अहमदाबाद से गुजराती में प्रकाशित जनसत्ता पर बंदी की तलवार लटकने लगी है। पिछले दिनों मैनेजिंग डायरेक्टर किरण वड़ोदरिया ने स्टाफ के साथ एक मीटिंग कर प्रबंधन के इरादे की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह अखबार पिछले 11 वर्षों से घाटे में चल रहा है। घाटा कम न होते देख इसे बंद करने का निर्णय लिया गया है। 56 वर्षों की समृद्ध परंपरा वाले इस अखबार की बंदी के लिए उन्होंने 30 नवंबर की तारीख की भी घोषणा कर दी। हालांकि सूत्रों का कहना है कि बंद करने की धमकी देकर प्रबंधन खर्चे कम कराने के लिए स्टाफ को दबाव में ले रहा है। सूत्रों के मुताबिक इस अखबार को बंद कराना इतना आसान नहीं है, यह सारी कवायद सिर्फ डराने व धमकाने के लिहाज से ही है।
सभी अखबारों ने खर्चों में कटौती के लिए अभियान चलाया
खबर है कि मंदी के चलते विज्ञापन कम मिलने से मुनाफे में होने वाली कटौती से निपटने के लिए सभी अखबारों के प्रबंधन ने अभियान चला दिया है। दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला समेत अन्य अखबारों ने भी कई तरह के दिशा-निर्देश जारी किए हैं। दैनिक जागरण ने अपने साप्ताहिक परिशिष्ट जोश और प्रापर्टी को चार पन्नों की बजाय एक पन्ने में प्रकाशित करने का फैसला किया है। साथ ही कास्ट कटिंग के लिए कई तरह के निर्देश भी दिए हैं। भर्तियों पर रोक लगा दी गई है। बहुत जरूरी होने पर शीर्ष प्रबंधन की अनुमति के बाद ही कोई नई भर्ती करने को कहा गया है।
अमर उजाला ने खर्चों में कटौती के लिए पिछले दिनों पंजाब से अपने अखबार के प्रकाशन को समेट लिया। वहां आठ संस्करणों की बजाय एक संस्करण प्रकाशित करने का निर्णय लिया। उसने सेकेंड ब्रांड कांपैक्ट का गाजियाबाद से प्रकाशन स्थगित कर दिया। स्टाफ कम करने की कवायद में ट्रेनियों और कांट्रैक्ट पर काम करने वालों को बाय बाय बोला जा रहा है। साथ ही, आफिसियल यात्रा से लेकर अन्य खर्चों में कटौती करने के लिए सरकुलर जारी किया गया है। दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, राजस्थान पत्रिका समेत अन्य अखबारों ने भी अपने यहां खर्चे घटाने के लिए कई तरह के दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसमें प्रिंट कम से कम निकालने से लेकर दौरों की संख्या में कटौती, यात्रा के दौरान सुविधाओं में कमी, कम से कम स्टाफ में काम चलाने, नई भर्तियां न करने, अखबार के पेजों की संख्या में कमी, पेजों की क्वालिटी में कमी आदि शामिल है।