आउटलुक हिंदी के समन्वय संपादक रवींद्र कुमार के बारे में खबर है कि उन्होंने इस मैग्जीन से इस्तीफा दे दिया है। वे कहां जा रहे हैं, अभी पता नहीं चल पाया है। सूत्रों का कहना है कि रवींद्र पिछले कुछ हफ्तों से यहां असहज महसूस कर रहे थे। उधर, सूत्रों का कहना है कि आउटलुक की कमान संभालने वाली नई टीम से रवींद्र की ट्यूनिंग नहीं बैठ रही थी।
प्रकाशन के 50 वर्ष पूरे होने पर फेमिना अपने पाठकों के हाथों में 560 पेजों के विशेष वार्षिक अंक के रूप में अवतरित हुई तो हिंदी पाठकों के लिए भी तोहफा लाई। फेमिना हिंदी का प्रकाशन शुरू हो चुका है। यह मैग्जीन बाजार में आ चुकी है। दाम 40 रुपये ही है लेकिन सालाना आफर में कीमत आधी रखी गई है। 170 पेजों वाली इस मंथली मैग्जीन में प्रफू का काफी गल्तियां हैं। यह मैग्जीन वर्ल्ड वाइड मीडिया (डब्लूडब्लूएम) ग्रुप की है जिसके सीईओ तरुण राय हैं।
तरुण का कहना है कि हम फेमिना के पाठक आधार में बढ़ोतरी और अन्य भारतीय भाषाओं के पाठकों तक पहुंच चाहते थे। इसीलिए फेमिना हिंदी की शुरुआत की गई है। अब फेमिना आनलाइन पर काम चल रहा है। तरुण का दावा है कि फेमिना हिंदी सा कंटेंट महिलाओं की अन्य किसी हिंदी पत्रिका में नहीं है।
तरुण के मुताबिक फेमिना को जल्द ही अन्य भारतीय भाषाओं में लाया जाएगा, अगला पड़ाव फेमिना तमिल है। फेमिना की संपादक तान्या चैतन्य का कहना है कि बदलते भारत की महिलाएं रिलेशनशिप से लेकर हेल्थ तक की समान समस्याओं से जूझ रही हैं, वो चाहे जिस भी भाषा वाली या इलाके की हों।