देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई के भरे-पूरे मराठी अखबारों के बाजार में एक और अखबार ‘पुढारी‘ आ गया है। 71 साल पुराने इस अखबार का मुम्बई संस्करण 7 मई को शुरू हुआ। मुम्बई के तीन बड़े मराठी अखबारों ‘महाराष्ट्र टाइम्स’, ‘लोकसत्ता’ और ‘लोकमत’ तथा मध्यम दर्जे के अखबारों ‘सामना’, ‘नवाकाल’, ‘संध्याकाल’ और ‘मुम्बई चौफेर’ के बीच ‘पुढारी’ अपनी अलग जगह बनाने के उद्देश्य से आया है। इसके संस्थापक संपादक पद्मश्री डॉ. ग.गो. जाधव थे। फिलहाल मुख्य संपादक प्रताप सिंह जाधव, कार्यकारी संपादक योगेश जाधव और मुम्बई संस्करण के स्थानीय संपादक संजीव साबडे हैं। यह अखबार मुम्बई के अलावा पुणे, कोल्हापुर, सांगली, सातारा, सोलापुर, अहमदनगर, रत्नागिरि, सिंधुदुर्ग और गोवा से भी प्रकाशित शोता है।
महाराष्ट्र टाइम्स, लोकसत्ता और सामना के 2.50 रुपये और लोकमत के 2.00 रुपये के सामने पुढारी का मूल्य 1.50 रुपये रखा गया है। पहले अंक में बिजली, पानी और परिवहन जैसी मुम्बई की आधारभूत समस्याओं को उठाया गया है। स्थानीय के साथ ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खबरों को भी प्रमुखता दी गई है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहला संपादकीय लेख नीतीश कुमार पर है, जबकि दूसरा महाराष्ट्र की राजनीति पर। मुख्य संस्करण के 12 में से छह पेज रंगीन हैं। साथ में आठ पेज का रंगीन परिशिष्ट भी है।
पुढारी के मुम्बई संस्करण में विभिन्न विषयों पर 20 दिन तक आठ-आठ पेज के विशेष संस्करण प्रकाशित किए जाएंगे। प्रवेश अंक का विशेष संस्करण मुम्बई और महाराष्ट्र के इतिहास पर केंद्रित है। इसकी अतिथि संपादक एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय की इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. वर्षा शिरगावकर हैं। आगामी विशेष परिशिष्टों के अतिथि संपादक रतन टाटा (उद्योग-व्यापार), दीपक पारेख (वास्तुदिशा), आशुतोष गोवारिकर (बॉलीवुड), दिनेश केसकर (लाइफस्टाइल), संजीव कपूर (खान-पान संस्कृति), गिरीश वाघ (वाहन-विश्व), दाजी पणशीकर (संस्कृति), डॉ. विजय खोले (शिक्षा), वीणा पाटील (पर्यटन), चंद्रशेखर तिलक (अर्थनगरी), डॉ. बी. के. गोयल (स्वास्थ्य) और प्रभाकर कुंटे (समाज व राजनीति) होंगे।
पुढारी की शुरुआत 71 साल पहले कोल्हापुर से हुई थी। आज भी इसका मुख्यालय वहीं है। इसके कुल दस संस्करण हैं। सभी का प्रसार कुल मिलाकर लगभग छह लाख है। सबसे ज्यादा 2.56 लाख प्रसार पुणे संस्करण का है। मुम्बई संस्करण का टारगेट रीडर युवाओं को रखा गया है। स्थानीय संपादक संजीव साबडे का मानना है कि उनका मुकाबला किसी दूसरे अखबार से नहीं है, बल्कि वे अपना अलग पाठक वर्ग बनाएंगे।