राजस्थान पत्रिका, अलवर (राजस्थान) के संपादकीय प्रभारी, क्राइम रिपोर्टर, फोटोग्राफर और एक अन्य रिपोर्टर दस दिनों से भागे-भागे फिर रहे हैं। ये लोग आफिस नहीं आ रहे हैं। अंडरग्राउंड जीवन काट रहे हैं। इन्हें डर है कि सामने आते ही पुलिस गिरफ्तार कर लेगी। इन चारों के खिलाफ एक कांस्टेबल ने दलित उत्पीड़न का मामला दर्ज करा रखा है। हुआ कुछ यूं कि रिपोर्टर धर्मेंद्र यादव जिस ढाबे पर खाने गए थे, वहां वर्दी वाले कुछ लोग शराब पीते दिख गए। उन्होंने फोटोग्राफर अंशू आहूजा और क्राइम रिपोर्टर राज सिंह शेखावत को इसकी सूचना दी। फोटोग्राफर ने वर्दी में शराब पीते हुए फोटो खींच ली और इसका प्रकाशन अगले दिन पत्रिका अखबार में हो गया। खबर छपते ही एसपी, अलवर ने कांस्टेबल को सस्पेंड कर दिया। कुछ दिनों बाद पत्रिका, अलवर के संपादकीय प्रभारी संदीप माथुर और जिले के एसपी के बीच खबरों को लेकर ठन गई।
पत्रिका वालों ने अपराध बढ़ने का उल्लेख करते हुए एक सिरीज का प्रकाशन किया। उधर, जिस पुलिस वाले को वर्दी में शराब पीने पर सस्पेंड किया गया था, उसने पत्रिका के चार लोगों- संदीप माथुर, राज सिंह शेखावत, धर्मेंद्र यादव और अंशू आहूजा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने का अनुरोध न्यायालय से किया। कांस्टेबल ने कोर्ट को बताया कि पत्रिका के लोग उनसे प्रत्येक महीने पैसे वसूलते हैं। मना करने पर गलत फोटो छापकर बदनाम कर दिया। ये लोग जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर गंदी-गंदी गालियां देते हैं। कोर्ट ने पुलिस को मुकदमा दर्ज करने के आदेश दे दिए।
पुलिस का मामला होने के कारण एसपी ने भेदभाव के आरोपों से बचने के लिए इसकी जांच सीआईडीसीबी को सौंप दी। जांच के दौरान पुलिस जब पूछताछ के लिए आरोपियों को बुलाने पहुंची तो उन्हें आफिस में नहीं पाया। घर पर भी वे नहीं मिले। उनका मोबाइल स्विच आफ बताता रहा। इस तरह पुलिस की पकड़ से बचने के लिए ये चारों पत्रकार इन दिनों भागे-भागे फिर रहे हैं। इस मामले में जानकारी मिली है कि एसपी आलोक वशिष्ठ जहां भी रहे हैं, उनका रवैया मीडिया विरोधी रहा है। अलवर जिले में अपराध बढ़ने पर पत्रिका में खबर पब्लिश होने के बाद एसपी पत्रिका के पत्रकारों को सबक सिखाने पर तुले हुए हैं। इसीलिए फर्जी केस लगवाकर उत्पीड़न करा रहे हैं।