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देवकीजी, आपसे पूरी तरह सहमत नहीं हूं

मान्‍यवर देवकी नंदन मिश्र जी, B4M पर आपके विचार पढे़। पूरी तरह तो नहीं पर आपसे आंशिक रूप से सहमत हूं। ऐसी कोई संहिता या समिति होनी तो चाहिये पर ऐसे किसी भी रेगुलेशन का उपयोग से पहले दुरुपयोग होना तय है। उदाहरण के तौर पर हमारे कानपुर के प्रेस क्‍लब को ले लीजिए. यहां पिछले कई सालों से स्‍वयंभू पत्रकारों ने कब्‍जा कर रख्‍खा है। पिछले दिनों कानपुर में पुलिस ने प्रेस क्‍लब के साथ मिल कर फर्जी पत्रकारों के खिलाफ अभियान चलाया था। उस अभियान में जो इन स्‍वयंभू पत्रकार नेताओं का चमचा था, वो तो असली, वरना उसे नकली बता कर सरेराह बेइज्‍जत किया गया था। कानपुर प्रेस क्‍लब में बड़ा बड़ा नोटिस लगा है कि साप्‍ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्रों के पत्रकारों का प्रवेश वर्जित है। अब आप ही बताइये कि अगर साप्‍ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्रों के पत्रकार फर्जी होते हैं तो आइएनआई उन पत्रों को पंजीकृत क्‍यों करता है। कानपुर प्रेस क्‍लब में प्रेस वार्ता के शुल्‍क के रूप में काफी पैसा आता है।

<p align="justify">मान्‍यवर देवकी नंदन मिश्र जी, <a href="index.php?option=com_content&view=article&id=2314:devki-nandan-mishra&catid=27:latest-news&Itemid=29" target="_blank">B4M पर आपके विचार</a> पढे़। पूरी तरह तो नहीं पर आपसे आंशिक रूप से सहमत हूं। ऐसी कोई संहिता या समिति होनी तो चाहिये पर ऐसे किसी भी रेगुलेशन का उपयोग से पहले दुरुपयोग होना तय है। उदाहरण के तौर पर हमारे कानपुर के प्रेस क्‍लब को ले लीजिए. यहां पिछले कई सालों से स्‍वयंभू पत्रकारों ने कब्‍जा कर रख्‍खा है। पिछले दिनों कानपुर में पुलिस ने प्रेस क्‍लब के साथ मिल कर फर्जी पत्रकारों के खिलाफ अभियान चलाया था। उस अभियान में जो इन स्‍वयंभू पत्रकार नेताओं का चमचा था, वो तो असली, वरना उसे नकली बता कर सरेराह बेइज्‍जत किया गया था। कानपुर प्रेस क्‍लब में बड़ा बड़ा नोटिस लगा है कि साप्‍ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्रों के पत्रकारों का प्रवेश वर्जित है। अब आप ही बताइये कि अगर साप्‍ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्रों के पत्रकार फर्जी होते हैं तो आइएनआई उन पत्रों को पंजीकृत क्‍यों करता है। कानपुर प्रेस क्‍लब में प्रेस वार्ता के शुल्‍क के रूप में काफी पैसा आता है। </p>

मान्‍यवर देवकी नंदन मिश्र जी, B4M पर आपके विचार पढे़। पूरी तरह तो नहीं पर आपसे आंशिक रूप से सहमत हूं। ऐसी कोई संहिता या समिति होनी तो चाहिये पर ऐसे किसी भी रेगुलेशन का उपयोग से पहले दुरुपयोग होना तय है। उदाहरण के तौर पर हमारे कानपुर के प्रेस क्‍लब को ले लीजिए. यहां पिछले कई सालों से स्‍वयंभू पत्रकारों ने कब्‍जा कर रख्‍खा है। पिछले दिनों कानपुर में पुलिस ने प्रेस क्‍लब के साथ मिल कर फर्जी पत्रकारों के खिलाफ अभियान चलाया था। उस अभियान में जो इन स्‍वयंभू पत्रकार नेताओं का चमचा था, वो तो असली, वरना उसे नकली बता कर सरेराह बेइज्‍जत किया गया था। कानपुर प्रेस क्‍लब में बड़ा बड़ा नोटिस लगा है कि साप्‍ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्रों के पत्रकारों का प्रवेश वर्जित है। अब आप ही बताइये कि अगर साप्‍ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्रों के पत्रकार फर्जी होते हैं तो आइएनआई उन पत्रों को पंजीकृत क्‍यों करता है। कानपुर प्रेस क्‍लब में प्रेस वार्ता के शुल्‍क के रूप में काफी पैसा आता है।

अत: यहां के पदाधिकारी नये लोगों को सदस्‍यता तक नहीं देते हैं कि कहीं चुनाव की मांग न होने लगे और उनकी सोने का अण्‍डा देने वाली मुर्गी न छिन जाये। जिला प्रशासन ‘बर्रे के छत्‍ते में हाथ कौन डाले’ की तर्ज पर चुपचाप खड़ा तमाशा देखता है। प्रेस क्‍लब का पंजीकरण भी रजिस्‍ट्रार के यहां से कभी रिन्‍यू नहीं कराया गया, न कभी आडिट हुआ, न ही समय पर चुनाव हुये। बस गुण्‍डाराज जारी है। कमोबेश यही हाल सब जगह है। अब अगर ऐसे में इन लोगों को असली-नकली पत्रकारों को पहचानने का काम दे दिया जाये तो भगवान बचायें। अपन तो पत्रकारिता छोड़ कर मूंगफली बेचना ज्‍यादा पसंद करेगें, क्‍योंकि इनकी पैलगी तो हमसे होगी नहीं। कोई नया तरीका सूझे तो बताइयेगा। मैं आपके साथ हूं।

पुनीत निगम

सम्‍पादक

खास बात (मासिक समाचार पत्रिका)

कानपुर

09839067621

[email protected]

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