कम से कम साल भर का वक्त लगेगा : लाइसेंस के लिए रिलायंस के आवेदनों को सूचना-प्रसारण मंत्रलाय से अभी तक मंजूरी नहीं : पिछले कुछ महीनों की सबसे बड़ी बकवास और अफवाह कौन-सी रही? वह यह कि रिलायंस एक साथ कई न्यूज चैनल बस शुरू ही करने जा रहा है और इन न्यूज चैनलों के लिए टीवी के कई बड़े नामों का अंदरखाने सेलेक्शन हो चुका है। इस सूचना के संबंध में जानकारी के लिए और पुष्टि के लिए भड़ास4मीडिया के पास सैकड़ों फोन आए पर भड़ास4मीडिया ने इन अफवाहों की न तो पुष्टि की और न ही इसका खंडन किया। सभी को पर्याप्त जानकारी न होने का हवाला दिया। ऐसे संशय व भ्रम के मौके का हमेशा कुछ लोग इस्तेमाल कर ले जाते हैं। इस बार भी ऐसा हुआ। कई लोग जो इन दिनों टीवी में हाशिए पर हैं, अपना नाम फ्लैश कराने में जुट गए।
फर्जी तर्कों-दावों के जरिए खुद को मजबूत दावेदार घोषित करा दिया। ऐसी प्लांटेड खबरें व सूचनाएं भड़ास4मीडिया के पास भी आती रहीं पर इन्हें बेकार व बिना सिर-पैर की मानकर कूड़ेदान में डाल दिया जाता रहा। अब हम बताने जा रहे हैं हकीकत। रिलायंस समूह कोई न्यूज चैनल अभी तुरंत नहीं लाने जा रहा है। इसमें कम से कम एक साल का वक्त लगेगा। अनिल अंबानी वाले रिलायंस ग्रुप की तरफ से न्यूज चैनलों के लिए आवेदन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में किया गया है। पर इन्हें अभी मंजूरी बाकी है। मंजूरी मिलने और लांच होने के बीच छह माह का वक्त लग सकता है। इस तरह एक साल से पहले रिलायंस के न्यूज चैनलों के लांच होने के आसार नहीं हैं। बावजूद इसके, अनिल अंबानी के न्यूज चैनलों का बॉस बनने के लिए अभी से कई पत्रकार जोड़तोड़ में जुट गए हैं। कोई सिंगापुर में इलाज कराने पहुंचे अमर सिंह से पव्वा भिड़ा रहा है तो कोई अनिल अंबानी के करीबियों को तलाश कर उनसे मीटिंग फिक्स कर रहा है। कोई अन्य नेताओं के जरिए अमर सिंह तक पहुंच रहा है। कई पत्रकार यह कहते सुने गए कि अनिल अंबानी वाला रिलायंस समूह एक नहीं, 30 नेशनल व रीजनल न्यूज चैनल लाने जा रहा है और इन तीस न्यूज चैनलों के लिए टीवी के तीस बड़े नामों का चयन हो चुका है। रिलायंस के न्यूज चैनल लाने की खबर ने कई टीवी पत्रकारों की सक्रियता बढ़ा दी है।
कुछ लोग तो इस इंतजार में हैं कि उनके बास रिलायंस के न्यूज चैनल में जाएं तो वे इसी चैनल में बास बन जाएं। पत्रकारिता में सिर्फ पत्रकारिता ही नहीं बची है, बाकी सब कुछ हो रहा है। इसी कारण लोग मुद्दों पर और खबरों पर बात नहीं करते, अपनी सेलरी, पद, प्रोजेक्ट्स, संभावनाओं आदि पर माथापच्ची करते रहते हैं। इन टीवी जर्नलिस्टों को पता है कि उनके न्यूज चैनल पर खबरें तो चलती नहीं, सो, खबरों के पीछे भागने से फायदा क्या। इन लोगों को नौकरी करना अच्छी तरह आता है। इन लोगों को सेटिंग-गेटिंग करना अच्छी तरह आता है। इन्हें अपने बास और अपने प्रबंधन को विश्वास में लिए रखना अच्छी तरह आता है। प्रबंधन व बास को भी खबरें कम, संस्थान के हित देखने वाला बंदा अधिक चाहिए। ये टीवी पत्रकार महोदय लाइजनिंग के काम बखूबी कर लेते हैं। और जब लाइजनिंग से ही किसी नए न्यूज चैनल के प्रमुख का पद मिल रहा हो तो ऐसे में इनका बेहद सक्रिय हो जाना एकदम स्वाभाविक है।
तो दोस्तों, रिलायंस के न्यूज चैनल के नाम पर कांव-कांव करना बंद करिए और रिलायंस के न्यूज चैनल से अपना नाम जोड़ कर भाव बनाने-बढ़ाने में लगे पत्रकारों के आगे-पीछे चक्कर काटना और गिड़गिड़ाना भी बंद करिए। मीडिया में ‘कौव्वापन’ बहुत ज्यादा है, इसलिए बेमतलब के ‘कांव-कांव’ भी बहुत हैं। इनसे सतर्क रहने की जरूरत है।
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