी नहीं दिया जा रहा और सरकार कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दे रही. आडवाणी ने कहा यह सब वोट बैंक की राजनीति के कारण हो रहा है. उन्होंने कहा कि अगर कोई आनंद सिंह होता तो कब का फांसी पर लटका दिया गया होता लेकिन अफजल गुरु है तो नहीं चढ़ाया जा रहा.
सस्ता चावल देना कर्तव्य : आडवाणी ने कहा कि भारत में बड़ी संख्या में लोग जिस बदहाली में रहते हैं, उसको देख कर गरीबों को सस्ता चावल देना कोई सब्सिडी नहीं है बल्कि यह समाज का कर्तव्य है. उन्होंने बताया कि विशेषज्ञों से रायशुमारी के बाद तय किया गया है कि स्वच्छ पेयजल और एफॉर्डेबल हेल्थ केयर को मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाएगा. किसानों की खुदकुशी पर उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के विदर्भ और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में यह समस्या है. आडवाणी ने कहा कि बीजेपी के शासन वाले प्रदेश में यह समस्या नहीं है. उन्होंने कहा कि सेज तो गुजरात में भी हैं लेकिन नरेंद्र मोदी ने साफ कह दिया कि वो किसानों की जमीन खरीद कर उद्योगपति को नहीं देंगे, अगर उद्योगपति को जमीन चाहिए तो वो किसानों से खरीदें.