हिंदी ब्लागिंग में उतरे पुण्य प्रसून वाजपेयी का एक ब्लाग लेख आजकल विवाद का विषय बना हुआ है। मशहूर पत्रकार और जी न्यूज में प्राइम टाइम एंकर व संपादक पुण्य प्रसून अपने ब्लाग पर जामियानगर का आतंक और बाटला हाउस की तीसरी मंजिल शीर्षक से एक लेख में मुठभेड़ के तौर-तरीके के बारे में विस्तार से बताते हैं और कुछ उदाहरणों, घटनाओं के जरिए कुछ सवाल उठाते हैं। इस लेख पर बड़ी संख्या में पक्ष-विपक्ष में कमेंट आएं हैं। पुण्य की पोस्ट के जवाब में इंडिया न्यूज टीवी के युवा पत्रकार विवेक सत्य मित्रम ने अपने ब्लाग पर पुण्य को ही घेरे में ले लिया है।
विवेक ने अपने ब्लाग पर लिखे जवाबी लेख का शीर्षक दिया है- पुण्य प्रसून वाजपेयी जी, कम से कम आपसे ये उम्मीद नहीं थी! विवेक सत्य मित्रम अपने लेख की शुरुआत कुछ यूं करते हैं- ”पुण्य प्रसून वाजपेयी जी बड़े पत्रकार हैं। शायद अपने चैनल पर उनकी चली नहीं, लिहाजा वो ब्लाग की रणभूमि में उतर आए। उनके होते हुए भी, जी न्यूज ने मुठभेड़ में मारे गए मोहन चंद शर्मा को शहादत के फूल चढ़ाए गए। काल..कपाल..महाकाल जैसे प्रोग्राम्स दिखाकर भी टीआरपी सुधारने में नाकाम रहा ये चैनल भला बाजार का दबाव कहां तक झेल पाता। जिस जनभावना का खयाल रखते हुए बाकी चैनलों ने मोहनचंद शर्मा को शहादत से नवाजा…शायद वैसा ही दबाव जी न्यूज पर भी रहा हो। कुल मिलाकार पुण्य प्रसून जी मजबूर हुए.. वो खबर पढ़ने के लिए जिस पर उन्हें रत्ती भर भी यकीन नहीं था। कम से कम उनके ब्लाग पर छपे लेख से मेरे जैसे कम अक्ल इंसान तक यही संदेश पहुंचा। खैर, पुण्य प्रसून वाजपेयी जी ने अपने लेख में अपने दिल की बात कही। मुझे मालूम नहीं.. बाटला हाउस की तीसरी मंजिल की बातें सही हैं.. या उन्हें किसी विश्वस्त सूत्र से ऐसा पता चला है। मगर इतना जरुर है…उन्होंने जिस अंदाज में कुछ भी बिना खुलकर कहे…..कह दिया है.. वो कोई बड़ा पत्रकार ही कर सकता है। अगर आप लेख को गौर से पढ़ें तो उन्होंने एक दफा भी ये नहीं लिखा कि वो जामिया नगर में हुई मुठभेड़ को फर्जी मानते हैं। उन्होंने तो बस कुछ सवाल हवा में उछाल दिए हैं, जिन्हें हमारे आपके जैसे आम लोगों ने लपक लिया। आप इस लेख की बुनियाद पर ना तो उन पर एक खास समुदाय के तुष्टीकरण का आरोप जड़ सकते हैं.. ना ही एक बेबाक पत्रकार की भड़ास कह सकते हैं। क्योंकि ये लेख इतनी बुरी तरह से उलझा हुआ है…आप कहीं से भी कोई लूपहोल निकालकर उन्हें आतंकवादियों का हमदर्द साबित नहीं कर सकते। हालांकि इस पेचीदगी में वो अपनी बात बेहद सलीके से कह गये हैं। उनके अपने ब्लाग पर छपे इस लेख पर तमाम तरह की टिप्पणियां आई हैं…। कुछ बेवकूफ किस्म के लोगों ने उन्हें आतंकवादियों का हिमायती समझ लिया है.. तो कुछ ऐसे भी हैं…जो इस दबाव से बाहर ही नहीं निकल पाए हैं कि वाजपेयी जी देश के उन गिने चुने पत्रकारों में हैं.. जिनकी जुबान से निकली हर बात पर आम आदमी भरोसा ….”
क्या है पूरा मुद्दा?
क्या है बहस?
इसे जानने के लिए आप पहले पुण्य प्रसून वाजपेयी के ब्लाग पर जाकर उनका लिखा पढ़ें और उस पोस्ट पर आईं टिप्पणियों को बूझें। इसके बाद विवेक सत्य मित्रम के ब्लाग पर उनके लिखे का मर्म समझें।
पुण्य प्रसून वाजपेयी का लिखा पढ़ने के लिए क्लिक करें- जामियानगर का आतंक और बाटला हाउस की तीसरी मंजिल
विवेक सत्य मित्रम का लिखा पढ़ने के लिए क्लिक करें- पुण्य प्रसून वाजपेयी जी, कम से कम आपसे ये उम्मीद नहीं थी!
बाटला हाउस में मुठभेड़ पर एक अलग नजरिए से लिखी गई पोस्ट विस्फोट डाट काम पर प्रकाशित हुई है। इसे पढ़ने के लिए क्लिक करें- इंस्पेक्टर शर्मा को किसने किया शहीद?