एसएन विनोद हैं सलाहकार संपादक : नागपुर के धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में बीते दिनों एक सादे समारोह में लोकमत समाचार समूह के अध्यक्ष व सांसद विजय दर्डा के हाथों ‘दैनिक 1857’ का लोकापर्ण हुआ। पूर्व सांसद एवं अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द हितवाद’ के प्रबंध संपादक बनवारी लाल पुरोहित ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। पूर्व विधायक व बनराई के विश्वस्त गिरीश गांधी, जनसंपर्क विभाग के संचालक के.एम. कौशल, नगर पुलिस आयुक्त प्रवीण दीक्षित प्रमुख रूप से उपस्थित थे। पत्र के लोकापर्ण के बाद सांसद विजय दर्डा ने कहा कि समाचारपत्र का नाम ही वस्तुत: आज की जरूरतों का ेरेखांकित करता है। क्योंकि आज समाज में 1857 का उद्देश्य खो रहा है।
जीवन के हर क्षेत्र में जब हिंदुस्तान सब ओर से आगे बढ़ रहा है। तब बौद्धिक आंदोलन की आवश्यकता बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि रास्ता तो कोई भी दिखा सकता है। पर उस पर चल कर उद्देश्य को पाने वाले बहुत कम होते हैं। उन्होंने कहा कि आजादी से पूर्व बहुत से छोटे-छोटे अखबार थे। वे देखने में अच्छे नहीं थे, पर उसकी भाषा में जो विचार थे, वे मजबूत थे। आज अखबारों का स्वरूप बदल चुका है। उन्होंने कहा कि प्रिंट मीडिया को बहुत जागरूक होने की जरूरत है। अखबार पीछे हो रहे हैं और इंटरनेट आगे निकल रहे हैं। सब कुछ छोटे से स्क्रीन पर आ रहा है। पर अखबार की जान आम आदमी की आकांक्षाओं की पूर्ति है। उसके विश्वास को अमली जमा पहनाना है। उन्होंने कहा कि रास्ता तो कोई भी दिखा सकता है। पर क्रांति की एक अलग राह पर चलने का साहस हर कोई नहीं करता है।
पूर्व सांसद बनवारीलाल पुरोहित ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि खबर आती है कि 1857 में देश को आजादी दिलाने के लिए क्रांतिकारियों ने सही मायने में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका था और वही आजादी 90 साल बाद प्राप्त हुई। पर देश के आजाद हुए साठ साल से उपर हो गए पर चारो ओर गरीबी बेरोजगार सिर चढ़ कर बोल रही है। ऐसी खबरें आती हैं कि देश चारो ओर से तरक्की कर रहा है। पर यह देश के एक तरफ का चेहरा है। इस तरक्की में आम और खास आदमी की दूरी बढ़ती जा रही है। देश की आर्थिक नीति पूरी तर से गलत है, यह देश को डूबो देगी। गरीबों के आंसू पोछने वाला कोई नहीं। ऐसी स्थिति में दैनिक 1857 एक नई क्रांति की शुरूआत है।
वनराई के विश्वस्त गिरीश गांधी ने कहा कि आज समाज में लोकहीत से ज्यादा स्वहीत महत्वूपर्ण हो गया है। इसके लिए लोग समझौता करते हैं। इस तरह की पृष्ठभूमि में ‘दैनिक 1857’ की शुरुआत एक साहस भरा कदम है। उन्होंने कहा कि आज समाचारपत्र चलाना आसान बात नहीं है। उन्हें समाचारपत्र चलाने का कम और बंद कारने का अनुभव ज्यादा है। श्री गांधी ने कहा कि बाल गंगाधर तिलक के समाचारपत्र केसरी का अधिकतम प्रसार 13500 प्रतियां थीं। पर इतनी प्रतियों से ही केसरी ने पूरे देश पर प्रभाव डाला। आज करोड़ों प्रतियों की प्रसार संख्या वाले समाचार पत्र हैं, पर उनकी विश्वसनीयता नहीं है।
सूचना निदेशक पी.एम. कौशल ने कहा कि आजादी के बाद बौद्धिक आजादी का आंअदोलन कभी चला ही नहीं। लोग किसी बड़ी सख्सियत या किताब सुन कर या पढ़ कर प्रभावित होते हैं। आज सोचने की आजादी नहीं है। इसलिए बौद्धिक आंदोलन की आजादी की प्रासंगिकता बढ़ जाती है।
पत्र के सलाहाकार संपादक एस.एन. विनोद ने प्रस्ताविक भाषण में कहा कि दैनिक 1857 आजादी के बाद बौद्धिक आजादी का बीजारोपण है। उन्होंने दिल्ली की पत्रकारिता का एक निजी अनुभव सुनाते हुए कहा कि ऐसा कई बार होता है कि कई समाचारपत्र और पत्रकारिता के बड़े हस्ताक्षर किसी खबर से संबंधित सारी सूचनाएं और प्रमाणिक दस्तावेज होन के बाद भी पाठक के सामने सच लाने में सकुचा जाते हैं।
दस साल पहले तक दुनिया भर में भारतीय पत्रकारिता की विश्वसनीयता की पहचान थी। पर आज पड़ोसी देश, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल की पत्रकारिता भी भारतीय पत्रकारिता की विश्वसनीयता से आगे निकल चुकी है। उन्होंने कहा कि कही न कही भारतीय बौद्धिकता को गुलाम बनाने का षडयंत्र चल रहा है तब इस तरह की अखबारी क्रांति आवश्यक हो जाती है।
अतिथियों का स्वागत निबंध विनोद ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार उमेश चौबे, समाजसेवी हरिश अड्यालकर, दैनिक भास्कर के संपादक प्रकाश दुबे, वरिष्ठ पत्रकार मेघनाथ बोधनकर, दैनिक हितवाद के संपादक विजय फणसीकर, विदर्भ डेली न्यूजपेपर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष श्रीकृष्ण मोहन चांडक, गीतेश मुत्तेमवार समेत कई लोग उपस्थित थे। नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष यदु जोशी के धन्यवाद ज्ञापन के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन एस.पी. सिंह ने किया।