मेरठ के दो युवा पत्रकारों का मन भरा : सचिन-दीपक निकले नए रास्ते की तलाश में : सपने पूरे न होने का मलाल : समाज के लिए कुछ न कर पाने का दुख : पत्रकारिता में आने वाले नए लड़कों पर आमतौर पर ये आरोप लगता है कि वे बहुत जल्दी बहुत कुछ पाना चाहते हैं, पत्रकारिता की चकाचौंध व ग्लैमर से प्रभावित होकर इस क्षेत्र में आते हैं, सतही सोच-समझ रखते हैं पर सचिन राठौर और कुलदीप अग्रवाल की बात करें तो कुछ नया ही ट्रेंड देखने-समझने को मिलता है। आई-नेक्स्ट, मेरठ में काम कर रहे इन दोनों युवा पत्रकारों ने पिछले दिनों इस्तीफा दे दिया। उन्होंने सिर्फ इस्तीफा ही नहीं दिया, पत्रकारिता को गुडबाय बोल दिया है। ऐसा मोहभंग होने के कारण हुआ। सचिन राठौर दिल्ली में स्थित रामायण सेंटर नामक एनजीओ से जुड़ रहे हैं जो रामायण पर शोध के साथ संयुक्त परिवार व पर्यावरण बचाने के लिए सक्रिय है।
सचिन का कहना है कि अखबार की नौकरी में ठीक से जीने लायक पैसा नहीं है। न तो जाब सैटिसफैक्शन है। और न ही कोई सोशल कनसर्न है यहां। मुझे किसी तरह का कोई प्रोग्रेस इस पेशे में नहीं दिख रहा था। न अपने लिए समय, न परिवार के लिए और न समाज के लिए करने के लिए। सिर्फ पेट पालने के लिए जीना कोई जीना नहीं होता। इसी कारण इस्तीफा दिया। सचिन के मुताबिक रामायण व रामराज पर शोध करने की हसरत मन में बहुत दिनों से थी और इसे ‘रामायाण सेंटर’ ज्वाइन करके पूरा कर पाऊंगा। मेरे मन में हमेशा से रहा है कि कुछ ऐसा किया जाए जिसके अप्रत्याशित परिणाम आएं और देश-समाज का भला हो। परिवार व्यवस्था टूट रही है। पर्यावरण पर खतरा है। रामायण के जरिए इन सबसे निपटने में क्या मदद मिल सकती है, इस पर काम करना है। सचिन बताते हैं कि उन्होंने 7 दिसंबर को इस्तीफा दे दिया और आज दिल्ली में रामायण सेंटर ज्वाइन भी कर लिया है। सचिन आई-नेक्स्ट, मेरठ में लांचिंग के वक्त से थे और इन दिनों फीचर इंचार्ज के रूप में काम कर रहे थे। उनका पद जूनियर सब एडिटर का था।
आई-नेक्स्ट, मेरठ से ही इस्तीफा देने वाले दीपक अग्रवाल पहले अमर उजाला, मेरठ में थे लेकिन अमर उजाला में दो साल तक काम करने के बावजूद संपादक के कृतघ्न व्यवहार के कारण उन्हें इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा। इस्तीफा देने के दो महीने बाद उन्होंने मेरठ में ही आई-नेक्स्ट ज्वाइन किया। आई-नेक्स्ट, मेरठ के माहौल की तारीफ करते हुए दीपक कहते हैं कि आई-नेक्स्ट से मुझे कोई शिकायत नहीं है। दरअसल, आज पत्रकारिता का जो ओवरआल माहौल है, उसमें कुछ नया कर पाना संभव नहीं है। पत्रकारिता में जिस सपने के साथ आया था, वो सपना अपनी जगह पर आज भी अपूर्ण बना हुआ है। यहां न तो तनख्वाह है, न काम करने की आजादी। हर शख्स परेशान-सा दिखता है। दीपक के मुताबिक संपादक से लेकर ट्रेनी तक अपनी स्थिति से असंतुष्ट दिखते है। ऐसा क्यों है, समझ में आता भी है और नहीं भी आता है। पर इतना जरूर है कि चीजें ठीक नहीं हैं। पूरी जिंदगी पत्रकारिता को देने लायक नहीं है क्योंकि कुछ करने व संतुष्ट होने का मौका नहीं है।
आगे के बारे में दीपक कहते हैं कि अभी कुछ तय नहीं किया है लेकिन इतना तो तय है कि पत्रकारिता में नहीं रहना है। दीपक बताते हैं कि उनके पास अनेकों मित्रों व वरिष्ठों के फोन आए। सब कहते हैं कि तुमने साहस किया पर हम लोग चाहकर भी साहस नहीं जुटा पाते। अमर उजाला के अपने बुरे अनुभव के बारे में दीपक का कहना है कि सिर्फ इस शक के आधार पर कि मैं दैनिक जागरण ज्वाइन कर सकता हूं, सूर्यकांत द्विवेदी ने मुझे मीटिंग में आने से रोका और बाहर जाने को कह दिया। मैंने उसी दिन इस्तीफा दे दिया। आखिर दो साल तक काम करने के बाद क्या मेरे साथ यही व्यवहार होना चाहिए था?
सचिन और दीपक, दोनों का पत्रकारिता में दो से तीन वर्षों का अनुभव है पर बेहद कड़वा अनुभव। उन्हें किसी संस्थान से शिकायत नहीं है। वे पत्रकारिता के नाम पर जिन चीजों के सपने देखकर व उम्मीद करके आए थे, उसके पूरे न होने का इन्हें मलाल है। इन लोगों ने वक्त रहते अपना रास्ता बदलने का फैसला कर लिया। नए उबड़-खाबड़ व पथरीले रास्ते की तरफ निकल गए हैं। संभव है, इन्हें ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़े लेकिन मुश्किलें ही नया रचने का माद्दा व जुनून पैदा करती हैं। हममें से ढेर सारे लोग ऐसे हैं जो चाहते हैं कि कुछ नया करें पर हिम्मत नहीं जुटा पाते, बनी-बनाई लीक को नहीं तोड़ पाते, अपने कंफर्ट मोड से बाहर नहीं जा पाते।
सचिन और दीपक ने साहस दिखाया, अपने मन मुताबिक जीने के लिए रिस्क लिया, सपने पूरे न होने पर लगी-लगाई नौकरी छोड़ दी, इसलिए इन दोनों बंदों का भड़ास4मीडिया दिल से सम्मान करता है और उनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता है। अगर आप भी सचिन और दीपक से बात करना चाहते हैं, उन्हें इस साहस के लिए विश करना चाहते हैं तो इन नंबरों पर फोन कर सकते हैं- सचिन राठौर: 09990937465 दीपक अग्रवाल: 09897905573